एक नन्हा सा दीप
कलुषित काला घना
अँधेरा,
बिखरा है हर कण कण
में;
नही सूझता पथ ये पग
भी,
जीवन है फंसा किस
उलझन में;
सहस्रबाहु अति
बलशाली भी,
विह्वल हो पड़ते
साँसत में
पर एक नन्हा सा
प्रकाश,
करता पल इसका विनाश;
न तो यह कोई
चमत्कार,
न है यह कोई
मनोविकार;
न है यह कोई कही
सुनी बात
न मन की कोई
स्वच्छंद उड़ान
देखा है जग ने आँखों
से
रहता है सबके पास
पास
पर एक नन्हा सा
प्रकाश
करता है पल में इसका
विनाश
दिखने में छोटा दिख
सकता है
करने में तो होता है
अति महान
जो कर न सके हो बड़े
वीर
क्षण में करता वह
काम आसान
है कितनी उर्जा छिपी
हुयी इसमें
सिर्फ नन्हे दीपक को
है पहचान
पर एक नन्हा सा
प्रकाश
करता है पल में इसका
विनाश
सोचा गर मै यूं करूं
क्या
इस भीड़ भाड़ के
बाजारों में
जहाँ व्यक्ति खुद
बिका हुआ
खो गयी अस्मिता
नज़रों में
पर एक कदम तो चल के
देख
बदलेगी दुनिया
इशारों में
पर एक नन्हा सा
प्रकाश
करता है पल में इसका
विनाश
बन सका अगर तू कुछ
भी नही
एक नन्हा सा दीपक बन
जा
चाहे खुद जलना ही
पड़े
पर ईश्वर की बगिया
चमकाना
हुआ नही किसी का गर
बंदे
क्या अर्थ हुआ जग
में आना
पर एक नन्हा सा
प्रकाश
करता है पल में इसका
विनाश
कहता हूँ नही की सूरज
बनकर
पूरी दुनिया का मान
बढाओ
कहता हूँ नही की
चन्द्र बनकर
प्रेम सुधा सम जल
बरसाओ
एक नन्हा दीपक बन बस
इर्द गिर्द
एक प्यारा सा संसार
बनाओ
पर एक नन्हा सा
प्रकाश
करता है पल में इसका
विनाश
जब एक बूँद सागर जल
का
खुद महता पर इठला
सकता है
जब इस जग का नन्हा सा
तिनका भी
श्रृष्टि का कारण बन
सकता है
मन चिंतन से जगा एक
आत्म वेग
जग निशंदन का कारण
बन सकता है
पर एक नन्हा सा
प्रकाश
करता है पल में इसका
विनाश
क्या हुआ अगर तू
छोटा है
ऊर्जा तो फैली है एक
समान
श्रृष्टि का कण कण
है शक्तिमान
कहाँ है सबको इसकी
पहचान
भरत ने सिर्फ तिनका
मारा था
हाय गिरा हनुमत जैसा
वीर बलवान
पर एक नन्हा सा दीपक
करता है पल में इसका विनाश
गर मन का सोता शेर
जाग गया
सचमुच अपने पे आ ही
गया
जग में फैले सब
अधर्म कुरीति
समझो की बस अब यह
मिट ही गया
दुनिया का कायाकल्प
हो जायेगा
यदि सब जन जागृति हो
ही गया
पर एक नन्हा सा
प्रकाश
करता है पल में इसका
विनाश
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