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Friday, May 10, 2019

मेरे पास

मेरे पास न कोई माँ है, न ही कोई बाप
न ही कोई भाई है, और न ही कोई साथ
है तो सिर्फ एक बहन, वह भी एक सीमा तक
क्योकि दुनिया के बंधन से किसको कहां फुरसत
न तो है कोई स्वार्थ, न ही कोई सहारा
दिशाहीन, गतिहीन, गगन में भटका एक सितारा
चाह नही सम्राट बनू, निरीहों पर राज करूँ
शक्ति विलास पाखंड में इठलाऊ और नाज करूँ
चाह नही परिवार बनाऊ, द्वेष जगत के प्रति फैलाऊ
आह हाय कर धन ले ले आऊ, सजा धजा एक वंश चलाऊ;
चाह नही मुझे सुगम प्रतिष्ठा,
मन का बैर होठों की निष्ठा;
चाह नही मै मसीहा बनूँ, निशदिन पूजा जाऊं;
घोडा गाडी नौकर महलो का सबसे बड़ा धनवान बनू
धोखा दू और जेब मरोडू, ऐसा न शैतान बनू
क्या तेरा क्या है मेरा? तो क्यों मै फिर बेईमान बनूँ
सोच सदा बस यही मुझे, किसके कितना मै काम आऊ
अंधे की आंख लंगड़े का पैर, इक पल के लिए बन जाऊ,
जित देखू मुझे, एक हँसता हुआ नजारा मिले,
आंसू हो मगर ख़ुशी के, न कोई बेसहारा मिले,
कितने पैगम्बर आये गये, पर क्या हुआ कष्ट का अंत?
मै तो अल्प बुद्धि का प्राणी, दुनिया का कष्ट है अनंत;
मिलती है सुखानुभूति मुझे, जब सेवा के पग चलता हूँ
दुःख सागर में दुबकी लेकर, कुछ बूँद सुख की निगलता हूँ;

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