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Monday, July 25, 2022

Analysis of the result 2022


As the CBSE has declared the board result of 2021-22, there is the decline in the school result. The expected targeted result could not be achieved despite all efforts by the team. This is time to introspect and analyse the result so that the team can perform better than the expectation in the current session 2022-23.  The result is not the outcome of only one subject teacher or one student rather it is the combined effort and outcome of whole team of the vidyalaya that includes administration, teachers, students and parents. All needs to review the scenario and make more effective planning for improvement in the result.

Unitedly we have to work together for the set target of 100% result and PI above 90%. We have to overcome the obstacles and challenges. We should believe in us and in the worth of child before us. We will certainly achieve the set target if dedicatedly we start doing our best for it.

Reasons for decline

1.      Online classes in last two academic years.

2.      Low attendance and insufficient interaction over online classes with certain students.

3.      The irregular forms and less frequency of assessments

4.      Limited interaction due to Low presence of parents in PTM’s

5.      The confusions about the form of assessment in mid tests and final exams.

6.      The distractions while taking online classes over mobile and computers

7.      Network/electricity breakdowns and gadgets issues

Future Planning:

1.      The attendance of students will be improved

2.      Timely completion of syllabus and expected revisions will be ensured

3.      Frequency of tests will be increased

4.      The students will be diagnosed/classified as per their performance and remedial measures will be followed wherever necessary.

5.      Individual focus, self/peer learning will be promoted

6.      The progress of students will be monitored and proper record will be maintained.

7.      The level of interests and motivation towards studies will be improved

8.      The guidance and counselling sessions will be organised by teachers and experts

9.      Frequent PTM’s will be organized. The parents will be sensitized to extend cooperation and monitor the health, wellness, studies and progress of the students.

10.  The students of special needs and care will be identified and adequate strategy will be made and executed for them.

11.  The commitment of the teachers and students should be ensured towards better result in the targeted/all classes.

Friday, July 1, 2022

कर्मयोगी

एक सज्जन रेलवे स्टेशन पर बैठे गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी जूते पॉलिश करने वाला एक लड़का आकर बोला~ ‘‘साहब! बूट पॉलिश कर दूँ ?’’

उसकी दयनीय सूरत देखकर उन्होंने अपने जूते आगे बढ़ा दिये, बोले- ‘‘लो, पर ठीक से चमकाना।’’

लड़के ने काम तो शुरू किया परंतु अन्य पॉलिशवालों की तरह उसमें स्फूर्ति नहीं थी।

वे बोले~ ‘‘कैसे ढीले-ढीले काम करते हो? जल्दी-जल्दी हाथ चलाओ !’’ 

वह लड़का मौन रहा। 

इतने में दूसरा लड़का आया। उसने इस लड़के को तुरंत अलग कर दिया और स्वयं फटाफट काम में जुट गया। पहले वाला गूँगे की तरह एक ओर खड़ा रहा। दूसरे ने जूते चमका दिये।

‘पैसे किसे देने हैं?’ इस पर विचार करते हुए उन्होंने जेब में हाथ डाला। उन्हें लगा कि ‘अब इन दोनों में पैसों के लिए झगड़ा या मारपीट होगी।’ फिर उन्होंने सोचा, ‘जिसने काम किया, उसे ही दाम मिलना चाहिए।’ इसलिए उन्होंने बाद में आनेवाले लड़के को पैसे दे दिये।

उसने पैसे ले तो लिये परंतु पहले वाले लड़के की हथेली पर रख दिये। प्रेम से उसकी पीठ थपथपायी और चल दिया।

वह आदमी विस्मित नेत्रों से देखता रहा। उसने लड़के को तुरंत वापस बुलाया और पूछा~  ‘‘यह क्या चक्कर है?’’

लड़का बोला~ ‘‘साहब! यह तीन महीने पहले चलती ट्रेन से गिर गया था। हाथ-पैर में बहुत चोटें आयी थीं। ईश्वर की कृपा से बेचारा बच गया नहीं तो इसकी वृद्धा माँ और बहनों का क्या होता,बहुत स्वाभिमानी है... भीख नहीं मांग सकता....!’’

फिर थोड़ा रुककर वह बोला ~ ‘‘साहब! यहाँ जूते पॉलिश करनेवालों का हमारा समूह है और उसमें एक देवता जैसे हम सबके प्यारे चाचाजी हैं जिन्हें सब ‘सत्संगी चाचाजी’ कहकर पुकारते हैं। वे सत्संग में जाते हैं और हमें भी सत्संग की बातें बताते रहते हैं। उन्होंने ही ये सुझाव रखा कि ‘साथियो! अब यह पहले की तरह स्फूर्ति से काम नहीं कर सकता तो क्या हुआ???
ईश्वर ने हम सबको अपने साथी के प्रति सक्रिय हित, त्याग-भावना, स्नेह, सहानुभूति और एकत्व का भाव प्रकट करने का एक अवसर दिया है।जैसे पीठ, पेट, चेहरा, हाथ, पैर भिन्न-भिन्न दिखते हुए भी हैं एक ही शरीर के अंग, ऐसे ही हम सभी शरीर से भिन्न-भिन्न दिखाई देते हुए भी हैं एक ही आत्मा! हम सब एक हैं।

स्टेशन पर रहने वाले हम सब साथियों ने मिलकर तय किया कि हम अपनी एक जोड़ी जूते पॉलिश करने की आय प्रतिदिन इसे दिया करेंगे और जरूरत पड़ने पर इसके काम में सहायता भी करेंगे....

