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Tuesday, July 27, 2021

सिपाही

मैं एक सिपाही हूँ।

सेवा करता हूँ,
अपने देश की,
हिफाजत करता हूँ,
अपनी माटी की,
अस्मिता के लिए रहता हूं,
सदैव तत्पर,
जान की बाजी भी लगा देता हूँ,
देश का मान गौरव बढ़ाने के लिए,
बचाने के लिए,
क्योंकि,
मेरा देश,
मेरी माटी,
मेरे जान से ज्यादा प्यारी है,
न्योछावर कर सकता हूँ,
अपना जीवन,
सौ नही हजार बार,
मेरा मुल्क,
मेरा वतन,
मेरा अभिमान है,
मेरी दुलारी है।

पर कभी कभी सोचता हूँ,
क्या वास्तव में,
मैं देश सेवा करता हूँ,
माटी की हिफाजत करता हूँ?
या फिर देश और माटी के नाम पर,
सनकी शासको,
अन्यायी राजाओं महाराजाओं,
की चाकरी करता हूँ,
और बड़े गफलत में रहता हूँ
कि मैं माटी और देश की,
रक्षा करता हूँ।

कुर्सी धारियों के,
बहसी बकवास इरादों,
जुमले व फ़र्ज़ी वादों,
की चक्की में पिसता हूँ,
उन्ही की चिल्ली सपनों को,
देश का आदेश मानकर,
जान की बाजी लगा देता हूँ,
सोचता हूँ,
देश सेवा कर रहा हूँ।

कुर्सीधारी खुद देश बन जाते हैं,
देश बनकर,
मन के घोड़े दौड़ाते हैं,
फरमान हुक्म चलाते हैं,
सिपाही इनके हुक्म को,
इनके आदेश को,
देश और माटी की सेवा समझकर,
जान कुर्बान कर देता है।

देश और माटी की सेवा,
परम् है महान है,
सर्वोत्तम पुनीत स्वाभिमान है,
स्वर्ग से भी श्रेयस्कर,
पुण्य है,
पावन धाम है,
पर अकलान्ध और हब्शी शासको के,
मनमानी अध्यादेशों के लिए,
कुर्बान होना,
जान देना,
क्या देश सेवा है?
क्या माटी की हिफाजत है?

जब सनकी शासक,
अत्याचार करता है,
अन्याय करता है,
लूटता है,
देश को बर्बाद करता है,
फिजूल के फासलों से,
देश खस्ताहाल एवं तंगहाल करता है,
एक के बाद एक,
भ्रष्टाचार करता है,
जनता के साथ,
बुरा व्यवहार करता है,
जनता जब विरोध करती है,
विद्रोह करती है,
तो मुझको इस्तेमाल करता है,
देश के नाम पर,
देश की हिफाजत के नाम पर।

दुविधा अपार है,
क्या उचित है क्या अनुचित?
हां गृहस्थी के अर्थ भी तो चाहिए,
देश गृहस्थी और सुविधा से बढ़कर है,
वास्तव में देश और गृहस्थी की बात होगी,
तो मैं देश चुनूँगा,
पर देश और सनकी शासको को चुनना हो
तो मैं क्या करूँ,
किसे चुनूँ,
दुविधा है कि,
कौन समझेगा इस अवस्थिति को,
लोग तो शासक को देश,
देश को शासक मान बैठते हैं,
शासक का अपमान,
देश का अपमान समझते हैं,
शासक की रक्षा ही,
देश की रक्षा समझते हैं।

Sunday, July 11, 2021

जीना सीखिए

आपको मुझमे सकून दिखता है,
जो मेरे पास है ही नही;
आपको लगता है,
मेरे मन मे कोई व्यथा नही,
कोई तकलीफ नही;
मुझे कोई गम नही,
न तो मुझे जिंदगी से कोई गिला नही,
न ही कोई शिकायत है,
आपको लगता है,
आरामतलब है मेरी जिंदगी,
खुशियों से भरी है मेरी जिंदगी;
मन की असीम गहराई में,
तूफानों से आप रूबरू नही हैं,
मन मे दफन कई सवालों से,
आप वाकिफ नही हैं,
हंसते मुस्कराते चेहरे पर मत जाइये,
यह तो बस यूँही दुनिया को दिखाने के लिए है,
क्योंकि मनहूस चेहरे,
लोगों के लिए अपशगुन लगते हैं,
गमजदा आप भी हैं,
मुझे एहसास है,
तकलीफ आपको भी है,
मुझे खबर है,
पर यही जीवन है,
हम खुशियों के महल खड़े करते करते,
उम्र गुजार देते हैं,
पर वक़्त बेवक्त समय आ ही जाता है अंतिम,
जर हो जाता है शरीर,
खत्म हो जाती है जीवन रागिनी,
यही होता है,
सबके साथ,
आपके साथ और हमारे साथ भी।
जीने की कला खोज निकालिये,
इन्ही तन्हाइयों में,
तुफानो के संग,
नृत्य करना सीख लीजिये,
आफतों को दोस्त बना लीजिए,
मुस्कराइए इन्ही के साथ,
सुन्दर पल का इंतज़ार मत कीजिये,
जो पल है,
उन्ही में अपने को ढाल लीजिये,
यही सफल जीवन है,
यही सुन्दर जीवन है।

Monday, July 5, 2021

परिभाषा और दर्शन

वक़्त के अबाध बहाव के साथ
व्यक्ति का व्यक्ति के प्रति,
दुनिया के प्रति,
पदार्थ जड़ जीव जन्तु के प्रति,
समस्त रचना,
समस्त ब्रह्मांड के प्रति,
खामोशी, एहसास, सुख एवं दुख के प्रति,
लाभ हानि, जीवन मरण के प्रति,
अच्छाई एवं बुराई के प्रति,
हर चीज, हर भाव,
हर क्षण प्रतिक्षण के प्रति,
समझ, अनुभव
परिभाषा और दर्शन,
बदलता रहता है,
वस्तु, स्थिति और व्यक्ति के प्रति,
व्यक्ति का दर्शन,
परिभाषा और परिकल्पना,
परिवर्तनशील रहता है,
परिवर्धित, परिवर्तित होता रहता है,
जानकारी और अनुभव में,
बदलाव होता रहता है।
परिभाषा और दर्शन,
समय और परिस्थितियों के सापेक्ष होते हैं,
वस्तुस्थिति बदलती है,
परिभाषा और दर्शन बदल जाते हैं।
आज के अनुभव,
सालों बाद के अनुभव में,
सालों पहले के अनुभव में,
जाहिर भेद हो जाता है।
हर चीज,
अनियत, अस्थिर और परिवर्तनशील है। 
सुख और दुख भी,
कड़वे मीठे अनुभव भी,
विचार कल्पना भी,
मर्त्य है।