Followers

Friday, May 10, 2019

धरती की आवाज

धरती की आवाज

कर सको न शिकायत तुम मुझसे
तुझे आगाह कराने आई हूँ
एहसान फरामोश ये इंसानों
तेरी औकात बताने आई हूँ

तुझको था मैंने जनम दिया
दी थी तुमको सुंदर दुनिया
सम्पूर्ण सम्पदा से सजी हुयी
सुनहली और हरियाली दुनिया

पर तुमने सब मतियामेल किया
यह बात  बताने आई हूँ
एहसान..............................

मैंने तो तुमको जनम दिया
पर तूने महत्वकांक्षाओ को जनम दिया
हो लालच ईर्ष्या के वशीभूत
अनुचित और निरर्थक करम किया

मानवता का तूने कत्ल किया
यह राज बताने आई हूँ
एहसान.........................

जब छोटा था तो था निर्विकार
दुर्व्यसनो से था कोसों दूर
हो मदांध मन मष्तिष्क से
अय्याशी में हो गया चूर

खुद से खुद को  नष्ट किया
यह तुमको समझाने आई हूँ
एहसान...............................

मेरे सीने को चीर चीर
(मेरे सीने को कर चीरफाड़)
मेरे मांस लहू को उड़ा रहा
सोचो कल तेरा क्या होगा
जब कतरा भी न बचा रहा

तूने भावी पीढ़ी बरबाद किया
यह दृश्य दिखाने आई हूँ
एहसान............................

चल रही विकास की अंध दौड़
मच रही हर जगह त्राहि त्राहि
हो रहा संसाधनों की लूट घसोट
मानव मानव पर है पड़ा टूट

सर्वनाश का बीज तूने खुद बोया
यह यकीन दिलाने आई हूँ
एह्सान..........................
पेड़ पहाड़ पानी और पवन
ये वसुंधरा भी तुम पर अर्पित
बहुभांति बहुरात्नो से सजी धरती (दुनिया)
सारे संसाधन थे तुम पर समर्पित

रखवाली भी न कर सका इसकी
यह एहसास कराने आई हूँ
एहसान............................

जा सुधर हे मानव अब भी है समय
है महा विनाश से बच सकता
ले पकड़ माँ का ममतामयी आंचल
तुम खुद ही खुद को बचा सकता

है प्रकृति की रक्षा तुमको करना
यह विवेक कराने आई हूँ
एहसान................................

No comments:

Post a Comment