ये दिन मानुष तन ई
बीरान होई,
कईला हरी का भजन कुछ
काम होई;
कुछ दिन का यह रैन
बसेरा,
न कुछ तेरा न कुछ
मेरा;
एक दिन पिजरा से ओझल
परान होई
कईला
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सत गुरु चरन शरन गहि
लीजै,
लोभ मोह मद अरपन
कीजै;
कटिहै जग का भरम जब
ज्ञान होई
कईला........................................
जग की है यह रीत रे
भाई
कहे लाल गुरु देत
बताई
होई है कहूं पे
सबेरा कहू शाम होई
कईला.............................................
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