Thursday, June 30, 2022

अंतिमदर्शन


चारों ओर विषैली गंध फैली थी..भीड़ मुँह ढके सारा मंजर चुप चाप देख और सुन रही थी..परंतु कह कोई कुछ नहीं रहा था..बस एक दूसरे को शांत नज़रों से देखे जा रहा था...

नगर पालिका की मुर्दा गाड़ी वर्मा जी के दरवाजे पे आकर लगी थी..

किसी ने वर्मा जी की पत्नी के मरने की खबर नगरपालिका को कर रखी थी शायद..

लेकिन वर्मा जी थे जो मान ही नहीं रहे थे..
और न ही स्ट्रेचर ब्वॉय को अंदर कमरे में जाने दे रहे थे..जहाँ उनकी पत्नी का पार्थिव शरीर पड़ा था..

चलिए चच्चा हटिए...कोई नहीं आने वाला..... 

चच्ची को ले जाने देजिए...

मैं ज्यादा देर तक नहीं रूकने वाला...

वैसे भी आज़ बहुत काम है...

लोड भी ज्यादा है...आज़

 स्ट्रेचर ब्वॉय बार बार अपनी घड़ी देख रहा था..और कहे जा रहा था..

नहीं नहीं....

जरा रूको भाई...

वो आता ही होगा...

अरे विदेश से आ रहा है,आने में थोड़ा समय तो लगेगा ही न ...?

उसके रूखे व्यवहार के वावजूद वर्मा जी विनम्रतापूर्वक स्ट्रेचर ब्वॉय से विनती कर रहे थे...

थोड़ी देर और रूक जाओ....

साथ मे बेटी और बच्चें भी हैं...

कम से कम उन्हें अपनी माँ के अंतिमदर्शन तो कर लेने दो...

आखिर तुम भी किसी के बेटे हो..

यह कहकर वो व्याकुल नज़रों से दरवाजे की ओर देखने लगे...

वो बार बार दरवाजे की तरफ़ दौड़कर जातें और लौटकर भीतर कमरे में पड़ी अपनी मृत पत्नी के पार्थिव शरीर से लिपट कर रोने लगतें...

देखो अभी तक नहीं आएं सब...

तुम्हें बहुत विश्वास था...कुछ हो जाए तुम्हारी बेटी तुम्हें नहीं छोड़ सकती..एक ना एक दिन तो मेरे पास आएगी ही, आखिर कब तक अपनी माँ से दूर रहेगी..

बेटी को पढाने लिखाने के लिए तुमने तो अपने सारे जेवर तक बेच दिए...

पर देखो तुम्हारे जीते जी तो नहीं आई वो..तुम्हारे मरने की खबर सुनकर भी लगता नहीं कि वो आ रही..

वो अपने बेटे और बेटी का बिगत दो दिन से इंतजार कर रहें थें...

लेकिन अभी तक वो लोग आए नहीं थे...

वर्मा जी ने बेटे / बेटी को जबसे खबर किया था
कि उनकी माँ अब इस दुनिया में नहीं रही.. 
उस खबर के बाद न तो बेटे का फोन लग रहा था और न ही बेटी का....

दोनों के फोन लगातार स्विचऑफ बता रहे थे.

हालांकि माँ के मरने की खबर सुनकर बेटे ने कहा था कि वह टिकट लेकर आज शाम ही निकलता हूँ...कल सुबह तक आ जाऊँगा..बहू और रास्ते में दीदी भी साथ होगी..

लेकिन अब तक नहीं आया था..तीन दिन हो गए

अब तक तक तो आ जाना चाहिए था उसे..और छोटी को.

आखिर कब तक पत्नी के पार्थिव शरीर को इस तरह रोके रखे रहें...

उनकी आत्मा बच्चों को सोच तड़प रही थी...

जिन हाथों ने उँगली पकड़कर उन्हें चलना ‍सिखाया, जिन काँधों ने बचपन में सहारा दिया, आज वही माँ बाप बेटे बेटी के लिए जी का जंजाल बन गए थे.एक बार मुड़कर ताकना तक गँवारा नहीं समझ रहे थे...दोनों

जिन हाथों को बुढापे में अपने थर्राते पिता के हाथों को थामकर उनका सहारा बनना था...
आज वही बेटा उन्हें बुढापे में मरता छोड़कर विदेश बैठा था..

और बेटी की तो क्या कहें..कहा जाता है कि एक मां-बाप को सहारे के लिए बेटियां वरदान होती हैं..एक ही कोख से जन्म लेने वाले दो औलादों में बेटा मां-बाप को ठुकरा सकता है, लेकिन बेटियां अपने माता-पिता का बुरा कभी नहीं चाहती..लेकिन आज..बेटे को छोड़ उनकी बेटी भी उनकी परवरिश को गलत साबित कर रही थी..

