क्या करूँ, मुझे
फुरसत नही!
करता यत्न हजार, कुछ
पाने के लिए;
ख्वाबों की महफिल,
सौम्य सुंदर बनाने के लिए;
ये पल कैसे गुजरे,
कुछ पता नही चलता;
अभी यह, अभी वह में,
है जीवन मचलता;
प्रभु की जहाँ में,
जैसे जरुरत नही है;
क्या करू..............................................
इतना ही नही, कुछ और
चाहता हूँ,
हर नूर जो दे सके,
वो पुष्प चाहता हूँ;
हर अश्क मुझे देखे,
ललचाये मेरी शोहरत;
लू जीत इस जहाँ को,
करता सदा मै ये जुर्रत;
कैसे मिलेगी, अगर
पन्ने में को शिरकत नही;
क्या करू.........................................
तुम हो, सही है; पर
कैसे, क्यों और कहाँ हो?
कौन क्या किया, की
दर्शित यहाँ हो;
मेहनत असीम की, कभी
मिला नही तुमको,
चर्म की आंखे, कैसे
एहसास हो तुमको;
सूर स्वस्थ है सदा ,
राज तुझे फिरकत नही;
क्या
करू.................................................
हो संतुलन सबमे,
आभास हो सबका;
चाह हो जग का, और
प्यार हो रब का;
एक नन्हा सा तिनका
भी, देखा ख़ुशी असीम,
बरसाया जिसे असमान,
उगली जिसे जमीन;
मिला है जो तुमको,
वो तेरी हरकत नही है;
क्या
करूं....................................................
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