चलते जाना, चलते
जाना
रुकना नही, झुकना
नही;
चलते जाना, बस चलते
जाना
घनघोर घटा गहरी खाई
दुर्गम पर्वत
अंधियारी छाई
है घने जंगल, दुर्गम
रस्ते
है विकट विकराल
तूफानी लपटे
झंझावातों के
झाक्झोरों में भी
गिरना संभलना उठते
रहना
चलते जाना ....................
मानव, मन का श्रेष्ठ
है तू!
लाखों करोड़ो में एक
है तू
दुर्घटनाओं से
घबराना नही
आपदाओं से डर जाना
नही
हो डगर चाहे कितनी
भी
आगे ही आगे बढ़ते
जाना
चलते
जाना.......................
अपने भी देंगे दगा
तुम्हे
न्योछावर सबकुछ किया
जिन्हें
परिश्थितियाँ भी तुम
पर चलेगी चाल
बहुविधि तुम पर
खेलेगा काल
इन बाधाओं को दे
ठोकर मार
नित नये मंजिल पर
चढ़ते जाना
चलते
जाना...............
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