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Friday, May 10, 2019

जीवन है झमेला, राही तू अकेला

जीवन है झमेला, राही तू अकेला,
चला जा रहा, तू कहां जा रहा;

नही कुछ है प्यारा, न कोई किनारा,
फिरे मारा मारा, न जमी पर सितारा;
बुझी रोशनी है, है फैला जहर है,
सिसकती हैं आंखे, ये कैसा कहर है;
जरा रुक, आ देखें, जहाँ का ये मेला
जीवन है....................................

नही कोई अपना, जहाँ तो है सपना,
तू चाहेगा जितना, सताएगा उतना;
है घनघोर, काली घटा का अँधेरा,
न ही कोई मंजिल, न ही कोई सबेरा;
तू बरसाए कलियाँ, तो कांटे मिलेगा ;
जीवन है.............................

बता ये मुसाफिर! कहाँ तेरी मंजिल,
खत्म कैसे होगी? राहे है मुश्किल,
न ही कुछ है दिलकश, नही कोई आशा,
फिजा है निराली, है काला निराशा;
न कोई किरण, तू कैसे चलेगा
जीवन है..................................

है काँटों पे चलना, अंधेरों से मिलाना,
जहाँ ने सिखाया चलो, है न रुकना,
गम ए जिंदगी, खूबसूरत बड़ी है,
लड़ो अरे! भागने की जरुरत नही है,
घिसेगा जो जितना, वो उतना चमकेगा
जीवन है...................................

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