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Friday, May 10, 2019

मिला नही, अकेले रहने का डर

मिला नही, अकेले रहने का डर;
सूनापन,  सहमापन, तन्हाईयां,
कुछ कमी सा, अकेलापन,
अधूरी जिन्दगी, अधूरे सपने,
बहुत कुछ किया, कुछ छूट गया,
समय नही शेष, शक्ति नही अवशेष;

फिर मिला तो, बिछुड़ने का डर;
कब कैसे क्यों,कहीं भी
न मिलने से जादा दर्दनाक,
बिछुड़ने का संशय;
तो वास्तविक बिछुड़ना तो,
बहुत भयंकर होगा;

बिछुडन कभी आक्रोश से, कभी आवेग से;
तो कभी मालूम नही क्यों;
बिछुडन कैसे सहूँ, क्या उपाय करूँ;
क्या उपाय हमेशा सफल होते हैं?
यह तो कहीं और किसी पर
निर्भर करता है;

तो क्या ऐसे ही जीवन रहेगा?
आस्था संशयात्मक, भ्रमात्मक
शायद हो;
क्योकि ऐसा ही तो देखते आया हूँ,
अब तक;
फिर हमारे लिए क्या अलग होगा?
कभी नही;

फिर भी जीना है,
मरना है, फिर जीना है;
जीना है, फिर मरना है;
शायद यही शाश्वत है,
निरंतर है,
और सत्य भी

जनवरी २०१२

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