भारत की समस्या है,
तो,
भारत को ही समाधान करना है;
भारत जन ही,
भारत को बचा सकते हैं,
मन्दिर मस्जिद, ईश्वर अल्लाह,
गीता कुरान;
सब दुकानदारी है,
नेताओं की,
अमीरों की,
उद्योगपति लोग की;
आम आदमी,
भूखा गरीब,
तो युहीं पिसता रहता है;
अधमरी व्यवस्था में,
हर बार इम्तहान,
गरीब को ही देना पड़ता है;
देशभक्ति का, धर्मभक्ति का,
ईशभक्ति का,
अमीरों की भक्ति का,
नेताओं की भक्ति का;
जर्जर कर दिया,
अपंग कर दिया,
निर्बल कर दिया,
निरीह कर दिया,
भारत को, भारत जन को,
अमीरों की ऐय्याशियों में कोई कमी नही,
रुतबे और रौब में कोई कमी नही,
जश्न अभी भी जिंदा है,
गरीबों की हाड़ मांस पर,
गरीबों की दुखती सांसों,
पर सरगम हो रहा है,
पैशाचिक नृत्य हो रहा है;
मजबूर को आखिर क्या चाहिए?
महंगी गाड़ी,
आलीशान महल,
बिलियन डॉलर,
नही,
बिल्कुल नही,
दो वक्त की सकूं की रोटी में भी,
गरीब खुश हो लेता है,
झुरमुट जैसे झुग्गी में भी शौक से,
सो लेता है,
उसकी नही है आसमानी ख्वाइशें,
उदरपूर्ति भर से तृप्त और संतृप्त रहता है;
नही है उसकी कोई प्रतियोगिता,
बलशाली बाहुबली धनवान,
सत्तासीन होने की,
बस दो वक्त की रोटी,
और सकूं चाहिए,
अपमान तो सहने की आदत पड़ गई है उसे,
रोज हर रोज,
मालिक रईश,
उसकी बैंड बजाते हैं,
गालियों से,
अपशब्दों से,
पर फिर भी वह मुस्कराता है,
क्या है विकल्प उसके पास,
कहाँ जाएगा क्या करेगा?
आज कोई अपमानित करता है,
तो कल कोई और करेगा,
समझौता कर लिया,
उदर के लिए,
बच्चों के लिए,
दो वक्त की रोटी और सकूं के लिए;
अब मत करो और जलील,
और मत करो फजीहत,
इंसान है वह भी,
अगर फुर्सत मिल गई हो,
ऐय्याश पार्टियों से,
मेवे पकवानों से,
सैर सपाटों से,
मजहबी फरेबों,
दंगों से,
इनकीं फिकर कर लो,
थोड़ी मदद कर लो,
इंसान हो, इंसानियत के लिए;
इन्हें क्या पता,
दिन रात इन्हीं का नाम ले लेकर,
इन्हीं का खून पिया जाता है,
तंग नाजुक हालातों में,
इन्हें इनकीं हालत पर छोड़ दिया जाता है,
मरने के लिए,
घुट घुट कर,
सोचो अगर ये नही होंगे,
तो क्या होगा?
विपत्ति में,
उनका साथ दो,
हिम्मत बढ़ाओ,
हौसला बढ़ाओ,
नही तो कातिल का कलंक,
कभी धो नही पाओगे,
भारत के मरने का,
भारत का हारने का,
भारत को भारत जन ही बचा सकते हैं।
तो,
भारत को ही समाधान करना है;
भारत जन ही,
भारत को बचा सकते हैं,
मन्दिर मस्जिद, ईश्वर अल्लाह,
गीता कुरान;
सब दुकानदारी है,
नेताओं की,
अमीरों की,
उद्योगपति लोग की;
आम आदमी,
भूखा गरीब,
तो युहीं पिसता रहता है;
अधमरी व्यवस्था में,
हर बार इम्तहान,
गरीब को ही देना पड़ता है;
देशभक्ति का, धर्मभक्ति का,
ईशभक्ति का,
अमीरों की भक्ति का,
नेताओं की भक्ति का;
जर्जर कर दिया,
अपंग कर दिया,
निर्बल कर दिया,
निरीह कर दिया,
भारत को, भारत जन को,
अमीरों की ऐय्याशियों में कोई कमी नही,
रुतबे और रौब में कोई कमी नही,
जश्न अभी भी जिंदा है,
गरीबों की हाड़ मांस पर,
गरीबों की दुखती सांसों,
पर सरगम हो रहा है,
पैशाचिक नृत्य हो रहा है;
मजबूर को आखिर क्या चाहिए?
महंगी गाड़ी,
आलीशान महल,
बिलियन डॉलर,
नही,
बिल्कुल नही,
दो वक्त की सकूं की रोटी में भी,
गरीब खुश हो लेता है,
झुरमुट जैसे झुग्गी में भी शौक से,
सो लेता है,
उसकी नही है आसमानी ख्वाइशें,
उदरपूर्ति भर से तृप्त और संतृप्त रहता है;
नही है उसकी कोई प्रतियोगिता,
बलशाली बाहुबली धनवान,
सत्तासीन होने की,
बस दो वक्त की रोटी,
और सकूं चाहिए,
अपमान तो सहने की आदत पड़ गई है उसे,
रोज हर रोज,
मालिक रईश,
उसकी बैंड बजाते हैं,
गालियों से,
अपशब्दों से,
पर फिर भी वह मुस्कराता है,
क्या है विकल्प उसके पास,
कहाँ जाएगा क्या करेगा?
आज कोई अपमानित करता है,
तो कल कोई और करेगा,
समझौता कर लिया,
उदर के लिए,
बच्चों के लिए,
दो वक्त की रोटी और सकूं के लिए;
अब मत करो और जलील,
और मत करो फजीहत,
इंसान है वह भी,
अगर फुर्सत मिल गई हो,
ऐय्याश पार्टियों से,
मेवे पकवानों से,
सैर सपाटों से,
मजहबी फरेबों,
दंगों से,
इनकीं फिकर कर लो,
थोड़ी मदद कर लो,
इंसान हो, इंसानियत के लिए;
इन्हें क्या पता,
दिन रात इन्हीं का नाम ले लेकर,
इन्हीं का खून पिया जाता है,
तंग नाजुक हालातों में,
इन्हें इनकीं हालत पर छोड़ दिया जाता है,
मरने के लिए,
घुट घुट कर,
सोचो अगर ये नही होंगे,
तो क्या होगा?
विपत्ति में,
उनका साथ दो,
हिम्मत बढ़ाओ,
हौसला बढ़ाओ,
नही तो कातिल का कलंक,
कभी धो नही पाओगे,
भारत के मरने का,
भारत का हारने का,
भारत को भारत जन ही बचा सकते हैं।
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