कोरोना सिर्फ बीमारी नहीं,
सिर्फ महामारी नहीं,
यह एक संकेत है,
यह एक संदेश है,
प्रकृति का,
इस सृष्टि का,
पूरी मानवता के लिए।
मत हो अंधे,
मत हो अधीर,
लालच तृष्णा छोड़ दो,
विकास का कुचक्र,
मोड़ दो,
विकास नहीं सिर्फ विनाश किया है,
प्रकृति का,
पर्यावरण का,
जल जमीन जंगल का,
पर्वत पशु पक्षी का,
केवल सत्यानाश किया है,
खुद अपना ही सर्वनाश किया है।
सुविधाओं में कैद,
अभिलाषाओं में फंसे,
तूने खुद अपने हाथों,
विनाश की पटकथा लिखी है,
कोई और नहीं जिम्मेदार,
सिर्फ तुम हो,
हे मानव!
अपने विनाश, अपने सर्वनाश का।
प्रकृति ने तुमको क्षमता दी,
अनंत और असीम,
बैक्टीरिया से लड़ने का,
हर वायरस को हराने का,
हर बार तू लड़ा है,
और जीता भी है,
पर इस बार तुम असहाय हो,
लाचार हो, मजबूर हो,
दहशत और डर की साया है,
मृत्यु का भय है,
यह सब तेरी करनी है,
जिसको तुम हो भोग रहे।
स्वच्छंद ऊर्जा, शक्ति,
प्रकृति का वरदान,
भोग विलासी आलसी,
रुग्ण और अय्याशी जीवन शैली,
सुविधा भोगी आराम तलबी से,
तूने खुद ही नष्ट किया,
क्षीण हुआ, कमजोर हुआ,
खुद नैसर्गिक शक्ति का विनष्ट किया।
प्रकृति का आलंबन करो,
स्वाभाविक और नैसर्गिक,
जीवन जियो,
प्रकृति का दोहन बंद करो,
कोई ना अंतर्द्वंद करो।
प्रकृति ही ईश्वर है,
मां है, जनक है,
पोषक है, प्रतिपालक है,
प्रकृति ही रक्षक है,
प्रकृति ही शिक्षक है,
प्रकृति से प्रेम,
प्रकृति से पूजा वंदन करो,
अभिनंदन करो,
आचार व्यवहार प्राकृतिक हो,
स्वाभाविक हो,
सबल स्वस्थ सुंदर रहोगे,
यदि प्रकृति का सम्मान,
और प्राकृतिक व्यवहार करोगे।
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