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Friday, May 10, 2019

क्या करूँ, मुझे फुरसत नही!

क्या करूँ, मुझे फुरसत नही!

करता यत्न हजार, कुछ पाने के लिए;
ख्वाबों की महफिल, सौम्य सुंदर बनाने के लिए;
ये पल कैसे गुजरे, कुछ पता नही चलता;
अभी यह, अभी वह में, है जीवन मचलता;
प्रभु की जहाँ में, जैसे जरुरत नही है;
क्या करू..............................................

इतना ही नही, कुछ और चाहता हूँ,
हर नूर जो दे सके, वो पुष्प चाहता हूँ;
हर अश्क मुझे देखे, ललचाये मेरी शोहरत;
लू जीत इस जहाँ को, करता सदा मै ये जुर्रत;
कैसे मिलेगी, अगर पन्ने में को शिरकत नही;
क्या करू.........................................

तुम हो, सही है; पर कैसे, क्यों और कहाँ हो?
कौन क्या किया, की दर्शित यहाँ हो;
मेहनत असीम की, कभी मिला नही तुमको,
चर्म की आंखे, कैसे एहसास हो तुमको;
सूर स्वस्थ है सदा , राज तुझे फिरकत नही;
क्या करू.................................................

हो संतुलन सबमे, आभास हो सबका;
चाह हो जग का, और प्यार हो रब का;
एक नन्हा सा तिनका भी, देखा ख़ुशी असीम,
बरसाया जिसे असमान, उगली जिसे जमीन;
मिला है जो तुमको, वो तेरी हरकत नही है;
क्या करूं....................................................

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