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Friday, May 10, 2019

किसे पता? कहाँ,किसे,कब,कैसे,क्या हो जाए?

किसे पता? कहाँ,किसे,कब,कैसे,क्या हो जाए?
जीवन भर के सपने वादे, पलक पलटते ही बिखर जाए;
कायर की क्या बाट करूं मै, योद्धा भी न बच पाए;
काल भवर के चंगुल से, भला कब कौन निकल पाए;

अगर मगर की डगर में, डगमग सब चलता जाए;
दिग्भ्रम हुए अकर्मण्य सभी ज्यों, भांग खाए के है बौराए;
मारे हाथ हवा में निशदिन, पर कुछ पकड़ नही आए;
सिर पे टेक दिए रोए मन, खुद इ ही तरस खाए;

जीवन भंगुर, दुनिया दुखमय, कैसे कौन उपाय करूँ;
क्या हैं यहाँ जिसके खातिर, विनती जतन हजार करूँ;
इससे बेहतर तो है मर जाना, एक पल में सब दुख दूर करे;
लाभ हानि मद सब पीडाओं से, ऐसे में ही मुक्त करे;

कोई कहता चल उठ पगले! खुद से सम्भव पुरुषार्थ करे;
कोई कहता जग में आये तो, कुछ सेवा ही निःस्वार्थ करे;
कोई कहता सब भरम छोड़, निज आदर्श को चरितार्थ करे;
है हर्ज ही क्या ये आकुल मन! यदि जीवन को परमार्थ करे;

कष्ट न होगा यदि मुझको बलि वेदी पर चढ़ा दिया;
द्वेष न होगा भी मुझको, यदि सपने मेरे जला दिया;
होगी न शिकायत भी मुझको, गर खुशिओं पर अघात किया;
होगी ही अति प्रसन्नता यदि, यह जीवन कोई सत्काम किया;

है महत्व नही कि कोई, कितना लम्बा जीवन पाया;
सांसत सिसकी से भरा सफर, आँखों से आंसू टपकाया;
महत्व है की इस विकट सफर, कोई कैसे मंजिल पाया;
एक किरन सघन अँधेरे से, नीरस मन को पुलकाया (हरसाया)




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