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Friday, May 10, 2019

जाने कैसी अनुभूति है ये?

जाने कैसी अनुभूति है ये?
पल पल मन अकुलाता है,
जाने क्यों सकुचाता है;
घुटन सी आहे बार बार
अजीब सा मन घबराता है;
क्या वजह? कुछ मालूम नही,
पर है कुछ न कुछ इस तन मन में
जो कोस रहा , कभी धधक रहा
एक विकट ज्वाला सा भभक रहा
लगता है जीवन सांसत है केवल
जी करता की साँसे भर ले
जीवन ज्योति अमिय पी लू
लगता जैसे जीवन छीनता
कोई अजनवी शत्रु मन में छिपा
करता प्रहार जो बार बार
दिखता तो नही पर करता है चोट
घाव है जो की भरता ही नही
फिर भी कायर छुप छुप कर
जख्मी घाओ को देख देखकर
होता अति पुलकित मन ही मन
बस एक चोट फिर दूजा और
करता मृतक जीवित जन को
इसको मै क्या नाम दूं
असफल विवेक कुछ कहने को
सामने हो शत्रु तो लड़ता भी, जो
होता है बहुत आसान
पर छुपा शत्रु कैसे पहचाने?
उसके भाव को कैसे जाने?
कैसी है उसकी सरचना
जिसने किया है मुझको मरना
आता गर सामने यदि मेरे
कुछ न कुछ सिखला ही देता
पर हूँ असहाय किंकर्तव्यविमूढ़
कैसे कहू किससे कहूं?
और किधर से मै सामना करूँ
ये कायर! हो छिपे क्यों?
सामने आ गर हिम्मत हो!
जो वीर योद्धा होते है
करते नही कभी छिपकर वार
तुमने तो सारा रिकार्ड तोड़
कायरों के नाम पे पहला आया
कितना बलशाली गर तू भी है
बस एक बार तू सामने आ
तू कितना ताकतवर है
शायद तुझको मै बता देता
करे चुपके से वार वह वीर नही
कायर जैसा कही बिल में रह
मैंने तो सुने बहुत किस्से
जिसमे कायर थे अनेको अनेक
पर कोई न मिला ये मूरख
तेरे जैसा कायर और मरण
या आ तू मेरे सामने
बाहे फैलाकर करले द्वंद्व
या फिर तू जा भाग यहाँ से
छोड़ के मेरा तन मन जीवन
ताकि जी सकू सुख चैन से
न हो कोई डर न कोई संशय
कर सकू विचरण एक स्वतंत्र
पंक्षी जैसा असीम गगन में

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