वर्मा जी पत्नी का सर गोद में लिए रोए जा रहे.थे..साथ ही साथ मरी पत्नी से बातें किए जा रहें थे....

उनके मुर्झाए चेहरे पर चिंता और वेदना की लकीरें कोने कोने पसरी थी..

अच्छा हुआ कि तुम मुझसे पहले मर गई....

मैं तो यही सोच कर हलकान और परेशान रहता था..मेरे बाद तुम्हारा क्या होगा..

मैं हरदम सोचता था कहीं मैं पहले मर गया तो कौन ध्यान रखेगा तुम्हारा....

अब कम से कम तुम्हारी चिंता तो नहीं रहेगी मुझे...फिर मेरा क्या है..मैं तो यूँ भी जिंदा होकर भी लाश ही हूँ..और मुझे लाश बनाया है तुम्हारी अंधी ममता ने..तुम्हारे निश्चल एवं निश्वार्थ प्रेम ने..जिसका आज किश्त भर रहा हूँ मैं..कहकर पत्नी को सीने लगा रोने लगें..

तभी स्ट्रेचर ब्वॉय की आवाज ने उनका ध्यान भंग किया....

स्ट्रेचर ब्वॉय  लगभग खिसियाहट भरे लहजे में कहने लगा 

हटिए भी चाचा..अब ले जाने दिजिए..

कोई नहीं आएगा...मुझे ही अपना बेटा समझो..
और चच्ची को ले जाने दो....

वर्मा जी ने भी मानों नियति से हार मान लिया हो जैसे...

उनके न न करते करते भी स्ट्रेचर ब्वॉय कमरे में घूँस गया...

लेकिन अगले ही पल..आश्चर्य से उसकी कदमें पीछे हो गई....बिस्तर पर एक नहीं दो मृत शरीर पड़े थे..सड़ी सिकुड़ी दो लाश..जिसकी नजरे खिड़की से जाने किसको तक रही थी..

एक बर्मा जी की पत्नी की दूसरी उनकी खुद की..

यह देख स्ट्रेचर ब्वॉय की नज़रे वर्मा जी को ढूँढ रही थी लेकिन वो कहीं नहीं थे..

सच जान और सोच स्ट्रेचर ब्वॉय की रूह काँप गई कि वो इतनी देर से वर्मा जी नहीं बल्की उनकी आत्मा से बाते किए जा रहा था..

इतनी देर वर्मा जी की आत्मा ने उसका रस्ता रोक रखा था...

दूसरी तरफ़ बूढ़े मां-बाप को उनके जवान बच्च्चों  के इस तरह मरता छोड़ जाने से पूरे मुहल्ले की आंखें दर्द से छलछला रही थी..सबकी आँखें नम थी..हाँ ये अलग बात थी जो किसी ने लाश को छुआ तक नहीं था और न ही उन दोनों के अंतिम स्नान और कर्म की जहमत उठाने की कोशिश की थी..

अकेला स्ट्रेचर ब्वॉय वेदना में डूबा अपना कर्म कर रहा था..आज वो मुर्दों की बस्ती से दो मुर्दे साथ ले जा रहा था....श्राद्धकर्म करने के लिए..

क्योंकि और कुछ न सही वर्मा जी का अंतिमदर्शन तो सिर्फ़ उसने ही किया था...फिर चाहे उनकी आत्मा ही सही..

दोनों की लाश जलाते स्ट्रेचर ब्वॉय मन ही मन सोच रहा था कि कैसे अभागे माता पिता हैं दोनों..दुनिया पितृ दिवस और मातृ दिवस मनाती रहती है और इन्हें मरकर भी उनके बच्चों के हाथों मुखाग्नि  तक नसीब नहीं..

Deepak Bhaskar Writes

दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर दीपक भास्कर लिखते हैं:

आज दुखी हूं, कॉलेज में काम खत्म होने के बाद भी स्टाफ रूम में बैठा रहा, कदम उठ ही नहीं रहे थे। 

दो बच्चों ने आज ही एड्मिशन लिया और जब उन्होंने फीस लगभग 16000 सुना और होस्टल फीस लगभग 1,20,000 सुनकर एड्मिशन कैंसिल करने को कहा। 

पिता ने लगभग पैर पकड़ते हुए कहा कि सर, मजदूर है राजस्थान से, हमने सोचा कि सरकारी कॉलेज है तो फीस कम होगी, होस्टल की सुविधा होगी सस्ते मे, इसलिए आ गए थे। 

मैंने रोकने की कोशिश भी की लेकिन अंत में एडमिशन कैंसिल ही करा लिया। 

बैठकर, ये सोच रहा था कि एक तरफ जहां लोग सस्ती शिक्षा चाह रहे हैं वहीं दूसरी तरफ सरकार कह रही है कि 30 प्रतिशत खुद जेनेरेट कीजिये। 

ऑटोनोमी के नाम पर निजिकरण हो रहा है।

सोचिये दिल्ली विश्विद्यालय के चारो तरफ प्राइवेट यूनिवर्सिटी का जाल बिछ रहा है।

जो लोग 15,000 की फीस नही दे पा रहे वो लाखों की फीस प्राइवेट यूनिवर्सिटी को कहां से देंगे ?

