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Saturday, August 29, 2020

अभी अवशेष है।


आंखे ओझल है,
मन बोझल है,
तन अस्थिर है,
मन विह्वल है;
सांसे टूटती है,
फिर जुड़ती है,
जुड़ जुड़कर,
फिर टूटती है,
कदम लड़खड़ाते,
ढहते है, डगमगाते है;
पर मैने हिम्मत नही हारा है,
अभी तो ऊर्जा बहुत सारा है;
बदलेगी दस्तूरे जीवन,
चाहे कैसा भी परिवेश है।

माना कि वक़्त नाजुक है,
परिस्थिति प्रतिकूल है,
लोग खफा है,
बेवफा है;
भाग्य की भयानक चाल है,
जीवन मे भूचाल है;
हर बात, हर काम,
मकाम से पहले,
जी का जंजाल बन जाता है;
नेकनीयत और पावन पहल भी,
जालिम सवाल बन जाता है;
पर अशान्त अवनि के आंचल से,
सुकृति बनना अभी शेष है।

लाखों कांटो के मध्य पुष्पित,
सुगंधित पुष्प को खिलना है,
गिरना गिरगिर कर उठना,
सम्भलना, सम्भलकर चलना है;
आफ़ते मुसीबत चुनौतियाँ,
इनको आनी जानी है,
काल गरल के स्याही से ही,
लिखनी हमे नई कहानी है;
सामान्य पुरुष साँसतों को झेल,
बनता जाता युग विशेष हैै।
29.08.2020