कठिन दौर इतिहास का
है कठिन दौर इतिहास का,
मानवता के महा विनाश का
है सबसे जादा भ्रष्ट वही,
सदाचार का पाठ पढ़ा रहा;
जो पक्का देश विरोधी वही,
देश भक्ति का अलख जगा रहा;
मजबूर सिसकती साँस इस तरह
कत्लेआम हुआ विश्वास का.....
दुश्मन यूं चाल चलता है
गिरगिट सा रंग बदलता है
मुस्काता है, रोता है
बहुभांति सभी को नचाता है
कभी घडियाली आँसू का नाटक
नौटंकी फिर अट्टहास का................
इन्सान इतना मजबूर हुआ
चाहत सब चखनाचूर हुआ
बेबश होकर वह भटक रहा
खुद अपनों से भी दूर हुआ
है कोई मिशाल न कही कोई
सपनो के सत्यानाश का................
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