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Tuesday, May 7, 2024

केवल मुस्कुराइए

 


केवल मुस्कुराइए

पुरे मिठास मासूमियत और दृढ़ता के साथ।

इस विचार के साथ कि,

केवल हमारे साथ ही ऐसा नही हुआ,

केवल पहली बार ऐसा नही हुआ हमारे आसपास,

अक्सर ऐसा होता ही है,

फिर,

हम एक लम्बी गहरी साँस लेते हैं,

और आगे चल देते हैं।

 

यदि कोई बेइम्तिहाँ मोहब्बत करे,

या कोई भयंकर नफरत करे;

तो केवल मुस्कुराइए।

यदि सब आपका अत्यंत सम्मान करते है,

या सभी आपका अपमान करते हैं;

तो केवल मुस्कुराइए।

यदि लोग आपको स्वीकार करते हैं,

या दुनिया आपका तिरस्कार करती है;

तो केवल मुस्कुराइए।

यदि आप सफलता ही प्राप्त करते हैं,

या केवल असफलता ही मिलती है;

तो केवल मुस्कुराइए।

यदि आप शक्ति या समृधि प्राप्त करते हैं,

या सब आभा ऐशो आराम खो देते हैं;

तो केवल मुस्कुराइए।

आप तकलीफ में है या सुख में,

स्थाई मुस्कान रखें,

चेहरे पर,

अपने हाव भाव पर,

हर परिस्थिति, हर माहौल में,

साँसे थामिए, धैर्य रखिये,

देखिये और इंतज़ार कीजिये,

समय के बदलने का,

परिस्थिति परिवर्तित होने का,

लेकिन हर क्षण, हर वेग में,

मत भूलें,

मुस्कुराना,

पुरे मिठास, मासूमियत और दृढ़ता के साथ।

ONLY SMILE

 


Only smile,

With all sweetness, innocence and stableness;

With the idea that,

It’s not only to me,

And nothing new around us;

It happens most often.

Then we take,

Long and deep sigh,

Exhale and inhale,

And we move ahead.

 

If someone loves you a lot,

Or despises you the bitterest;

Only Smile.

If you are honoured by all,

Or humiliated by most;

Only Smile.

If you are accepted by people,

Or rejected by world;

Only Smile.

If you attain all success,

Or if you obtain only failure;

Only Smile.

If you possess all power and prosperity,

Or if you lose all lustre and luxuries;

Only Smile.

 

Be in pain or in pleasure,

Paste permanent Smile,

Over your countenance,

On your face.

In all situations and in every mood,

Hold your breath and have patience,

Wait and watch,

Let the time turns,

And circumstance changes;

But in all moments and momentum,

Never forget,

To smile,

With all sweetness, innocence and stableness.

 

 

Sunday, March 31, 2024

जिंदगी! मैं तेरा शुक्रगुजार हूं



कोई ख्वाइश नही
कोई फरमाइश नही
जिंदगी!
जो भी बक्शा है मुझे
जो भी नवाजा है मुझे
मैं शुक्र गुजार हूं
मैं तेरा शुक्रगुजार हूं

खुश हूं मैं,
जैसे भी हूं जहां भी हूं
संतुष्ट भी हूं
जो भी है, जितना भी है
चाहते कोई शेष नही,
इच्छाएं कोई विशेष नही,
जिंदगी!
तूने बहुत बरकत दी
मैं तेरा तरफदार हूं
तेरा शुक्र गुजार हूं।

अब तो मुश्किलात में भी,
मुस्कुराहट सी रहती है,
ठोकरें, झंझट और उलझने भी,
वरदान से लगते है,
नही महसूस होती कमी,
किसी की, किसी वस्तु की
अपने में ही पूरा 
जमी आसमान
पूरा जहान समाया सा लगता है।

शुक्रिया ये जिंदगी!
तेरी मेहरबानी के लिए
शुक्रिया ये जिंदगी
तेरी मेहरबानी के लिए।

Saturday, March 30, 2024

सब के होते होते हम खुद के न हो सके



पहचान तो मिली और दिया भी
पर खुद को पहचान न सके
सम्मान भी मिला और दिया भी
पर खुद को सम्मान न दे सके
दुनिया बनाई,
लोगो को मनाया, समझाया, रिझाया
पर खुद को रिझा न सके