लगभग ऐसे कई बच्चे डीयू के तमाम कॉलेजों में एड्मिशन कैंसिल कराते होंगे। 

इन दो बच्चों में एक बच्चा हिन्दू और दूसरा मुसलमान था, दोनों ओबीसी। 

ये उस देश मे हो रहा है जहां के प्रधानमंत्री खुद को ओबीसी क्लेम कर रहे हैं,

ये उस देश में हो रहा है जिसके प्रधानमंत्री स्वयं चाय बेचने की बात करते हैं।

अरे भाई आप गरीब है तो इनके लिए ही कुछ कर देते। 

कॉलेज में कई तरह की स्कालरशिप तो हैं लेकिन फीस भरने के लिए काफी नही, होस्टल फीस भरने लायक तो कतई नही। 

PG में रेंट पर रहना तो अच्छी आर्थिक व्यवस्था वाले लोगों के भी वश का नही। 

शिक्षक एक कार्पस फण्ड बनाने की बात कर रहे हैं ताकि ऐसे बच्चों की मदद किया जा सके। 
लेकिन इससे एक दो लोगों की मदद तो हो सकती है लेकिन सर्व कल्याण तो सरकार की नीतियों से ही होगा।

लेकिन सरकार को खुद बचा रहना है और बाकी मंत्रालयों को उनको बचाये रखना है

तो गरीब मजदूर क्या करें। 

लेकिन मैं दुखी हूं कालेज का 95 प्रतिशत का कटऑफ और बच्चे के पास 95 प्रतिशत नम्बर हैं

लेकिन इसके बावजूद भी गरीब बच्चे क्या करेंगे ?

गांव गोद लिए जा रहे हैं और लोग गरीब हुए जा रहे हैं। 

बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ का नारा कितना फेक लगता है। 

गर्ल्स कॉलेज बेटियों को उच्च शिक्षा देने के लिए ही बना था लेकिन आज एक गरीब की बेटी उसी से महरूम हो गई।

विश्विद्यालय अपने यूनिवर्सिटी होने का चरित्र खो रही है। 

बाकी फर्स्ट कट ऑफ का एड्मिसन खत्म हो गया है। 

दूसरे और तमाम कटऑफ में भी शायद ऐसे कितने बच्चे आएंगे और वापस चले जायेंगे।

ये सालों से हो रहा होगा लेकिन जब भारत बदल रहा था तो शायद ये भी बदल जाता। 

बाकी अब कुछ नहीं। शिक्षा मंत्रालय रोज एक नया फरमान ला रहा है। 

उस पिता ने कहा कि सुना था कि JNU की फीस कम है उसी से सोच लिए थे कि यहां भी कम होगी। 

अब आप समझे JNU को खत्म क्यों किया जा रहा है। 



Monday, June 27, 2022

ACADEMIC ACTION PLAN

 


After analysis it is noticed that the result of class IX and XI of 2021 has fallen down compared to the previous year 2020. So there needs some serious planning and its implementation at vidyalaya level.

In regard to the above concerns, the following steps and strategies can be helpful to improve the result of the year 2022-23.

1.      Meetings and interactions with subject teachers: There needs continuous coordination and interactions of principal and vice principals with the concerned teachers regarding result improvement and better performance of students. The hindrances of any sort must be dealt with collectively and proactively.

2.      Meetings and interactions with the students/parents: The students/parents must be motivated and sensitized about the importance of regular classes. They must invariably be partnered and collaborated in achieving the set target of quality result.

3.      Home time table to be framed for students: The students should be provided home time table. The parents should be counselled to monitor their wards. The parents should also be counselled to take care of the health, wellness and routine of their wards.

4.      The remedial classes to be arranged: The subject teachers will identify the students with special needs. The teacher should plan and strategize for both high performers and low performers. These students should specifically be dealt to perform better to their level.

5.      Practice material as per the level of students: The students should be provided the practice material as per the needs and level. If the student is high performer, he should be provided some creative and high level materials/ exercises whereas the low performer student should be given limited and important practice material. This will rather boost their confidence to do better and to take more challenging task.  

6.      Continuous Evaluation/assessment: It is recommended that the assessment should be part of the teaching and learning. After regular and routine classes, there should be the provision of short tests of limited time and marks. This will provide space and opportunity for revising and retrospecting of what has been taught and learnt. It will undoubtedly result in high performance of students.

7.      Observation of the classes: The classes should be regularly observed and positive feedback should be given to teachers.

8.      The monitoring of the progress of students: The progress of the students in the subjects should be regularly monitored and analysed. The strategies must be reoriented if the previous planning does not work well. The need and traits of the students must be prioritized while making the plans. The progress report card should be prepared for the purpose.

9.      Individual focus to students: As for as feasible, individual and specific focus and attention to be given to the students. Their constraints in achieving the desired target should be diagnosed and immediately remediated.

10.  To Develop confidence and cordiality with students: The students must feel at ease and comfortable with the teachers, subjects, administrators and vidyalaya environment. Such efforts are to be made where students express their anxieties and problems to teachers.

11.  The peer tutoring should encouraged: We learn more and perform better in acquainted and familiar surroundings and situations. All efforts should be made to motivate the bright students to extend helping hands towards their fellow students. This will serve many purposes at once. This will boost morale of the tutoring students and generate interests in other students towards topic and study. This will also provide time to teacher to monitor the class and focus on some more useful tasks.

