आदमी तो बस आदमी है,
क्यों लादते हो?
अनेकानेक, जिम्मेदारियों का बोझ?
क्यों बनाते हो?
आदमी को, निष्ठुर मशीन!
जीने क्यों नही
देते? उसको, अपने ढंग से;
क्यों बेवजह प्रश्न
किया करते हो?
क्या है इरादा
तुम्हारा?
जो भी हो, पर नेक
नही दिखता;
दिखेगा भी कैसे?
तुम्हारे पास तो बस
है एक चीज,
वसूल, सिद्धांत;
तुमने तो इसके आलावा
कभी,
जीना सोचा ही नही;
क्या कभी सोचा?
आदमी बस चौबीस घंटे
की
टिक टिक मशीन ही
नही,
इससे भी जादा ये
जीवंत प्राणी है;
इससे इतनी ढ़ेर सारी
अपेक्षाएं;
हाय! क्या चाहते हो
?
दे जैविक अनुभव को
त्याग
काठ का पुतला बन
जाए!
ज़ान लोगे क्या इसकी?
क्या कोई सिद्धांत
और वसूल,
आदमियत से बढ़कर हो
सकते हैं?
काम तो बस काम है;
क्या होगा इसका जब,
काम करने वाला ही न
होगा?
इतनी उम्मीद!
इतनी आशायें!
हे भगवन ! क्या हो
गया, इन महा प्राणियों को;
बस बड़े बड़े फरमान फरमाते
हैं;
जब देखो, लक्ष्य की
लकीर खीचते हैं;
और मजा लेते है
देखो,
कैसे बेचारा तडपता
है, चीखता है, रोता है, बिलखता है;
राह में बस लक्ष्य
की लकीर छूने के लिए;
आखिर वह असहाय
क्यों?
आखिर इतनी बेवसी
क्यों?
क्या हुआ इसके निज
को?
क्यों बना हुआ किसी
के आदेशों का दास?
उसका अपना वैभव
जिन्दगी का,
खुद से जीने की कला
कहाँ गयी?
बेचारा! यह तो कभी
सोचा ही नही,
उसकी गलती भी नही,
नही मिला कभी सोचने
का अवसर;
बहता रहता सिर्फ
आदेशों की,
अनंत और द्रुतगामी
धारा में;
अरे पागल! तुमने
अनेकानेक अपेक्षाए पूरी की,
क्या खुद की पूरी की?
नही न,
रुक जा सिर्फ कुछ पल
के लिए,
मालूम है, मुश्किल
बड़ी,
तीब्र गति का एकाएक
शमन,
खतरे से खाली नही,
ऊपर से बड़ी मुश्किल
प्रतीत होता,
पर प्रयास तो कर,
फिर देख, अजीव एहसास
होगा;
निश्चय है मन झंकार,
जीवन की दिशा तय
करने को;
प्रेरित करेगा,
लगेगा की,
खुद से बड़ा कोई काम
कैसे हो सकता है;
पता चलेगा, जीवन वृत
में तुम तो,
अंशमोल रेखा के दास
बने पड़े थे;
जबकि एक वृहद् भाग,
चला जा रहा
यो रिक्त, तुम्हारे
जिदगी से;
कब कहता हूँ,
सिद्धांत वसूल और
लक्ष्य
है सभी अमहत्वपूर्ण;
पर ये सभी जिन्दगी
को कहाँ जिन्दगी मानते;
बस मानते है,
समय की पहिया के एक
तीली,
निरंतर अपने वसूलों
के आईने में, लक्ष्य प्राप्ति को अग्रसित;
जीवन तो जीने की कला
है;
यह जीने के लिए है न
केवल पसीने के लिए;
कुछ होने या करने के
पहले,
तुम एक इन्सान हो;
हो जीवन का मूर्त
स्वरुप!
है क्या यह तर्कसंगत
कि
निष्टुर समय चक्र का
पुतला बन जाए’
स्वानुभव प्रेरित
मनो उदगार,
सहज जीवन रस का
संयोजन ,
बना रहे,
क्यूकि यह जीवन है;
No comments:
Post a Comment