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Monday, February 24, 2020

Dissent and Democracy



Justice Gupta said, “Criticism of any institution is to be protected — the executive, legislature, judiciary, and even the armed forces. There is no holy cow when it comes to dissent.”
The government has no right to stifle or quell protest as long as the protests are peaceful, Supreme Court judge Justice Deepak Gupta said on Monday.
Delivering a lecture on “Democracy and Dissent” organised by the Supreme Court Bar Association, Justice Gupta said, “Criticism of any institution is to be protected — the executive, legislature, judiciary, and even the armed forces. There is no holy cow when it comes to dissent.”
“No doubt, these views must be expressed in a peaceful manner, but citizens have a right to get together and protest when they feel that actions taken by the government are not proper. Their cause may not always be right, but at the same time the government may also not be right,” Justice Gupta said.
“Societies will remain stagnant if there is no challenge to accepted norms,” the judge added.
After becoming a judge of the top court in February 2017, Justice Gupta has presided over many important environment cases, including the case seeking to curb air pollution in the national capital. He is also part of the bench hearing the case seeking proper implementation of the Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act. He is due to retire on May 6.
“I was given a number of topics, but I chose to speak on this topic ‘democracy and dissent’ because of what is happening in the country. Dissent must not only be tolerated but also encouraged,” the judge said.
“Disagreement, dissent and dialogue alone can run a democracy. The government and country are two different things. You can be critical of the government without being being critical of the country,” he added.
The judge also said that while the rule of the majority is inherent to a democracy, majoritarian rule cannot be accepted.
“Especially in a first past the post system, those in power do not represent the majority of the voting electorate, let alone majority of the citizens. The government is not only for whatever percentage of population that voted for them, but a government of all citizens,” Justice Gupta said.
Speaking on the significance of dissent in the judicial system, the judge said that there can be no democracy without a fearless and independent judiciary.
“The judges must be independent of political power and media influence, and must not fear to pen a dissent,” Justice Gupta said.
However, he was quick to point out that personal opinions of judges must not be taken for dissenting with the law laid down by the court. “Not every case should be referred to larger bench at the drop of a hat,” he said.
“Even if I feel that a five-judge bench ruling has not laid down the law correctly, I am bound to follow it when I sit in a two or three-judge bench. My disagreement is personal and we should uphold the precedent for certainty of law,” the judge said.
Justice Gupta also called out resolutions passed by certain Bar Associations, refusing to represent individuals deemed to have committed “anti-national activities”.
A lawyer’s refusal to represent an individual is “totally unacceptable” and “obstruction of the judicial process”, he added.


Friday, February 14, 2020

अदालत यहीं लगेगी

मुझे तुम पर विश्वास नही,
तू गुलाम हो, तुम दलाल हो,
तेरा कोई जमीर नही,
हम आयेंगे नही, तेरी बातों में,
मानेंगे नही,
तेरे अल्फाजों को;
हम अपराधी हैं,
हम दहशतगर्द हैं;
ऐसा इल्जाम लगाता है;
निर्दोष हमारे बच्चों को,
सालों अदालत काराबास,
के फेरे लगवाता है;
बस हो गई तेरी दादागीरी,
हो गई तेरी जुल्म ज्यादती;
मुवक्किल वकील,
जज मुजरिम यहीं पर,
फैसला सुनवाई करेगी

इंसाफ की आस में हमने भी,
अदालतों के चक्कर लगाये हैं;
झूठे फर्जी आरोपों से,
दर्द बे इम्तहाँ पाए हैं;
धन गया,
मान गया,
समय और सम्मान गया;
जवानी से बुढ़ापे तक हमने,
कड़वे कष्ट अपमान सहा,
मिला नही इंसाफ,
वरन अपराधी का तमगा मिला;
सब छिन्न भिन्न हो गया जीवन में,
सब कुछ उजड़ा उजड़ा मिला;
जनता से बना है तू,
जनता हम भी हैं,
अब जनता ही फैसला करेगी,
जनता ही सुनवाई करेगी।

सरकारें मनमानी जब हो जाती हैं,
प्रशासन भी भड़वा हो जाती है;
स्वायत्त संस्थाएं जब देश की,
सरकारों के दल्ले हो जाती हैं;
अविश्वास अव्यवस्था के मन्जर में,
जनता खुद सरकार बन जाती है;
किसी सरकार प्रशासन की जरूरत नही,
खुद ही सरकार चलाती है;
वही एहसास दिलाना चाहता हूँ,
जनता की ताकत दिखाना चाहता हूँ;
बन्द दरबों से निकल,
खुली सड़कों पर सुनवाई होगी।