12.  Optimum teachers and taught interactions: The vidyalaya time table and activities should be planned in the way where the teachers and taught get optimum time to interact. The teachers should not be engaged in the lesser important duties. This is why because the teachers and taught are at the very pivot of whole of academic arena and environment. Engaging teachers and students in lesser important activities rather distracts and deviates them from the core goals.

Thursday, February 10, 2022

सपने और मूल्य


बेटों ने चलने फिरने और बोलने में असमर्थ अपने पापा रिटायर्ड मेजर को अस्पताल से छुट्टी मिलते ही घर के एक कमरे में फर्श पर गद्दा लगा दिया और नेपाली नौकर को कहा, "इनका पूरा ख्याल रखना। हमें कोई शिकायत ना मिले।" 

छोटे बेटे की नई शादी हुई थी। उसने हनीमून व गर्मियाँ बिताने के लिए स्विट्जरलैंड जाने का प्रोग्राम बनाया और चला गया।

बाद में दूसरे बेटे ने कनाडा एवं यू एस में और तीसरे ने रूस में छुट्टियाँ व्यतीत करने के प्रोग्राम बना कर निकल गए। जाते जाते नौकर को एक फोन देते हुए चेतावनी दी, "हमारी दो माह के बाद वापसी होगी। तुम पापा का पूरा ख्याल रखना, समय पर खाना, दूध और दवाएँ देना। पापा को तनिक भी परेशानी नहीं होनी चाहिए।"

नौकर ने सहज सहमति दे दी और वे सभी चले गए।

वे जहाँ भी जाते, आवश्यकता पड़ने पर हर जगह अपना परिचय मेजर के बेटे होने से शुरु करते और अपने पापा के साहस की कहानियाँ सुनाते .......

इधर बूढ़ा अपाहिज पिता अकेला घर के कमरे में लेटा साँसे लेता रहा। जजवह ना चल सकता था। ना स्वयं से कुछ माँग सकता था। नौकर 24 घण्टों उनके पास ही रहता और समय से भोजन, पानी, दूध, दवा आदि देता रहता।

एक महीना बीत गया। इस बीच नौकर के पास पापा का हाल जानने के लिये किसी बेटे का कोई फोन नहीं आया। अपनी जिम्मेदारियों से बचने व छुट्टियों के खराब होने के डर से सभी स्वयं को छोड़कर शेष दोनों भाइयों पर आश्रित बने रहे। 

एक दिन नौकर फोन घर पर ही छोड़ कमरे में ताला लगाकर बाजार से दूध लेने गया तो उसका एक्सीडेंट हो गया। लोगों ने उसे हॉस्पिटल पहुँचाया किन्तु वह कोमा में चला गया। नौकर कोमा से होश में ना आ सका और एक दिन चल बसा। उसके पास कोई वस्तु बरामद नहीं हुई थी। (फोन घर पर रख दिया था और एक्सीडेंट के समय चाभी शायद कहीं गुम हो गयी थी) अतः लावारिस मान कर प्रशासन ने उसका अंतिम संस्कार कर दिया।

बेटों ने नौकर को सिर्फ पिता के कमरे की चाबी दी थी।  बाकी सारे घर को ताले लगाकर चाबियाँ साथ ले गए थे।प्रतिदिन की भाँति उस दिन भी नौकर उस कमरे को ताला लगाकर चाबी साथ लेकर गया था ताकि उसकी अनुपस्थिति में कोई घर मे घुस ना सके। और फिर वह अभी वापस आ ही जायेगा। 

अब बूढ़ा रिटायर्ड मेजर जनरल कमरे में बन्द हो चुका था। वह चल फिर भी नहीं सकता था। किसी को आवाज नहीं दे सकता था।

अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार जब सबसे पहले पहला बेटा वापस आया तो घर पर ताला बंद पाकर नौकर को फोन लगाया। लम्बे समय से रिचार्ज न होने के कारण सिम डिएक्टिवेट हो गया था शायद इसलिए फोन नहीं लगा। दूसरे भाइयों से बात करके जानना चाहा कि नौकर से उनकी लास्ट बात कब हुई थी। दोनों ने कोई बात न होने की बात बताई। पड़ोसियों ने बताया कि उन्होंने नौकर को बहुत दिनों से बाहर निकलते या आते जाते नहीं देखा है। 

हार मान कर जब ताला तोड़कर कमरा खोला गया तो ... 

