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Monday, April 22, 2019

नदी किनारे माँ के साथ


नदी का किनारा था। बालू की रेत फैली हुयी थी। बहुत प्यास लगी थी। थोडा सा पानी पिए क्योकि पानी बहुत खारा था । पर माँ बोली, ‘ बालाजी के समय पानी बहुत अच्छा था जब यहाँ भीड़ पर भीड़ थी, हम जरा सा खुरच देते थे तो पानी ऊपर आ जाता था’ ।
ठीक मैंने थोड़े बालू को खुरचा पर पानी तो नही दिखाई दिया, पार एहसास रूप में मैंने पानी पिया, जो नमकीन नही था ।
शाम को पडोस में काफी संख्या में लोग इकठ्ठा थे जैसे काम पड़ा हो ! कोई व्यक्ति था जिससे मैंने खूब हंस हंस के बात की । मै लगभग भीड़ के मध्य बैठा हुआ था । प्रकाश कम था । अँधेरे जैसे स्थिति थी । पर सबका चेहरा आसानी से पहचाना जा सकता था ।
वहां मैंने आरती को एक गर्भवती स्त्री के रूप में देखा । उसकी छोटी बहन भी थी । ऐसा लगा जैसे छोटी बहन से सम्बन्धित कुछ है जिससे की यहाँ भीड़ है । दोनों का लोगों के बीच हँसता हुआ चेहरा अनायास ही ध्यान खीच लेता था ।
मै किसी अनजान पर महत्वपूर्ण व्यक्ति से किस अहम विषय पर बात करता रहा । अपना सिर कभी कभी नीचे करके हँसना फिर बाते करना प्रक्रिया जारी थी ।
इतने में अचानक कोई लड़का खबर दिया की वह आग लगा के जल गयी । एक बार तो मुझमे जरा भी हलचल न हुयी । पर अगले ही क्षण , माँ की व्याकुलता देख, मै उठा और पांच के दो सिक्के जो मेरे थे मैंने उठाया, और अन्य सिक्के मैंने फेक दिए, फिर कहा की जिसका हो ले लेना । दौड़ते हुए पहुच गया घर पर ।
मैंने देखा घर पर सब शांत । कुछ नही हुआ, सब कुछ सामान्य है । पीछे आती मां को कहा, ‘कुछ नही है, लडके झूठा बोल रहे थे पर ज्यों अंदर गया,  अजीब सा लगा । अजीब सा दृश्य कुछ नही बचा सिवाय रीढ़ के हड्डी का और थोडा सा कपाल । अगल बगल राख का ढ़ेर । एक बच्चा था । उसका कुछ पता नही । रह रह कर कभी उसका तो कभी कभी बच्चे का चेहरा याद आता । हडबड़ाहट में मैंने माँ को धीरज दिलाया और बचे हुए भाग को घसीटते हुए ले गया , पड़ोस के घर के पीछे रख दिया । बहुत ही गर्म था वह । मुशकिल से वहां ले जा पाया क्योकि मन में यह बात थी कि कोई जान न पाए । थोडा बहुत आग अब भी लगी हुयी थी । मुड़कर देखा तो कपाल के पीछे एक प्रकाश हुआ और फिर शांत हो गया । सम्भवतः कनेर का पेड़ था जिसके नीचे रखा था ।
अकेला मडहा था । उसके आगे एक और अंदर एक एक कक्ष था । अंदर के कक्ष में ऐसा हुआ ।
अवशेष को ऊपल पाथने के स्थान से ले जाते हुए, ऊसर के पार, घर के ठीक पीछे, खेत में रखा । सोचा की कोई देख न पावे । मामला शांत हो जाये । बहाना बना देंगे की मायके गई है । पर क्या था, पड़ोस की लडकी लगभग ६ साल, सब कुछ देखी और तेजी से हंस कर बोल पडी, ’अरे उसकी मम्मी जल कर मर पड़ी’।

लौटते समय दिल पसीज गया, आंसू टपक पड़े, रहा नही गया, माँ से लिपट गया पर तुरंत भाव को बश में किया और सोचा की कही पुलिस आकर हमको परेशान न करे ।
बेचारी शाम के समय शायद खाना बनाने जा रही थी । आर्थिक टंगी से बेहाल थी । लडके को अक्सर माँ लिए रहती तो वह खाना पकाती । जैसा की माँ नही थी, एक अजीब हलचल मन में की ‘जीवन अंत, परेशानी अंत’ । अंततः जल गयी ।पति कही गया था, कोई अच्छा काम धाम नही था ।
मेरे मन में कभी उसका चेहरा, बच्चे का झिलमिल दृश्य आता पर खुद पे पूरा काबू ।
चलिए मामला शांत हो जाये, कोई अन्य शादी हो जायेगी । अभी कहाँ कितनी उम्र हुयी है? पर बहुत कष्ट और टंगी झेला उसने! भीड़ जुटी पर नाममात्र की । कुछ आसपास के लडके अपने भोले भाले अंदाज में आते दिखाई दिए । और...........................

आंख खुली, अरे यह सब क्या? यह सच नही है? यह तो स्वप्न था, कुछ देर तक कुछ सोच नही पा रहा था, कही सचमुच तो ऐसा नही हुआ!
पर उसका दृश्य कुछ और जगह का था और यह कही और का । वह शाम था, अभी लगभग २.१० हुए हैं । एक सहमा दिल घबडाया बाहर धीरे धीरे निकला, सब सूनसान, अरे सब कुछ ठीक तो है, धीरे मै खुद को संभाल सका और बैठा पढने............................................