बच्चा बच्चा पूछ रहा है

बच्चा बच्चा पूछ रहा है,
वतन के रखवालों से
सरकार में हो,
जनता के लिए;
शासन में हो,
जनता के लिए;
सेना में हो,
जनता के लिए;
तुम मंत्री हो,
जनता के लिए;
तुमे संत्री हो,
जनता के लिए;
तुम बाबू हो,
जनता के लिए;
चपरासी हो,
जनता के लिए;
अमन चैन सब छीन लिया,
क्यों अपने ही घरवालों ने।
आवाज चीख क्यों निकल रही,
खुद अपने ही दीवालों से।
जनता ही देश है,
जनता ही राष्ट्र है;
जनता जनार्दन है,
जनता ही श्रेष्ठ है।

पर जनता आज व्याकुल है,
जनता ही बेहद परेशान है;
अपनी ही मातृभूमि में,
अपने ही देश में,
अपने ही घरवालों से,
जनता आजिब है,
जनता बहत हैरान है।

बेचैनी है, बेबशी है;
और बवन्डर भी है,
अवाम के मन में,
जनता के मन में;
सवालों के समन्दर भी हैं,
सौहार्द, सुख, चैन के दुश्मन,
घर के बाहर ही नही,
घर के अन्दर भी हैं;
अपना ही घर क्यों जल रहा है,
खुद अपने ही मशालों से।

अमन चैन,
जनता मांगे,
सौहार्द प्रेम,
जनता मांगे,
रोजी रोटी,
जनता मांगे,
सस्ती बिजली,
जनता मांगे,
अच्छी शिक्षा,
जनता मांगे,
अच्छी सड़कें,
जनता मांगे,
रोजगार जनता मांगे;
क्यों मुल्क को उलझा दिया,
अनावश्यक सवालों से।

मै भारत बोल रहा हूँ


आज मै बहुत दुखी हूँ,
मै बहुत स्तब्ध हूँ

ऋषियों ने, महात्माओं ने,
मेरा पालन किया, पोषण किया;
सम्राटों ने, राजाओं ने,
मुझे समृद्ध किया, सशक्त किया;
विदेशी आक्रान्ताओं से,
मेरा रक्षण किया;
जल जमीन पवन और,
विविध खनिज संपदाओं से,
मैं सहर्ष पूर्ति की,
आपूर्ति की;
विविध भाषा, जाति और धर्म का,
एक सुन्दर सौहार्दमय राष्ट्र बना;
सभी में प्रेम और भाईचारे के,
पुष्प पल्लवित हुए।

क्या हो गया, हमारे बच्चों को,
कभी जाति के नाम पर,
कभी धर्म के नाम पर,
कभी भाषा के नाम पर,
कभी क्षेत्र के नाम पर;
कैसा खुनी संघर्ष,
चल रहा है;
कोई राम का नाम लेकर,
सड़कों पर गोलियां चलाता है;
कोई रहमान का नाम लेकर,
उग्र प्रदर्शन, आगजनी करता है;
ऐ जज्बाती गोलियां और बोलियाँ,
मुझे छलनी कर रही हैं;
मेरे सीने को चीर रही हैं;
मुझे बीमार, असहाय
मजबूर बना रही हैं;
मै कराह रहा हूँ,
दर्द से;
आह निकल रही है,
मेरे कलेजे से;
मेरे ऊपर आघात हो रहा,
प्रतिघात हो रहा है;
मै घायल बेबश,
भारत बोल रहा हूँ।

पानी दूषित हो गया,
हवा जहरीली हो गई;
वन जंगल सारे कट गये,
खनिज संपदा सारी लुट गई;
धर्म का प्रभुत्व,
अर्थ में प्रभुत्व,
समाज में प्रभुत्व,
और राजनीतिक प्रभुत्व;
प्रभुत्व, शक्ति और महत्वाकांक्षा ने,
सबके मन को,
विषमय कर डाला,
दूषित कर डाला;
आपसी खूनी रंजिश और संघर्ष ने,
मुझे निरीह निर्बल कर डाला;
मै बेबश और व्याकुल,
भारत बोल रहा हूँ।