बगीचे में
मोहब्बत के अनगिनत फूल हमने लगाए
पर अफसोस
हम खुद को ही मोहब्बत से दूरी बनाए
बाहें फैलाए
मैंने सबको अपनाए
गले भी लगाए
पर अफसोस 
खुद को ही गले न लगा सके
खुद को ही न अपना सके।

प्यार बांटता फिरा
इश्क के बाजार में
पर अफसोस
खुद से प्यार न कर सका
झोली का सारा सकून, सारा चैन
उड़ा दिया जमाने पर
पर अफसोस
खुद को चैन सकून न दे सके।

हम वो है जो सब हैं



हम वो नही है जो हम है
हम वो है जो सब है

हम खुद से अंजान है
खुद से बेगाने है
खुद से दूर है
बहुत दूर हैं
हम ख़ुद को जानते नही
खुद को पहचानते नहीं 
किसको पता है कि
कौन क्यों कैसे कब है

ये नाम, ए रिश्ते नाते
पद प्रतिष्ठा, सुख वैभव
सोच विचार, वाणी व्यवहार
सब आरोपित है
सब प्रत्यारोपित है
प्रदत्त है, सृजित है, विकसित है
हमारे आसपास से
आसपास के व्यक्तियों से, वस्तुओं से।
सब कुछ काल्पनिक है,
सब कुछ करतब है।

सब छद्म है सब अवास्तविक है
अस्थाई है आभासी है
सब छलावा है, दिखावा है
भ्रम है, मायाजाल है
जो है वह दिख नही रहा,
जो दिख रहा, वह है नही
उछल कूद शोक और सुख 
सब मरघट का जमघट है।








Friday, March 1, 2024

मीराबाई संत रविदास के बारे में

 


 

खोज फिरूं खोज वा घर को, 

कोई न करत बखानी।


सतगुरु संत मिले रैदासा, 

दीन्ही सूरत सहदानी।


वन पर्वत तीरथ देवालय, 

ढूँढा चहुँ दिशि दौर।


मीरा श्री रैदास शरण बिन, 

भगवान और न ठौर।


मीरा म्हाने संत है, 

मै संता री दास।


चेतन सत्ता सेन ये, 

दासत गुरु रैदास।


मीरा सतगुरु देव की, 

कर बन्दना आस।


जिन चेतन आतम कह्य, 

धन भगवान रैदास।


गुरु रैदास मिले मोहि पूरे, 

धुर से कलम भिड़ी।


सतगुरु सैन दई जब आके, 

ज्योति से ज्योत मिलि।


मेरे तो गिरधर गोपाल, 

दूसरा न कोय।


गुरु हमारे रैदास जी, 

सरनन चित सोय।


 

खोज फिरूं खोज वा घर को, कोई न करत बखानी।

सतगुरु संत मिले रैदासा, दीन्ही सूरत सहदानी।

वन पर्वत तीरथ देवालय, ढूँढा चहुँ दिशि दौर।

मीरा श्री रैदास शरण बिन, भगवान और न ठौर।

मीरा म्हाने संत है, मै संता री दास।

चेतन सत्ता सेन ये, दासत गुरु रैदास।

मीरा सतगुरु देव की, कर बन्दना आस।

जिन चेतन आतम कह्य, धन भगवान रैदास।

गुरु रैदास मिले मोहि पूरे, धुर से कलम भिड़ी।

सतगुरु सैन दई जब आके, ज्योति से ज्योत मिलि।

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोय।

गुरु हमारे रैदास जी सरनन चित सोय।

बेगमपुरा सहर को नाऊ, दुःख अन्दोहू नहीं तिहि ठाऊ- संत रविदास

 


 

बेगमपुरा सहर को नाऊ,

दुःख अन्दोहू नहीं तिहि ठाऊ।।


ना तस्वीस हिराजू न मालू,

खउफू न खता न तरसु जुवालू।।


अब मोहि खूब बतन गह पाई,

उहाँ खैरि सदा मेरे भाई।।


कईमु सदा पातिसाही, 

डॉम न सोम एक सो आही।।


आबादानु सदा मसहूर, 

उहाँ गनी बसहिं मामूर।।


तिउ तिउ सैल करहि जिउ भावै, 

महरम महल न को अटकावै।।


कह रविदास खालस चमारा, 

जो हम सहरी सु मीतु हमारा।।



 

