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Thursday, February 29, 2024

गुरु ग्रन्थ साहिब में अनेक संतों की वाणी

 



·       संकलन का कार्य प्रथम संस्थापक गुरु नानकदेव के समय से ही शुरू हुआ।

·       सन 1604 में पंचम गुरु अर्जुन देव द्वारा संकलित और सम्पादित किया गया।

·       सन 1705 में दशम गुरु गोविन्द सिंह द्वारा इसे पूर्ण किया गया।

·       कुल पृष्ठ 1430 हैं।

·       गुरुमुखी लिपि और हिन्दी, पंजाबी, ब्रजभाषा, खडी बोली, संस्कृत, और फारसी इत्यादि भाषाओँ और बोलियों में लिखी गई है।  


आदि ग्रन्थ साहिब को गुरु मानते हैं और परम स्थान पर रखकर सम्मानित करते हैं।

 

सन्त

शबद

सन्त

शबद

कबीर दास

224

भीखन जी

2

नामदेव

61

सूरदास

1

रविदास

40

परमानन्द

1

त्रिलोचन जी

4

सैणजी

1

फरीद जी

4

पीपाजी

1

वेणी जी

3

सधना

1

भगत धंना जी

3

रामानंद

1


संत शिरोमणि रविदास के दोहे

 



ऐसा चाहूं राज मै,          

जहाँ मिले सबन को अन्न;

ऊंच नीच सब सम बसे,

रहे रैदास प्रसन्न ।

 

पराधीनता पाप है,

जान लहू रे मीत;

रैदास दास पराधीन सो,

कौन करे हैं प्रीत ।

 

रैदास जनम के कारने,

होत न कोई नीच;

नर कू नीच कर डारि हैं,

ओछे करम की कीच ।

 

देता रहे हजार बरस,

मुल्ला चाहे अजान;

रैदास खोजा न मिल सकाइ,

जौ लौं मन शैतान ।

 

रविदास हमारौ राम जी,

दशरथ के सुत नाहिं;

राम हमहूँ में रमि रहे,

विसब कुटुम्बह माहि ।

 

रविदास मदुरा का पीजिये,

जो चढ़ि चढ़ि  उतराय;

नाम महारस पीजिये,

जो चढ़ न उतराय।

 

का मथुरा का द्वारका,

का काशी हरिद्वार;

रविदास खोजा दिल आपना,

तऊ मिला दिलदार।

 

रविदास ब्राह्मण मत पूजिए,

जो होए गुणहीन;

पूजहिं चरण चांडाल के,

जो होवे गुण प्रवीन।

 

धर्म हेत संग्राम मंह,

जो कोई कटाए सीस;

सो जीवन सफल भया,

रैदास मिले जगदीश ।

 

दिन दुखी के हेतु जउ,

वारे अपने प्रान;

रैदास उह नर सूर को,

सांचा क्षत्री जान ।

 

रैन गवाई सोई कर,

दिवस गवाई खाय रे;

हीरा यह तन पाई कर,

कौड़ी बदले जाय रे।

 

जात जात के फेर में,

उरझि रहे सब लोग;

मनुष्यता कू खात है,

रविदास जात का रोग ।

 

रविदास जात मत पूछ,

का जात का पात;

ब्राह्मण खत्री वैश्य सूद,

सबन का इक जात ।

 

रविदास इक ही नूर से,

जिमि उपज्यों संसार;

ऊंच नीच किह विधि भये,

ब्राह्मण और चमार ।

 

पराधीन को दीन क्या,

पराधीन बेदीन;

रविदास सब पराधीन को,

सबही समझे हीन।

 

जाति जाति में जाति है,

ज्यो केतन के पात;

रैदास मानुष न जुड़ सके,

जब तक जाति न जात ।

 

हिन्दू पुजाई देहरा,

मुसलमान मसीत;

रविदास पूजे उस राम को,

जिस निरंतर प्रीत।

 

जो खुदा पश्चिम बसे,

तो पूरब बसत राम;

रैदास सेवो जिह ठाकुर को,

जिसका ठांव न नाम ।

 

मस्जिद से कछु घिन नही,

मंदिर से नही प्यार;

दोउ मह अल्लाह राम नही,

कह रविदास चमार ।

 

रविदास एक ही बूँद से,

सब भयो विस्थार;

मूरख है जो करत हैं,

वरन अवरण विचार।

 

जो बस राखे इन्द्रियां,

सुख दुःख समझ समान;

सो असरित पद पाईगो,

कहि रविदास बलवान ।

 

अंतर गति रूचौ नही,

बाहरि कथे उजास;

ते नर नर कहि जायेगे,

सत भासे रविदास ।

 

धन संचे दुःख देत है,

धनमति त्यागे सुख होई;

रविदास सीख गुरुदेव की,

धनमति जोरे कोई ।

 

रविदास कंगन और कनक में,

जिमि अंतर कछु नाहि;

तो सो रही अंतर नहीं,

हिंदुअन तुरकन माहि ।

 

हरि सा हीरा छांड के,

करे और की आस;

जे नर जोजक जाहिंगे,

सत बाके रविदास ।

Friday, February 23, 2024

दस पारमिता सूत्र/श्लोक





दानं शीलं च नेखमं, 

वीर्यं पन्ना च पंचमं;

खान्न्ति सच्च अधिट्ठानम,

मेंत्ता उपेक्खा च दशमं।

Wednesday, February 21, 2024

दस शील- बुद्ध (Mahatma Buddha)



बुद्ध (Mahatma Buddha) ने सच्ची और सही जीवनशैली के लिए दस शील सिद्धांत बताए है

वे सिद्धांत क्रमशः

1. अहिंसा

2. सत्य

3. अस्तेय (चोरी न करना)

4. अपरिग्रह(किसी प्रकार की संपत्ति न रखना)

5. मद्य सेवन न करना

6. असमय भोजन न करना

7. सुखप्रद बिस्तर पर नहीं सोना

8. धन संचय न करना

9. स्त्रियो से दूर रहना

10. नृत्य गान से आदि  दूर रहना