पूरा कमरा हल्की बदबू से भरा हुआ था। खिड़की दरवाजे सब बन्द थे। ए सी चल रहा था अतः कमरे में ठंडक थी। फर्श पर पड़े गद्दे पर एक कंकाल पड़ा हुआ था जिसके गले तक चादर पड़ी हुई थी। उस कंकाल के शरीर में सेना की वर्दी थी जो चादर से बाहर निकली बाहों में दिख रही थी। कमरे में निस्तब्धता छाई हुई थी।

यह कहानी हमें बता रही है कि किस तरह अपनी संतान के लिए नेकी और बुराई की परवाह किए बगैर हम सब उनका भविष्य संभालने के लिए तन, मन, धन खपाते हैं और ज्यादा से ज्यादा दौलत-जायदादें बनाकर उनका भविष्य की पीढ़ियों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने की कोशिश करते हैं। ऐसा करते समय यह सोचते रहते हैं कि यह औलाद कल बुढ़ापे में मेरी देखभाल करेगी। 

बेहतरीन स्कूलों में भौतिक शिक्षा दिलवाने की आपाधापी में हम ये भूल जाते हैं कि जीवन उपयोगी नैतिक मूल्यों, मानवतायुक्त संस्कारों, धार्मिक विचारों की शिक्षा देने से ही मानव का पूर्ण विकास संभव होता है। नैतिक, सामाजिक, धार्मिक व मानवीय शिक्षा को हम समय की बर्बादी समझते हैं।

यदि ऐसा कहा जाय कि बूढ़े, अपाहिज और अशक्त हो चुके रिटायर्ड मेजर का मर जाना ही उचित था। मानते हैं ... किंतु क्या ऐसी मृत्यु... न..न...न!

साभार

Wednesday, February 2, 2022

कर्म ही पूजा है।

मोबाइल स्क्रीन पर जैसे ही 4.30 टिक-टिक हुआ, मन मस्तिष्क में ऑफिस से लौटने के ख्याल घूमने लगे। वैसे भी जनवरी के अंत आते-आते दिन की लंबाई सूत भर ही बढ़ती है। 

शाम का आगमन होने ही वाला था। बस किसी तरह रजिस्टर पर बेशकीमती हस्ताक्षर झटपट उकेर दे और रास्ता नापें। पर कोई आसान थोड़े ही था। अभी तो पार करना था विंध्याचल। साहब को रिझाना कोई बच्चों का खेल नही। 
इसी विचार से बैठा आमने सामने। साहब की हल्की फुल्की चापलूसी और सहकर्मियों की ढेर सारी खामियां चुटकी में गिना डाली, एक सांस में।

साहेब को मूड देख रजिस्टर आहिस्ता खिसकाया और घर्र से हस्ताक्षर चेप दिया। फिर फर्राटा निकला कहीं साहेब की पुकार न आ जाए।

मुख्य द्वार को लाँघते ही वही ख्याल घूमने लगा कि सीधे प्लाट पर जाना है। फटाफट फोन मिलाया अमित बाबू को।
'कहाँ हो अभी' ताबड़तोड़ अंदाज में मैने बोला।
'प्लाट पर' अमित बाबू अपने जाने माने सुस्ताने अंदाज में बोले।
'फिर आ जाओ चौराहे पर' दबंगई में मैने बोला।
'ठीक है' शालीनता का अद्भुत परिचय देते हुए अमित बाबू बोले।

अमानी पर तो मिस्त्री लोग 5.00 बजे तक बैग पैक कर लेते हैं और ठेके पर तो 6.00 बजे तो कभी 6.30 तक लगे रहते हैं। दूसरे मंजिल की शटरिंग लगनी है तो फिर देर तक काम चलेगा। आज कितना काम हुआ? आज का काम कैसा होगा? कैसा दिखेगा? यह जानने जिज्ञासा और उत्सुकता सदैव बनी रहती है।

यही सब मन मे गूथते सरपट आगे बढ़ता जा रहा। गंगा ब्रिज पैदल पर कर, थाने से विक्रम लेकर चौराहे पर पहुँच गया। अमित बाबू पहले से ही इंतजार कर रहे थे, और मोटर साइकिल का धुंआ निकाल रहे थे। चौराहा पार कर झपक से बैठ गया पीछे और सटाक से पहुंच गया प्लाट।

अमित बाबू गाड़ी धीमी किए और मैं झप्प से उतरा सीधे छत पर पहुँचा। जैसे कोई मेरा बेसब्री से इंतजार कर रहा हो या मुझे किसी को देखने की महा जल्दी हो।

'नमस्ते सर' जानी पहचानी, प्रत्याशित मिस्त्री की आवाज कानो तक पहुंची। मन्द मुस्कान और सरलता से मैंने नमस्ते का जबाव दिया। आगे बढ़ते गए।

'मिस्त्री कहाँ हो? दिखाई नही दे रहे हो' मैंने पूछा।
'इहाँ हूँ सर, मेहराब बना रहा हूँ' मिस्त्री ईंट के जाल के पीछे से सिर उठाते हुए ऊंची आवाज में बोले।
चारों तरफ से लगी बाँस बल्लियों को बचाते पहुँचा मिस्त्री के पास। ऐंड बेंड करते लपाक से मैं भी चढ़ गया चहली पर।
'सर आप उतर जाइए'। मिस्री ने बोला।
'क्यों क्या हुआ' मैने उत्सुकता बश पूछा।
'सर, आप गिर जाओगे,  चहली टूट सकती है' मिस्त्री ने बोला।
मैं झटपट नीचे उतर गया।
ईंटों की जाल के अर्धगोले के ऊपर गीली मिट्टी का लेप। भूरे जैकेट, झीने पायजामें, गीले मिट्टी से सने हाथ से लपालप लेपे जा रहे। अर्धगोले के आधे तो लेप हो गया और बचा था उसका आधा। सूत की करिश्माई कमाल तो सिर्फ मिस्त्री ही समझ सकता है। कभी कन्नी से गीली सनी मिट्टी तसले से दो चार मर्तबा उठाता और फिर निगाहें गड़ाए सूत चलाता।