बेगमपुरा सहर को नाऊ, दुःख अन्दोहू नहीं तिहि ठाऊ।।

ना तस्वीस हिराजू न मालू, खउफू न खता न तरसु जुवालू।।

अब मोहि खूब बतन गह पाई, उहाँ खैरि सदा मेरे भाई।।

कईमु सदा पातिसाही, डॉम न सोम एक सो आही।।

आबादानु सदा मसहूर, उहाँ गनी बसहिं मामूर।।

तिउ तिउ सैल करहि जिउ भावै, महरम महल न को अटकावै।।

कह रविदास खालस चमारा, जो हम सहरी सु मीतु हमारा।।


जहवाँ से आयो अमर वह देसवा।



जहवाँ से आयो अमर वह देसवा।


पानी न पान धरती अकसवा,

चाँद न सूर न रेन दिवसवा।


ब्राह्मण छत्री न सूद्र बैसवा,

मुगल पठान न सैयद सेखवा।


आदि जोत नहिं गोर गनेसवा,

ब्रह्मा बिसनू महेस न सेसवा।


जोगी न जंगम मुनि दुरबेसवा,

आदि न अंत न काल कलेसवा।


दास कबीर के आये संदेसवा,

सार सबद गहि चलौ वही देसवा।


 

जहवाँ से आयो अमर वह देसवा।

पानी न पान धरती अकसवा, चाँद न सूर न रेन दिवसवा।

ब्राह्मण छत्री न सूद्र बैसवा, मुगल पठान न सैयद सेखवा।

आदि जोत नहिं गोर गनेसवा, ब्रह्मा बिसनू महेस न सेसवा।

जोगी न जंगम मुनि दुरबेसवा, आदि न अंत न काल कलेसवा।

दास कबीर के आये संदेसवा सार सबद गहि चलौ वही देसवा।


जीवन चारि दिवस का मेला रे। Saint Ravidas

 



जीवन चारि दिवस का मेला रे।

बांभन झूठा, वेद भी झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे।।


मंदिर भीतर मूरति बैठी, पूजत बाहर चेला रे।

लड्डू भोग चढावति जनता, मूरति के ढिंग केला रे।।


पत्थर मूरति कछु न खाती, खाते बाभन चेला रे।

जनता लूटति बांभन सारे, प्रभुजी देति न अधेला रे।।


पुण्य पाप या पुनर्जन्म का, बाभन दीन्हा खेला रे।

स्वर्ग नरक बैकुंठ पधारो, गुरु शिष्य या चेला रे।।


जितना दान देवेगे जैसा, वैसा निकले तेला रे।

बांभन जाति सभी बहकावे, जंह तंह मचे बवेला रे।।


छोडि के बाँभन आ संग मेरे, कहे विद्रोहि अकेला रे।  



 

जीवन चारि दिवस का मेला रे।

बांभन झूठा, वेद भी झूठा, झूठा ब्रह्म अकेला रे।।

मंदिर भीतर मूरति बैठी, पूजत बाहर चेला रे।

लड्डू भोग चढावति जनता, मूरति के ढिंग केला रे।।

पत्थर मूरति कछु न खाती, खाते बाभन चेला रे।

जनता लूटति बांभन सारे, प्रभुजी देति न अधेला रे।।

पुण्य पाप या पुनर्जन्म का, बाभन दीन्हा खेला रे।

स्वर्ग नरक बैकुंठ पधारो, गुरु शिष्य या चेला रे।।

जितना दान देवेगे जैसा, वैसा निकले तेला रे।

बांभन जाति सभी बहकावे, जंह तंह मचे बवेला रे।।

छोडि के बाँभन आ संग मेरे, कहे विद्रोहि अकेला रे।  


संत रविदास

 


ऐसा चाहूं राज मै,          

जहाँ मिले सबन को अन्न;

ऊंच नीच सब सम बसे,

रहे रैदास प्रसन्न

 

पराधीनता पाप है,

जान लहू रे मीत;

रैदास दास पराधीन सो,

कौन करे हैं प्रीत

 

रैदास जनम के कारने,

होत न कोई नीच;

नर कू नीच कर डारि हैं,

ओछे करम की कीच

 

