दे एक बूँद आशा की
चहुदिश घना अँधेरा,
क्या होगा कभी सबेरा
झिलमिल खुशियों के
आंगन में, हम कर सके बसेरा
क्या होगी कभी
तृप्ति,इस आत्म पिपासा की
दे एक
........................................
करता हूँ यत्न हजार,
पा सकूं अलग संसार
लुढक जाती है नैया,
जाने क्यों बीच मजधार
मिलती नही जिसकी
मैंने मेहनत से आशा की
दे
एक...............................................
क्या बैठ दिन में
तारे गिनू? क्या कारण इसका किसी और पर साबित करू?
हो कार्यहीन जगत
में, जगदीश्वर पर आश्रित रहूँ?
दे तोड़ वेडिया बस ,
इस घने निराशा की
दे
एक.........................................
देखा किनारे से, कही
गहरा, कही उथला
पर अलोक की राह चलता
गया
चोटे लगी ठोकर खाए ,
पर चलते गये राह पर
खिलेगा पुष्प, थी
जिसकी तुने आशा की
दे एक बूँद
................................................
No comments:
Post a Comment