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Friday, March 27, 2020

क्या गुनाह है मेरा?

क्या गुनाह है मेरा,
सिर्फ यही कि,
मैं मजबूर हूँ,
मैं मजदूर हूँ,
मैं गरीब हूँ;
क्या गरीब होना गुनाह है?
मेरा गुनाह सिर्फ यही,
कि मैंने भूखें बच्चों के लिए,
रोटी खोजने निकला,
बीमार मां बाप के लिए,
दवा लेने निकला,
क्या यही है मेरा गुनाह?
मेरा मरना तो तय है,
भूख से या बीमारी से;
इतना कौन सा गुनाह किया मैंने,
इतनी निर्दयता,
इतनी क्रूरता दिखाया मुझपर;
मैं कमजोर हूँ,
मैं निर्बल हूँ,
शायद यही है मेरा गुनाह;
शायद यही है मेरा अपराध;
मुझे तो पता नही,
मैंने कौन सा गुनाह किया,
शायद इन क्रूर रईसों को पता है;
क्या करूँ,
मैं क्या कर सकता हूँ,
अगर बाहर निकलना गुनाह है,
रोटी ढूंढना अपराध है,
तो कैसे मरता देखूँ,
अपने दुधमुए बच्चों को,
कैसे सहूँ,
अपने बूढ़े मां बाप को,
दम तोड़ते हुए,
क्या हाल बना दिया,
डंडों से मार मार के,
हाथ पांव तोड़ दिए,
इतना बेरहम कैसे हो सकते हो?
तुम भी तो इन्सान दिखते हो,
पर इंसानियत नही दिखती,
जरा भी,
तनिक भी;
एक तो गरीब बनाते हो,
गरीब बनाये रखते हो,
जुल्म का अट्टहास करते हो,
मेरी तकलीफों पर,
मेरी जिन्दा गावों पर,
नमक छिड़कते हो,
मिर्च डालते हो,
बार बार हर बार;
दम तोड़ रही है मानवता है,
सिर्फ तुम्हारी वजह से,
तुमने फैलाया विष,
वाइरस और बीमारी,
आखिर मैंने क्या किया?
क्या जुल्म किया मैंने?
यह सब तुम्हारा किया धराया है,
तुम्हारा पाप है,
हम ढो रहें,
सब ढो रहें हैं,
क्यों हर बार अपने कारनामों का,
अपने किये का,
जिम्मा हमपे डालते हो,
ठीकरा हम पर फोड़ते हो;
हम नही चाहते,
तुमसे बराबरी करना,
हम नही चाहते तुझसा बनना,
बस यही आरजू है,
यही विनती है,
कि तुम भी इंसान हो,
मैं भी इंसान हूँ,
इंसानियत दिखाओ,
इंसान होने का फर्ज निभाओ,
निर्बल निरीह को अगर मदद नही कर सकते,
कम से कम कहर न बरपाओ,
इतना भी न सताओ,
कि टूट जाए,
बिखर जाए,
रूह ही मिट जाए।


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