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Friday, May 10, 2019

मै कहाँ हूँ?

मै कहाँ हूँ?
मुझे नही मालूम की मै कहाँ हूँ?
लम्बा है यह सफर की बहुत छोटा है
बढ़िया है ये सफर की बहुत खोटा है,
दिए गये हो बुझ, क्या आह का अँधेरा है?
कि झिम्झिमाती बूँद भरा आस का सबेरा है!
मिला मुझे है क्या? न जाने क्या मिलेगा?
टपकेंगे सिर्फ आंसू, या कोई घटा दिखेगा,
है कहाँ वो मंजिल जहाँ से में खड़ा हूँ?
है चीज़ क्या जिसके पीछे मै पड़ा हूँ?
सुखदाई, स्थायी!
काश मै वो मंजिल स्पष्ट देख पाता!
मिलता नही तो मै यूं ही खीच लाता,
आता वही जादा जिसे चाहा नही जाता,
चाहा जिसे जाता है हाय! अक्सर पाया नही जाता,
क्या इस जहाँ से मुख मोड़ ले तो अच्छा है?
इंसान है हम अरे! न कोई बच्चा है
आह भरी आवाज में हम भी गुनगुनाएगे,
मालूम नही है मंजिल फिर भी पहुच जायेगे;
झिलमिलाती भीड़ का मै भी एक मुसाफिर हूँ
मंजिल बहुत है दूर तो क्या मै बेफिकर हूँ
अरे गिरूंगा उठूगा लडूगा मरुगा
जो देगी न्यारी दुनिया, वो मै सब सहूगा

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