देता रहे हजार बरस,

मुल्ला चाहे अजान;

रैदास खोजा न मिल सकाइ,

जौ लौं मन शैतान

 

रविदास हमारौ राम जी,

दशरथ के सुत नाहिं;

राम हमहूँ में रमि रहे,

विसब कुटुम्बह माहि

 

रविदास मदुरा का पीजिये,

जो चढ़ि चढ़ि  उतराय;

नाम महारस पीजिये,

जो चढ़ न उतराय

 

का मथुरा का द्वारका,

का काशी हरिद्वार;

रविदास खोजा दिल आपना,

तऊ मिला दिलदार

 

रविदास ब्राह्मण मत पूजिए,

जो होए गुणहीन;

पूजहिं चरण चांडाल के,

जो होवे गुण प्रवीन

 

धर्म हेत संग्राम मंह,

जो कोई कटाए सीस;

सो जीवन सफल भया,

रैदास मिले जगदीश

 

दिन दुखी के हेतु जउ,

वारे अपने प्रान;

रैदास उह नर सूर को,

सांचा क्षत्री जान

 

रैन गवाई सोई कर,

दिवस गवाई खाय रे;

हीरा यह तन पाई कर,

कौड़ी बदले जाय रे

 

जात जात के फेर में,

उरझि रहे सब लोग;

मनुष्यता कू खात है,

रविदास जात का रोग

 

रविदास जात मत पूछ,

का जात का पात;

ब्राह्मण खत्री वैश्य सूद,

सबन का इक जात

 

रविदास इक ही नूर से,

जिमि उपज्यों संसार;

ऊंच नीच किह विधि भये,

ब्राह्मण और चमार

 

पराधीन को दीन क्या,

पराधीन बेदीन;

रविदास सब पराधीन को,

सबही समझे हीन

 

जाति जाति में जाति है,

ज्यो केतन के पात;

रैदास मानुष न जुड़ सके,

जब तक जाति न जात

 

हिन्दू पुजाई देहरा,

मुसलमान मसीत;

रविदास पूजे उस राम को,

जिस निरंतर प्रीत

 

जो खुदा पश्चिम बसे,

तो पूरब बसत राम;

रैदास सेवो जिह ठाकुर को,

जिसका ठांव न नाम

 

मस्जिद से कछु घिन नही,

मंदिर से नही प्यार;

दोउ मह अल्लाह राम नही,

कह रविदास चमार

 

रविदास एक ही बूँद से,

सब भयो विस्थार;

मूरख है जो करत हैं,

वरन अवरण विचार

 

जो बस राखे इन्द्रियां,

सुख दुःख समझ समान;

सो असरित पद पाईगो,

कहि रविदास बलवान

 

अंतर गति रूचौ नही,

बाहरि कथे उजास;

ते नर नर कहि जायेगे,

सत भासे रविदास

 

धन संचे दुःख देत है,

धनमति त्यागे सुख होई;

रविदास सीख गुरुदेव की,

धनमति जोरे कोई

 

रविदास कंगन और कनक में,

जिमि अंतर कछु नाहि;

तो सो रही अंतर नहीं,

हिंदुअन तुरकन माहि

 

हरि सा हीरा छांड के,

करे और की आस;

जे नर जोजक जाहिंगे,

सत बाके रविदास

 

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव,

जब लग एक न पेखा;

वेद कतेब कुरान पुरानन,

सहज एक नहिं देखा

 

मन ही पूजा मन ही धूप,

मन ही सेऊँ सहज स्वरुप

 

करम बंधन में बन्ध रहियो,

फल की ना तज्जियो आस;

करम मानुष का धर्म है,

सत भाखै रविदास

 

रैदास प्रेम नहिं छिप सकई,

लाख छिपाए कोय;

प्रेम न मुख खोलै कभऊँ,

नैन देत हैं रोय॥

 

ऊँचे कुल के कारणै,

ब्राह्मन कोय न होय;

जउ जानहि ब्रह्म आत्मा,

रैदास कहि ब्राह्मन सोय॥

 

माथे तिलक हाथ जपमाला,

जग ठगने कूं स्वांग बनाया;

मारग छाड़ि कुमारग उहकै,

सांची प्रीत बिनु राम न पाया॥

 

