उद्भव से लेकर अब तक,
विकास के हर दौर में,
सृष्टि के सृजन से,
शाश्वत संघर्ष,
निरंतर टकराव देखा है,
मानव और प्रकृति के मध्य,
प्रतिद्वंद्विता,
उतार-चढ़ाव देखा है,
प्रकृति की विनाशलीला,
भयंकर तवाही,
मानव मन को झकझोरा है,
आग उगलते ज्वालामुखी,
कहर बरपाते समुद्र,
तूफानी नदियां,
और विनाशकारी भूकंप,
मानव के गुरुर,
दंभ अभिमान को चूर किया,
अट्टहास पहाड़ों की,
मानव प्रयासों को,
धूल धूसरित किया है,
पिघलती धूप,
हाड़ कंपाती ठंडक ने,
मानव हृदय को,
कमजोर किया,
दुर्गम और दुष्कर वन जंगल,
मानव पर प्रहार किया,
पर मानव ने भी,
प्रकृति की हर चुनौती स्वीकार की,
सतत चले संघर्ष में,
प्रकृति को पराभव दी,
सर्वोत्कृष्टता और सर्वोच्चता,
की जीवित जिंदा प्रमाण दी।
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