जीवन है झमेला, राही
तू अकेला,
चला जा रहा, तू कहां
जा रहा;
नही कुछ है प्यारा,
न कोई किनारा,
फिरे मारा मारा, न
जमी पर सितारा;
बुझी रोशनी है, है
फैला जहर है,
सिसकती हैं आंखे, ये
कैसा कहर है;
जरा रुक, आ देखें,
जहाँ का ये मेला
जीवन है....................................
नही कोई अपना, जहाँ
तो है सपना,
तू चाहेगा जितना,
सताएगा उतना;
है घनघोर, काली घटा
का अँधेरा,
न ही कोई मंजिल, न
ही कोई सबेरा;
तू बरसाए कलियाँ, तो
कांटे मिलेगा ;
जीवन
है.............................
बता ये मुसाफिर!
कहाँ तेरी मंजिल,
खत्म कैसे होगी?
राहे है मुश्किल,
न ही कुछ है दिलकश,
नही कोई आशा,
फिजा है निराली, है
काला निराशा;
न कोई किरण, तू कैसे
चलेगा
जीवन
है..................................
है काँटों पे चलना,
अंधेरों से मिलाना,
जहाँ ने सिखाया चलो,
है न रुकना,
गम ए जिंदगी,
खूबसूरत बड़ी है,
लड़ो अरे! भागने की
जरुरत नही है,
घिसेगा जो जितना, वो
उतना चमकेगा
जीवन
है...................................
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