अजब खेल है,
अजब मेल है,
मानव और प्रकृति के मध्य,
अद्भुत समन्वय,
अनोखा तालमेल है।
फूफकारती है प्रकृति,
भौहें भी दिखाती है,
डराती भी है,
विनाश लीला भी दिखाती है,
नसीहत भी देती है,
तजुर्बा भी सिखाती है,
आखिर प्रकृति भी तो माँ ही है।
दुलारती है,
फटकार भी लगाती है,
पोषण भी करती है,
और मानव की गलतियों पर,
बदमाशियों पर,
लताड़ भी लगाती है,
मानव और प्रकृति का,
यह दृश्य, यह रूप,
अतुल्य है, बेमेल है।
यदि मरुस्थलीय तृष्णा है,
तो महासागर का अथाह जल भी है,
यदि सूरज की तरह तपन, कड़ी धूप है,
तो घने जंगलों की छाया भी है,
उदर अग्नि के शमन के लिए,
उपभोग हेतु संसाधन भी हैं,
यदि प्रकृति विनाश की पर्याय है,
तो प्रकृति के गोद में जीवन भी है,
यदि प्रकृति अजूबा और पहेली है,
तो प्रकृति सरल सहेली भी है,
प्रकृति निरंतर है,
प्रकृति शाश्वत है,
मानव और प्रकृति के मध्य,
अद्भुत संबंध है,
अनोखा तालमेल है।
11
April 2020
No comments:
Post a Comment