जनम जात मत पूछिए,

का जात अरू पात;

रैदास पूत सब प्रभु के,

कोए नहिं जात कुजात॥

 

मुसलमान सों दोस्ती,

हिंदुअन सों कर प्रीत;

रैदास जोति सभ राम की,

सभ हैं अपने मीत॥

 

प्रेम पंथ की पालकी,

रैदास बैठियो आय;

सांचे सामी मिलन कूं,

आनंद कह्यो न जाय॥

 

रैदास जीव कूं मारकर

कैसों मिलहिं खुदाय;

पीर पैगंबर औलिया,

कोए न कहइ समुझाय॥

 

मंदिर मसजिद दोउ एक हैं

इन मंह अंतर नाहि;

रैदास राम रहमान का,

झगड़उ कोउ नाहि॥

 

सौ बरस लौं जगत मंहि,

जीवत रहि करू काम;

रैदास करम ही धरम हैं,

करम करहु निहकाम॥

 

रैदास न पूजइ देहरा,

अरु न मसजिद जाय;

जह−तंह ईस का बास है,

तंह−तंह सीस नवाय॥

 

अंतर गति राँचै नहीं,

बाहरि कथै उजास;

ते नर नरक हि जाहिगं,

सति भाषै रैदास॥

 

नीचं नीच कह मारहिं,

जानत नाहिं नादान;

सभ का सिरजन हार है,

रैदास एकै भगवान॥

 

जिह्वा भजै हरि नाम नित,

हत्थ करहिं नित काम;

रैदास भए निहचिंत हम,

मम चिंत करेंगे राम॥

 

रैदास जन्मे कउ हरस का,

मरने कउ का सोक;

बाजीगर के खेल कूं,

समझत नाहीं लोक॥

 

बेद पढ़ई पंडित बन्यो,

गांठ पन्ही तउ चमार;

रैदास मानुष इक हइ,

नाम धरै हइ चार॥

 

जब सभ करि दोए हाथ पग,

दोए नैन दोए कान;

रैदास प्रथक कैसे भये,

हिन्दू मुसलमान॥

 

जिह्वा सों ओंकार जप,

हत्थन सों कर कार;

राम मिलिहि घर आइ कर,

कहि रैदास विचार॥

 

मुकुर मांह परछांइ ज्यौं,

पुहुप मधे ज्यों बास;

तैसउ श्री हरि बसै,

हिरदै मधे रैदास॥

 

राधो क्रिस्न करीम हरि,

राम रहीम खुदाय;

रैदास मोरे मन बसहिं,

कहु खोजहुं बन जाय॥

 

गुरु ग्यांन दीपक दिया,

बाती दइ जलाय;

रैदास हरि भगति कारनै,

जनम मरन विलमाय॥

 

सब घट मेरा साइयाँ,

जलवा रह्यौ दिखाइ;

रैदास नगर मांहि, रमि रह्यौ,

नेकहु न इत्त उत्त जाइ॥

 

रैदास स्रम करि खाइहिं, जौं

लौं पार बसाय;

नेक कमाई जउ करइ,

कबहुं न निहफल जाय॥

 

रैदास हमारो साइयां,

राघव राम रहीम;

सभ ही राम को रूप है,

केसो क्रिस्न करीम॥

 

रैदास प्रेम नहि छिप सकइ,

लाख छिपाए कोय;

प्रेम न मुख खोलें कबहुं,

नैन देत हैं रोय ॥

 

माथे तिलक हाथ जपमाला,

जग ठगने कूं स्वांग बनाया;

मारग छाडिकुमारग उह्कै,

साँची प्रीत बिनु राम न पाया॥

 

प्रेम पंथ की पालकी,

रैदास बैठियो आय;

सांचे सामी मिलन कूँ,

आनंद कह्यो न जाय ॥

 

रैदास जीव कूँ मारकर,

कैसों मिलहिं खुदाय;

पीर पैगम्बर औलिया,

कोए न कहइ समझाय ॥

 

नीच नीच कह मारहिं,

जानत नाहिं नादान;

सभ का सिरजनहार है,

रैदास एकै भगवान ॥

 

गुरु ग्यान दीपक दिया,

बाती दइ जलाय;

रैदास हरि भगति कारनै

जनम मरन विलमाय