Followers

Friday, May 10, 2019

हे मन तू क्यों भटक रहा रे,

हे मन तू क्यों भटक रहा रे,
प्रभु बिन कुछ नहि साँच यहाँ रे;

पल छिन की यह माया नगरी
हित सत कुछ न करी
विष घोल यहि मन उपवन में
सुधि बुधि सब बिसरी
सत सुख से तू दूर रहा रे
हे मन ............................................

दे छोड़ वृथा जग का बंधन
लोभ मोह मद कर अरपन
ले नाम प्रभु का पागल मन
हो जाये सफल यह जगजीवन
हिय में गुरु ज्ञान की की ज्योति जला रे
हे मन............................................



No comments:

Post a Comment