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Friday, May 10, 2019

अरे मूर्ख

अरे मूर्ख!
तो किसे अपना कहता है?
कौन है तेरा?
कौन है किसका?
यहाँ को न अपना है,
न कोई पराया है;
गर कुछ है बस,
स्वार्थो का झमेला है;
स्वार्थ है तो सम्बन्ध है,
गर स्वार्थ नही तो संबध नही;
तू किससे उम्मीद रखता है?
कौन तुम्हे क्या दे सकता है?
व्यर्थ का दूसरे से आशा क्यों करते हो?
क्या मिलेगा तुझे?
बस निराशा और हताशा!
टूट जाओगे, बिखर जाओगे;
दूसरे पर भरोसा करके;
पछताओगे, दूसरो से आशा करके;
दर्द मिलेगा बस, शान्ति नही;
आश्वासन मिल सकता है, पर हकीकत नही;
सबकी नजरो का खिलौना बन जाओगे!
हंसी का ताज बन जाओगे,
चेहरे दिखेगे कुछ और, होंगे कुछ और;
मजाक बनकर रह जाओगे;
काबिलियत की बलि चढ़ जायेगी;
शर्मिन्दगी महसूस करोगे, खुद पर तरस खाओगे;
खुद को कोसोगे;
ईश्वर को बदनाम करोगे;
अधिमानव बनकर रह जाओगे;
घने अँधेरे में डूब जाओगे;
क्यों? दूसरे से उम्मीद करके,
मत करो किसी से आशा,
खुद पर करो विश्वास;
अपनी जंग खुद लड़ो;
सिकंदर बनो न की पिछलग्गू सिपाही;
खुद ज्योति प्रकाशित करो, दूसरे की किरण की मोहताज़ नही:
अनुकरण मत करो, वरन अनुकरण किये जाओ;
विकराल तूफ़ान का अग्रपाद बनो!
जागृत करो अपनी आत्म ऊर्जा को;
विसरित करो अपनी स्व प्रताप को;
आलोकित करो, विश्व धुंध को;
पहचानो, अपनी शक्ति को; मानव की महा शक्ति;
दिखा दो दुनिया को अपनी प्रतिभा;
संसार के साँसत में सिसकती तस्वीर!
उठो, जागो, आगे बढ़ो!
वह जीवन क्या, जो यूही गुजर जाए;
हे सभ्य समाज के सजग सजीव!
सजा दो सुंदर सपनों की सुनहली घरती;
उठो हे आत्मदीप!
चलो दुनिया को सुंदर बनाने;

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