रे मन भज ले तू
हरिनाम
रख मूरत पिय की हिय
में सुबह शाम
इत उत बीत रहा जीवन
कियो नही तुम प्रभु
बंदन
कईसे बनी तेरा काम
रे
मन...................................
दिवस गयो और गयो
अँधेरा
भूल्यो मूढ़ कहि तेरा
मेरा
घेरल आई शाम
रे
मन...............
एक प्रभु कोई पथ नहि
दूजा
कहे लाल जो नर की
पूजा
बन गयो सब धाम
रे
मन-----------------------------------.
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