जब फुर्सत हो तो सोचना,
क्या खोया, क्या पाया?
वह भी एक दौर था,
मीलों का सफर,
पैदल किया करते थे,
आज चार कदम पैदल चलने पर,
कूल्हे हिला करते हैं,
पैर दुखा करते हैं,
जब फुर्सत हो तो सोचना क्या खोया क्या पाया।
प्रकृति पवित्र थी,
वातावरण शुद्ध था,
आबोहवा इतनी जहरीली ना थी,
बेहद खूबसूरत वन उपवन,
जंगल थे,
विविध पशु-पक्षी,
विशुद्ध सागर,
पावन जल थल थे,
जब फुर्सत हो तो सोचना,
क्या खोया क्या पाया।
नदियों का पानी पीना तो दूर,
अब नहाने से भी डर लगता है,
ठंडी वर्षा कड़ी धूप में,
बाहर आने से डर लगता है,
बहते नदी, पोखरे का जल,
बेधड़क पी लिया करते थे,
मिट्टी से सने फल,
उठा कर खा लिया करते थे,
जब फुर्सत हो तो सोचना,
क्या खोया क्या पाया।
13
April 2020
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