मिस्त्री तो ईंट गारे के काम पसन्द लोग होते हैं। कन्नी बसली का इनका गहरा रिश्ता होता है। सनी मिट्टी में हाथ लबोरे चपाचप कन्नी चलाये जा रहे हैं। कभी कन्नी तो कभी कभी सूत। बीच बीच मे तसले से मिट्टी। ध्यान तो बिल्कुल बगुले जैसी। मजाल है कोई सूत रत्ती भर दाएं बाएं हो जाये। कभी आगे झुककर तो कभी थोड़ा पीछे मुड़कर आँख गड़ाए जा रहे मानो ताजमहल की सलीक संरचना बनाई जा रही हो। न कपड़े का मिट्टी से गंदे होने की खबर और न ही कोई घिन्न।

इतनी तत्परता और तल्लीनता। बिल्कुल ध्यानमग्न और कार्यकेन्द्रित। चहली पर मन्द चहलकदमी बिल्कुल चींटी की चाल माफित। सूत से इतनी मोहब्बत और कन्नी से इतना प्यार। फिकर इतनी कि राई भर भी अर्धवृत्त बेडौल न हो जाय। दोनों हाथ भरकर सनी मिट्टी उठाना, फिर लेपना और कन्नी से लेवल करना। सबसे महत्वपूर्ण कि सूत से पेंडुलम जैसे कभी दाएँ तो कभी बाएं घुमाना। इतनी आश्वास कार्यमग्नता मैंने तो पहली बार देखी।

लगभग तीन महीने से निर्माण कार्य चल रहा था। मुश्किल से ही कोई दिन होगा जब मैं प्लाट नही गया। गपशप के साथ तकनीकी चर्चा करता। अपने ख्वाबी ख्यालो से मिस्त्री को तंग भी करता कि 'यहाँ ऐसे हो सकता है वहाँ ऐ कर दो तो अच्छा होगा'। कुछेक मौके पर तो बनी दीवाल को गिरवाया भी बड़े आत्मविश्वास से। मिस्त्री तिलमिलाता और झल्लाता। पर हंसमुख अंदाज में कहता 'सर मेरा बहुत नुकसान हो जाएगा, घर से पैसा देना पड़ जायेगा'। 

'कोई नही, थोड़ा मैनेज करो, तुम्हें घाटा नही होगा, फिकर न करो' ऐसा कुछ मेरी जबान से निकलता।

पर कभी ऐसा न हुआ कि मिस्त्री के काम का इतना असर हुआ हो। अब सामने तो बखान कर नही सकता था। कहीं मिस्त्री आसमान पर न चढ़ जाय। बजाय इसके मैंने अमित बाबू को थोड़ा दूर ले गया और फुसफुसाया 'देखो अमित बाबू, ऐ होता है काम के प्रति निष्ठा और ईमानदारी। इसी को कहते हैं कर्तव्य परायणता। देखो मिस्त्री कितना लग के काम कर रहा है, मिट्टी दोनों हाथ भरके उठा रहा है जबकि मिस्त्री का मिट्टी का नही है। इसकी खबर बराबर है कि कहीं रूप कुरूप न हो जाय'।
आगे अमित बाबू को फिलॉसफी झाड़ते हुए मैंने बोला, 'इसी को कहते हैं कर्म ही पूजा है, कार्य ही धर्म और सच्ची भक्ति है'।

आज मिस्त्री ने दिल जीत लिया। उसके काम ने अक्सर ही मन को भाया पर आज मुक्तकंठ से प्रसंशा करने का जी हो रहा था।

मैंने शाबाशी देने का नया रास्ता निकाला और मिस्त्री से बोला, 'मिस्त्री, बताओ क्या खाओगे?'
मिस्त्री भी जैसे इंतजार में था और झट से बोला, 'यहाँ कहाँ खाएंगे, यहाँ तो कुछ नही मिलेगा, चलिए गंगाराम पर'।

फिर मैं, मिस्त्री और अमित बाबू गंगाराम पर छोले दही डाल कर दो-दो समोसे चाव से निपटाए और स्वादिष्ट गर्म चाय पिए।
फिर निकल गए अपने-अपने आशियाने।
बाइक पर पीछे बैठे अमित बाबू को पुनः फिलॉसफी झाड़ने लगा। वैसे भी गारे बगाहे फिलॉसफी झाड़ता ही रहता हूँ। आज तो फिलॉसफी के दिव्यदर्शन हुए चक्षु को। 

'अमित बाबू, इसी को कहते हैं कार्य के प्रति ईमानदारी, काम कुछ भी हो, पर जो काम करो, पूरे मन से करो, पूरी निष्ठा से करो, कर्म ही पूजा है'। मन्द स्वर में बिल्कुल कान के इर्द गिर्द मैंने बोला।

अमित बाबू के जाने पहचाने हाँ और हूँ जैसे जबाव के साथ पहुँच गए अपने ठिकाने।

मूर्खों से बहस न करें।

गधे ने बाघ से कहा, घास नीली है।

बाघ ने कहा, घास हरी है।
विवाद बढ़ता गया फिर दोनों के बीच चर्चा तेज हो गई।

दोनों ही अपने-अपने शब्दों में दृढ़ हैं।

इस विवाद को समाप्त करने के लिए दोनों जंगल के राजा शेर के पास गए।

पशु साम्राज्य के बीच में सिंहासन पर बैठा एक शेर था।

बाघ के कुछ कहने से पहले ही गधा चिल्लाने लगा, महाराज, घास नीला है ना ?