आमजन बहुत परेशान है,
व्याकुल और हैरान है;
आपस में लड़ाना छोड़ दो,
नफरत फैलाना छोड़ दो;
सबको सुख चैन से जीने दो,
शांति सौहार्द में रहने दो;
तेरी हैवानी हरकत से,
भारत का मान गिर जायेगा;
तेरे तुगलकी फरमानों से,
विदेशी हाथों बिक जायेगा;
तेरी नादानी, नासमझी से,
ऐ खुद ही नष्ट हो जायेगा;
मै परेशान, हताश, निराश
भारत बोल रहा हूँ।

नकाबपोश शूरवीर


नकाबपोश
नकाबपोश शूरवीरों ने,
अद्भुत इतिहास बनाया है।
मुंह पर मास्क पहन रात्रि में,
कैंपस में घुस जाते हैं;
डंडे पत्थर कुल्हाड़ी,
गर्ल्स हास्टल में बरसाते हैं;
निहत्थे बालिकाओं पर,
सम्पूर्ण वीरता दिखाया है।

वीर रस
मुंह को छिपा के मास्क से,
रात्रि में निकल पड़े;
कुल्हाड़ी डंडे पत्थरों से,
बालिकाओं पर बरस पड़े;
चीख चिल्लाहटों से,
गर्ल्स हॉस्टल पुरे भर गये;
वीरता मर्दागनी तुम,
निहत्थे गर्ल्स पर दिखा गये;
बेमिशाल वीरता का,
मिशाल कोई है नही;
बहादुरी पर प्रश्न का,
सवाल कोई है नही।

भक्ति
जय जय नकाबपोश वीरों-2
तुम हो बहादुर-2
तुम असली हीरो;
जय जय नकाबपोश वीरों।
रात्रि में चेहरा छुपाकर,
गर्ल्स हॉस्टल में घुसते;
पत्थर डंडे कुल्हाड़ी,
निहत्थों पर वार करते।

चालीसा
जय जय जय नकाबपोश गोसाईं,
तूने अजब वीरता दिखाई;
रात्रि समय तूने भेष छुपाकर,
डंडे कुल्हाड़ी पत्थर लेकर,
गर्ल्स हॉस्टल में तुम घुस आये,
निहत्थे गर्ल्स पर हथियार चलाए।

शायरी
तेरे जैसा वीर वफादार न हुआ, न होगा;
तेरी नमक हलाली, वफादारी पर,
तेरा आका, तेरा बोस,
मेहरबान जरूर हुआ होगा।
तूने अपनी जान की, सुरक्षा की,
तनिक परवाह नही की, फिकर नही की;
 तेरी बचन परस्ती, तेरी वादा परस्ती देख,
तेरा मोगाम्बो जरूर खुश हुआ होगा।

तूने मां और मातृभूमि पर,
बड़ा उपकार किया है;
क्योंकि नकाबपोशी हथियारबंद होकर,
मां भारती की बेटियों पर,
प्रहार किया है, प्रहार किया है।

सब लल्लू हैं क्या जाने,
देशप्रेम क्या होता है!
तूने सबको समझा दिया,
देशप्रेम क्या होता है।
नकाबपोश बनकर कैंपस में घुसना,
देशप्रेम है;
हथियार लेकर रात्रि में गर्ल्स हॉस्टल में घुसना,
देशप्रेम है;
निहत्थे बालिकाओं की चीख पुकार के बावजूद,
उनपर कातिलाना वार करना,
देशभक्ति है;
शिक्षा के मन्दिर में,
डर का आतंक फैलाना,
देशभक्ति है;
आखिर यही तो है,
देशभक्ति और देशप्रेम;
मां भी खुश और मां भारती भी खुश;
गर्व है, नाज है,
ऐसे वीर सपूत पर,
मगैम्बो तो जरूर खुश हुआ होगा।

बुंदेलों
नकाबपोश शूरवीरों की,
हम सबने देखी कहानी है;
निहत्थे निर्बल छात्राओं पर,
इन सबकी दिखी मर्दागनी है।
पुलिस प्रशासन के रहते,
ऐ कैंपस में घुस जाते हैं;
डंडे पत्थर कुल्हाड़ी,
गर्ल्स हॉस्टल पर बरसाते हैं;
इतिहास की वीर गाथाओं में,
न इनकी कोई सानी है।

