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Thursday, March 19, 2020

कोरोना वायरस (कोविद 19)


आज कल 'कोरोना' नामक वायरस ने भयंकर तबाही मचाना शुरू कर दिया है ।अगर आप पिछले सदी तथा पिछले वर्षों पर नजर डालें तो आप देखेंगे कि धरती पर तमाम प्रकार की बीमारियों ने तबाही मचाया था और काफी मानव जीवन को नुकसान पहुंचा दिया था ।अभी भी कुछ बचे खुचे बहुत बुजुर्ग लोग हैजा व प्लेग (तामून) का जिक्र करके सिहर जाते हैं।आज हम इस पर आपसे अपना विचार साझा करते हैं।
मनुष्य, पशु,पंक्षी तथा पेड़-पौधे सभी प्रकृति द्वारा उत्पन्न किए गए  हैं जिन्हें लोग अपनी भाषा में ईश्वर की संज्ञा देते हैं।उपरोक्त सभी में मनुष्य सबसे अधिक बुध्दिमान तथा ताकतवर है ।लेकिन मनुष्य को अपनी क्षमता का अहंकार हो गया है और उसमें अनेकानेक बुराइयाँ और बढ़ गयी हैं।कुछ उदाहरण दे रहा हूं।
एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर जुल्म करता है, नंगा करता है ।बेइज्जत करता है ।अत्याचार करता है ।अपना सुखी रहना चाहता है, दूसरे को दुखी देखना चाहता है ।मनुष्य से मनुष्य भेद करता है ।इत्यादि -इत्यादि ।
इतना ही नही, वह पशु-पक्षियों को अपने स्वार्थ के लिए तरह-तरह की यातनाएं देता है और कुछ को अपने जिह्वा का स्वाद बना लेता है ।
ऐसे में जब प्रकृति को बर्दाश्त नहीं होता है तो मानव को संतुलित करने के लिए अपने रूप को प्रदर्शित करता है चाहे वह अग्नि के रूप में हो,चाहे बाढ़ के रूप में हो,चाहे सूखा के रूप में हो,चाहे महामारी के रूप में हो, चाहे भूकम्प के रूप में हो और चाहे बैक्टीरिया या वायरस के रूप में हो।मेरे बाबा बताते थे कि जब उनके युवा जीवन काल में प्लेग  (तामून )  रोग आया था ,उस समय वह घर के घर बर्बाद कर दिया था ।लोग एक शव की अन्तिम क्रिया सम्पन्न करके घर पहुँचते ,पता चलता था कि किसी अन्य घर से रोने की आवाज सुनाई लगने लगती थी और फिर लोग उसी हालत में दूसरे शव के अन्तिम क्रिया के  लिए तैयार हो जाते थे ।बहुत काफी बर्षों के बाद इस पर नियंत्रण पाया जा सका ,तब तक बहुत से मानव जाति का नुकसान हो चुका था ।
यह निर्विवाद सही है कि प्रकृति किसी भी असंतुलन को स्वयं ठीक करती है ।चूंकि पृथ्वी पर संतुलन बिगड़ा हुआ है, अतः उसे  सही करने के लिए 'कोरोना ' वायरस आ गया है और भयंकर तबाही मचा रहा है ।अभी कुछ दिन पहले इसका जन्म हुआ है और इतनी तबाही मचा रहा है, जब शयाना होगा तब क्या करेगा, यह सोचने का विषय है ।लोगों में 'कोरोना' का इतना आतंक हो गया है कि लोग एक दूसरे से हाथ मिलाना बन्द कर दिए हैं।मुंह को मास्क से ढक कर चलते हैं।एक जगह से दूसरी जगह, एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश और यहाँ तक कि एक देश से दूसरे देश में तथा सार्वजनिक स्थानो व भीड़भाड़ वाले स्थानों में जाना-आना कम कर दिए हैं।दूसरे देश में बसे लोग उनके देश भेजे जा रहे हैं।ऐसा पता चला है कि एक देश अपने ही देश के कोरोना ग्रस्त लोगों को जान से ही मार दे रहा है।न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी।        मेरा अनुमान है कि अगर मनुष्य नहीं सुधरा तो भविष्य में 'कोरोना' के साथी या 'कोरोना' की फौज भी आ सकती है और फिर कितना मानव जाति का नुकसान होगा, इसका अनुमान लगाना मुश्किल होगा ।कोरोना अब तो पशु-पक्षियों में भी प्रवेश कर रहा है और इस प्रकार मानव जीवन को काफी संकट में डाल दिया है ।
मेरा विचार है कि प्रकृति का सम्मान करने से,उसके प्राणियों से प्रेम करने से प्रकृति किसी निदान का रास्ता प्रशस्त कर सकती है अथवा किसी शोधकर्ता को गाइड कर सकती है ।इसे मानना ही होगा कि प्रकृति अपने बच्चों में कोई भेद नहीं करती है।वह सबको किसी न किसी रूप मे  संरक्षण प्रदान करती रहती है ।आओ! हम सब सदाचार से जीवन जियें।अपना आहार व खान-पान और शुध्द रखें।किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुचाएं।
सब्बेसत्ता सुखी होन्तु ,सब्बे होन्तु च खेमिनो ।
सब्बे भद्राणि पस्सन्तु मा किञ्ची दुक्खमागमा ।।
-प्रकृति की वन्दना करो।

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