गर कूबत नही,
देश चलाने की,
देश सम्भालने की,
तो दरख्वास्त है,
विनम्र विनती है,
गद्दी छोड़ो।
सिर्फ भौकाल ठेलना आता है,
हवाई फायर करना आता है,
फटाफट फर्राटेदार,
स्वादिस्ट बोलियों से,
उरुझाकर, फंसाकर,
आंसू टपकाकर,
मोहित सम्मोहित कर,
भावुकता का स्वांग,
बहुभाँति ड्रामेबाजी करके,
नाटक और नौटंकी करके,
हमदर्द, हमसफ़र और हमराज का,
प्रपंच करके,
दिन में तारे,
रात में उजाले का एहसास दिलाकर,
कभी हंसाता है,
कभी रुलाता है,
कभी भौकाली भौचक्के में फंसकर,
आदमी महा कंफ्यूज हो जाता है,
जब तक समझ आये,
कि कुछ गड़बड़ हुआ,
कुछ तो गड़बड़ हुआ,
तब तक बहुरूपिये का नया रूप,
नया फरमान, आदेश अध्यादेश;
तुम गिरगिट हो,
नाकाबिल अयोग्य हो,
देश चलाने में अक्षम हो,
एक घटिया प्रयोग हो,
उतरो सिंहासन खाली करो,
जब बूत नही देश चलाने की,
तो गद्दी छोड़ो।
कब तक बहकाओगे,
बहलाओगे, फुसलाओगे;
बेवकूफ पर बेवकूफ,
पूरे देश को बनाओगे;
इतिहास माफ नही करेगा,
समय माफ करेगा,
गद्दारों में शीर्ष पर,
तुम्हारा नाम लिखा जाएगा,
भद्दे और अवमानित तौर से,
तुम्हारा नाम लिया जाएगा;
गुरूर टूटेगा,
जब समय करवट लेगा,
क्यों तुले हो,
बर्बाद करने को,
देश को, देश की आवाम को,
नैतिकता का यदि बोध है,
जरा भी, जरा से भी,
छोड़ दो,
काबिज सत्ता को, सिंहासन को,
भारत को,
भारत के भाग्य पर छोड़ दो,
गद्दी छोड़ दो।
भारत में ताकत है,
भारत में शक्ति है,
हर वार,
हर तूफान,
सहने की, आगे बढ़ने की;
मृतपाय अव्यवस्था को,
नवजीवन, नवशक्ति देने की;
भारत चल लेगा,
खुद अपने पाँव,
अपने बल पर,
आगे बढ़ लेगा;
पहले भी चोटें खाई है,
अपनो से धोखे पाई है,
पर गिरकर, उठकर और संभलकर,
आगे बढ़ गया,
भारत फिर भारत बन गया;
हजार कोशिशें हुई,
भारत को तोड़ने की,
कमजोर करने की,
शासकों सम्राटों की बदनीयती ने,
बदइंतज़ामी और बदमाशी ने,
नासमझी, बेवकूफी अय्याशी ने,
चोट किया,
घात और प्रतिघात किया,
चोटिल जख्मी भारत ने,
हर हाल, काल,
प्रतिकूल परिस्थिति में,
खुद को सही सुरक्षित,
और सलामत रखा;
ए भारत के सौदागर,
तुम रहम करो,
बस इतना से करम करो,
छोड़ दो,
भारत को भारत के भरोसे,
छोड़ दो,
गद्दी छोड़ दो।
No comments:
Post a Comment