शाहीन बाग़ को सलाम


सलाम तेरे हौसले को,
सलाम तेरी हिम्मत को,
तेरे जज्बे को सलाम,
तेरे साहस को सलाम

तू एक जिन्दा नजीर है,
भारत की एकता की,
अखंडता की,
तू एक जिन्दा मिशाल है;
संविधान की, देश की,
लोकतंत्र की;
हर जाति, हर धर्म,
हर भाषा, हर क्षेत्र,
तुझमे समाहित है, तुझमे शामिल हैं;
कश्मीर से कन्याकुमारी,
गुजरात से नागालैंड,
पूरा भारत तेरा साहिल है,
तेरा साथी है;
सौहार्द और संयम के सूत्र में,
एकता की डोर में,
सम्पूर्ण भारत को पिरोया है,
बेमिशाल भाईचारा बनाया है;
शाहीन बाग़ तुम्हे शुक्रिया,
तुम्हे बारम्बार प्रणाम।

धर्म और पंथ के,
लंग अल्फाजों एवं एहसासों,
तूने किनारे कर दिया;
संविधान, आंबेडकर और गांधी,
को सीने से लगा है;
भारत जय भारत भारत विजय,
के गीत से गुंजायमान,
सम्पूर्ण शाहीन बाग़ हुआ,
भारत की शान तिरंगा झंडा;
जन गन मन के गीत से,
गुंजित पूरा आसमान हुआ;
तू राष्ट्रभक्त है, तू देशभक्त है,
तेरी वतनपरस्ती, वतन निष्ठां को,
दिली फक्र और सलाम।

बार तुम्हे उकसाया गया,
आरोप लांछन लगाया गया;
डराया गया, धमकाया गया,
भ्रम और भ्रान्ति फैलाया गया;
कभी मुग़ल, कभी पाकिस्तान,
कभी आतंकी, कभी गद्दार,
शांत शाहीनबाग़ पर,
तमगे पर तमगा लगाया गया;
पर तूने समझदारी, संयम और सौहार्द का,
अजब आइना दिखाया है,
शांति, अहिंसा और सत्याग्रह का,
तूने इतिहास बनाया बनाया है;
तुम श्रेष्ठ हो,
तेरी सर्व श्रेष्ठता को सलाम।

संविधान, लोकतंत्र और देश,
बचाने की इस महामुहिम में,
नारियां है, बच्चे हैं,
बूढ़े हैं, जवान हैं;
अनपढ़ भी हैं,
पढ़े लिखे भी हैं;
इंजीनियर, प्रोफेसर, विद्यार्थी,
व्यापारी और मजदूर भी हैं;
आलीशान बंगलों,
महंगी गाड़ियों से बाहर,
कड़क ठण्ड में,
आजादी का जंग लड़ रहे हैं;
आवाज बुलंद कर रहे हैं;
जब सत्ता, सरकार निरंकुश हो जाते हैं,
अन्यायी अत्याचारी हो जातें हैं;
राजनेता और संगठन,
पार्टियाँ और पैरोकार,
जब असहाय और मजबूर,
हो जाते हैं,
फिर देश की अवाम को,
आम जनता को, नागरिक को,
शाहीन बाग़ बनना पड़ता है;
संविधान बचाने के लिए,
तंजीम बचाने के लिए,
तेरी इस पहल को, हलचल को,
शुक्रिया और सलाम।

तू जिन्दा रहे,
सलामत रहे,
तेरी लव जलती रहे;
तेरे नन्हे दीपक ने,
पूरा देश आलोकित किया है;
तन्द्रा और तन्हाई से,
ग्रसित आवाम को,
तूने जीवन दिया है;
तुझसे बहुत आशा है,
बहुत उम्मीद है;
इतिहास के निर्णायक मोड़ पर,
तू भावी भारत की तस्वीर हो;
तू ज्वलन्त और जिन्दा प्रेरणा हो,
तुम देश की दिशा हो,
तुम यथार्थ भारत हो,
तुम ही भावी भारत हो;
तेरा हौसला सलामत रहे,
तेरी हिम्मत सलामत रहे;
शांति संयम सौहार्द,
शक्ति तुझमे बनी रहे;
तेरे विवेक बुद्धि और बल को,
बारम्बार प्रणाम;
सलाम तुझे सलाम।