शेर ने कहा हाँ, घास नीली है।

गधा,
 ये बाघ नहीं मान रहा, उसे ठीक से सजा दी जाए!!

शेर राजा ने घोषणा की बाघ को एक साल की जेल होगी, राजा का फैसला गधे ने सुना और वह पूरे जंगल में खुशी से झूम रहा था .....!

बाघ को एक साल की जेल की सजा सुनाई गई, बाघ शेर के पास गया और पूछा, क्यों महाराज ! घास हरी है, क्या यह सही नहीं है ?

शेर ने कहा हाँ! घास हरी है।

बाघ ने कहा... तो मुझे जेल की सजा क्यों दी गई है ?

सिंह ने कहा, आपको घास नीले या हरे रंग के लिए सजा नहीं मिली, आपको उस मूर्ख गधे के साथ बहस करने के लिए दंडित किया गया है, आप जैसे बहादुर और बुद्धिमान जीव ने गधे से बहस की और निर्णय लेने के लिए मेरे पास आये...

"कहानी का सार"
मूर्खों से बहस न करें।

Tuesday, January 25, 2022

सकारात्मक नजरिया

एक बदलाव भी समाज का नजरिया बदलने के लिए काफी है. आज भी कई जगह हमारे समाज में विधवाओं के लिए उस आजादी का चलन नहीं है जो आम लड़कियों या महिलाओं को दी जाती है. इस सोच को बदलने के लिए सार्थक बदलावों की बहुत जरूरत है. वैसे ही जैसा बदलाव और पहल राजस्थान की महिला सरकारी टीचर ने की है.

राजस्थान के सीकर की रहने वाली एक सरकारी शिक्षिका ने समाज के सामने एक मिसाल पेश करते हुए अपनी विधवा बहू की शादी करवा दी है. इस सास अपनी बहू को माता पिता बन कर एक बेटी की तरह विदा किया है. इतना ही नहीं, इन्होंने अपनी बहू की शादी करने से पहले उसे शिक्षा दिलाई और एक लेक्चरर बनाया.

भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार सीकर के रामगढ़ शेखावाटी के ढांढण गांव की रहने वाली कमला देवी एक सरकारी अध्यापिका हैं. इन्होंने 25 मई 2016 को अपने छोटे बेटे शुभम की शादी सुनीता से की थी. शुभम और सुनीता की मुलाकात एक कार्यक्रम में हुई थी. शुभम को सुनीता पसंद थीं इसीलिए उन्होंने अपने घर पर उसके बारे में चर्चा की और घर वालों ने शादी के लिए सुनीता के घर वालों से बात कर ली. सुनीता आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से संबंध रखती थीं इसीलिए कमला देवी ने सुनीता को बिना दहेज लिए ही अपने घर की बहू बनाया.

शुभम को MBBS की पढ़ाई पूरी करनी थी और वो शादी के बाद इसके लिए किर्गीस्तान चले गए. सुनीता और शुभम ने अभी तक एक दूसरे के साथ ज्यादा समय भी नहीं बिताया था. शुभम को पढ़ाई पूरी कर के वापस लौटना था लेकिन शादी के 6 महीने बाद ही नवंबर 2016 में वह दुनिया को अलविदा कह गया. ब्रेन स्ट्रोक ने शुभम की जान ले ली.

मां की तरह सास ने बहू को पढ़ाया

ऐसी बहुत सी घटनाएं हम सबने देखी सुनी हैं लेकिन सुनीता का भाग्य इतना प्रबल था कि विधवा होने के बाद उसे एक बहू नहीं बल्कि बेटी का प्यार मिला. कमला देवी अब सुनीता की सास नहीं बल्कि मां हो चुकी थीं.

सुनीता को कमला देवी से जो प्यार मिल रहा था उसके बदले में सुनीता ने उनकी हर बात मानी. कमला देवी ने एक मां की तरह सुनीता को एमए, बीएड की पढ़ाई करवाई और फिर उसे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार किया. 2021 में कमला देवी की मेहनत और सुनीता की लगन ने रंग दिखाया और वह हिस्ट्री के लेक्चरर पद के लिए चयनित हो गईं.

अब कन्यादान कर किया विदा

शुभम की मौत के 5 साल बाद जब सुनीता की नौकरी भी लग चुकी है तब कमला देवी नई ने एक सास नहीं बल्कि एक मां की तरह अपनी इस बेटी की तरह धूमधाम से दूसरी शादी की है. कमला देवी ने मां की तरह अपनी बहू का कन्यादान करते हुए उनकी शादी मुकेश से करवाई है. इस शादी से कमला देवी बहुत खुश हैं.