इंसान ही इंसान को,
गुलाम बनाता है,
बेड़िया और जंजीर पहनाता है,
शोषण करता है,
अन्याय, अत्याचार करता है,
मजलूम बनाता है,
मजबूर, मजदूर बनाता है,
इंसान ही इंसान का,
मालिक बनता है,
इंसान को नौकर बनाता है,
इंसान पर ही बादशाहत,
रौब, अहंकार, अभिमान दिखाता है,
आखिर क्यों?
क्यों इंसान ही इंसान का,
सत्यानाश सर्वनाश करता है,
आखिर मानवता क्यों मर गई,
इंसानियत कहां खो गई?
जरूरतों का पहाड़,
ख्वाहिशों का समंदर,
आसमानी अभिलाषा,
अतिशय महत्वाकांक्षा,
प्रभाव और प्रभुत्व,
दौलत शोहरत की,
प्रचुर पिपाषा,
शायद यही है कारण,
तो फिर क्या है निवारण?
इंसान हो,
सिर्फ इंसान बनो,
न भगवान, न ही शैतान बनो।
No comments:
Post a Comment