एक पौधा
समय के गर्भ में ये
पौधा
जनम ले रहा;
पथरीली है
पृष्ठभूमि,
जहरीली है जन्मभूमि
रेगिस्तानी रेत सी
दहकती
अदभुत है वह
कर्मभूमि
हुंकार शेषनाग की
रौद्र महाकाल की
अनंत है अनन्य है
है समस्त ब्रह्मांड
से
वसुंधरा सा धैर्य है
आकाश सा पराक्रमी
है नम्यता निरा मयी
सिन्धु सा सुधामयी
पहाड़ से अगम्य है
वयार सा सुगम्य है
विकराल महाकाल सा
प्रचंडता अदम्य है
कंकड़ पत्थर की धरती
को
फोड़ के बाहर आएगा
सुवास, सुमधुर और
सुंदर
कोपलों से वसुधा
सजाएगा
घनी रात घनघोर घटा
आतंकित दिशा से जहर
हटा
करुण रुदन के अविरल
प्रवाह में
जीवन अमृत बरसायेगा
हो लक्ष्य कितना भी
विशाल
राहे हो कितनी भी
कठिन
सम्पूर्ण मनस से
किया प्रयत्न
ला देता है जग में
भूचाल
पानी की सरल धरा भी
जब
पत्थर को भी पिघला
सकता है
एक नन्हा सा दीपक जब
सारे संसार को रोशन
कर सकता है
फिर कहूं उस पौधे को
जिसमे क्षमता है
अदभुत निहित
जो जीवन भी है
मृत्यु भी
जो झूठा भी है सत्य
भी
जो अंधेरों में घिरा
हुआ भी
जो अंगारों पर पड़ा
हुआ भी
जीवन मरण के अंतिम
पड़ाव पर भी
काल भंवर में जकड़ा
हुआ भी
जग को जीवन दे सकता
है
पथ आलोकित कर सकता
है
हर दर्द मिटाने आएगा
अपनी कृपा की शीतल
छाया में
हर दिशा में फैले
जहर बैर
को कोसों दूर भगाएगा
आएगा इस गरल धरा पर
जीवन का का सन्देश
लाएगा
१९/०८/२०१३
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