हमें तुम्हारी गुलामी स्वीकार नहीं,
तुमने हमें गुलाम बनाया,
हम तुम्हारी गुलामी स्वीकार नहीं करते,
गुलामी के हर वजह का,
हर कारण का,
हम विरोध करते हैं,
शायद यही तुम्हें नापसंद है,
तुम्हें बुरा लगता है।
तुम हमें गुलाम बनाए रखना चाहते हो,
हम गुलाम बने रहना नहीं चाहते,
यही अंतर्विरोध है,
हममें और तुममें,
यही वजह है,
हम तुम्हारे नहीं होते,
तुम तो हमारे हो ही नहीं सकते।
तुम मालिकाना हक दिखाते हो,
बेड़ियां पहनाते हो,
सामाजिक बंदिशें लगाते हो,
मानसिक गुलाम बनाते हो,
इसीको संस्कार, परंपरा,
और संस्कृति बोलते हो, कहते हो,
हम इसे अमानवीय कहते हैं,
जुल्म कहते हैं,
प्रतिकार करते हैं,
आवाज उठाते हैं,
आजादी का,
मुक्ति का,
इंसानी हुकुम का,
तुम इसे अपसंस्कृति कहते हो,
इसे विद्रोह कहते हो,
हमें विद्रोही, देशद्रोही कहते हो
शायद इसी वजह से,
हमारी हर बात, हर हरकत,
तुम्हें नागवार, नापसंद लगती है।
हमारी आजादी,
यदि तुम्हें स्वीकार नहीं,
तुम्हारी गुलामी भी हमें,
हरगिज़ स्वीकार नहीं,
बन्दिशें बंधन है,
जो तुमने हम पर थोपी है,
तुम्हें मालिक बनकर रहने पर नाज है,
अभिमान है,
गुलामी हमें भी नहीं करना,
क्योंकि हमारा भी अपना स्वाभिमान है,
आखरी वक्त तक,
निरंतर यह जंग जारी रहेगी,
क्योंकि हमें हमारा भी इंसानी,
मान है, सम्मान है,
तुम्हें हमारी आजादी स्वीकार नहीं,
हमें भी तुम्हारी गुलामी स्वीकार नहीं।
14 अप्रैल 20
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