तू जुल्म कर,
मैं तेरे जुल्म की,
दास्तान लिखूँगा,
तेरी क्रूरता से पीड़ित,
बेवश और लाचारों की,
आवाज लिखूँगा;
मेरा जमीर,
मेरा वसूल,
मुझे इजाजत नही देता,
कि मैं चुप रहूं,
चुपचाप देखता रहूँ;
नजरअंदाज कर दूं,
दरकिनार कर दूँ,
अन्यायी अत्याचारों को,
मैं लफ्ज हूँ,
हर घाव का,
जल्लादों के जुल्म का,
मैं डरपोक नही,
मुझमे कोई खौफ नही,
बेखौफ अलाप करूँगा,
आवाज दूँगा,
वीभत्स विभीषिका के शिकार,
हर मजलूम का,
तुम बेपनाह जुल्म करो,
हिसाब मैं रखूँगा,
तुम बादशाहत दिखाओ,
तुम लाठी डंडे बन्दूक चलाओ,
पर मैं नही डरूंगा,
मैं नही डिगूँगा;
तेरी हेकड़ियों का,
तेरी हरकतों का,
हर काला चिट्ठा,
मैं सरेआम करूँगा,
खुलेआम करूँगा,
मैं चुप नही रहूंगा;
मुझे मालूम है,
मुझे आभास है,
तू नही मानेगा,
तू तांडव नृत्य करेगा,
यही तेरी फितरत है,
यही तेरी आदत है;
तू बाज नही आएगा,
तू अंजाम देगा,
अपने काले कारनामो को,
घृणित मंसूबों को;
मैं जगजाहिर करूँगा,
मैं उजागर करूँगा,
तुमको,
और तुम्हारी बदमाशी को;
करूँगा, करता ही रहूंगा;
तू क्या सोचता है?
कि तेरे खौफ के आगोश में,
हर कोई आ जाएगा,
तू क्या समझता है?
कि तेरी अंधभक्ति की आंधी में,
हर दीपक, हर चिराग,
बुझ जाएगा,
तू गलत है,
अगर ऐसा सोचता है;
गलतफहमी में है,
अगर ऐसी मनसा रखता है;
दीपक बन जलूँगा,
काली और कलुषित करतूतों की तेरी,
छिपने नही दूंगा,
विस्मृत होने नही दूँगा;
आहतों की आवाज बनकर,
किस्सा सुनाऊंगा,
तेरे गुनाहों को,
जन जन तक पहुँचाऊँगा,
इस पीढ़ी से उस पीढ़ी तक,
हर पीढ़ी तक पहुँचाऊँगा;
मैं तेरे जुल्म की दास्तान सुनाऊँगा,
तू जुल्म कर,
मैं तेरे जुल्म की दास्तान लिखूँगा।
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