ऐसा
चाहूं राज मै,
जहाँ
मिले सबन को अन्न;
ऊंच
नीच सब सम बसे,
रहे
रैदास प्रसन्न॥
पराधीनता
पाप है,
जान
लहू रे मीत;
रैदास
दास पराधीन सो,
कौन
करे हैं प्रीत॥
रैदास
जनम के कारने,
होत
न कोई नीच;
नर
कू नीच कर डारि हैं,
ओछे
करम की कीच॥
देता
रहे हजार बरस,
मुल्ला
चाहे अजान;
रैदास
खोजा न मिल सकाइ,
जौ
लौं मन शैतान॥
रविदास
हमारौ राम जी,
दशरथ
के सुत नाहिं;
राम
हमहूँ में रमि रहे,
विसब
कुटुम्बह माहि॥
रविदास
मदुरा का पीजिये,
जो
चढ़ि चढ़ि उतराय;
नाम
महारस पीजिये,
जो
चढ़ न उतराय॥
का
मथुरा का द्वारका,
का
काशी हरिद्वार;
रविदास
खोजा दिल आपना,
तऊ
मिला दिलदार॥
रविदास
ब्राह्मण मत पूजिए,
जो
होए गुणहीन;
पूजहिं
चरण चांडाल के,
जो
होवे गुण प्रवीन॥
धर्म
हेत संग्राम मंह,
जो
कोई कटाए सीस;
सो
जीवन सफल भया,
रैदास
मिले जगदीश॥
दिन
दुखी के हेतु जउ,
वारे
अपने प्रान;
रैदास
उह नर सूर को,
सांचा
क्षत्री जान॥
रैन
गवाई सोई कर,
दिवस
गवाई खाय रे;
हीरा
यह तन पाई कर,
कौड़ी
बदले जाय रे॥
जात
जात के फेर में,
उरझि
रहे सब लोग;
मनुष्यता
कू खात है,
रविदास
जात का रोग॥
रविदास
जात मत पूछ,
का
जात का पात;
ब्राह्मण
खत्री वैश्य सूद,
सबन
का इक जात॥
रविदास
इक ही नूर से,
जिमि
उपज्यों संसार;
ऊंच
नीच किह विधि भये,
ब्राह्मण
और चमार॥
पराधीन
को दीन क्या,
पराधीन
बेदीन;
रविदास
सब पराधीन को,
सबही
समझे हीन॥
जाति
जाति में जाति है,
ज्यो
केतन के पात;
रैदास
मानुष न जुड़ सके,
जब
तक जाति न जात॥
हिन्दू
पुजाई देहरा,
मुसलमान
मसीत;
रविदास
पूजे उस राम को,
जिस
निरंतर प्रीत॥
जो
खुदा पश्चिम बसे,
तो
पूरब बसत राम;
रैदास
सेवो जिह ठाकुर को,
जिसका
ठांव न नाम॥
मस्जिद
से कछु घिन नही,
मंदिर
से नही प्यार;
दोउ
मह अल्लाह राम नही,
कह
रविदास चमार॥
रविदास
एक ही बूँद से,
सब
भयो विस्थार;
मूरख
है जो करत हैं,
वरन
अवरण विचार॥
जो
बस राखे इन्द्रियां,
सुख
दुःख समझ समान;
सो
असरित पद पाईगो,
कहि
रविदास बलवान॥
अंतर
गति रूचौ नही,
बाहरि
कथे उजास;
ते
नर नर कहि जायेगे,
सत
भासे रविदास॥
धन
संचे दुःख देत है,
धनमति
त्यागे सुख होई;
रविदास
सीख गुरुदेव की,
धनमति
जोरे कोई॥
रविदास
कंगन और कनक में,
जिमि
अंतर कछु नाहि;
तो
सो रही अंतर नहीं,
हिंदुअन
तुरकन माहि॥
हरि
सा हीरा छांड के,
करे
और की आस;
जे
नर जोजक जाहिंगे,
सत
बाके रविदास॥
कृस्न,
करीम, राम, हरि, राघव,
जब लग एक न
पेखा;
वेद कतेब
कुरान पुरानन,
सहज एक
नहिं देखा॥
मन ही पूजा
मन ही धूप,
मन ही सेऊँ
सहज स्वरुप ॥
करम बंधन
में बन्ध रहियो,
फल की ना
तज्जियो आस;
करम मानुष
का धर्म है,
सत भाखै
रविदास ॥
रैदास प्रेम नहिं छिप सकई,
लाख छिपाए कोय;
प्रेम न मुख खोलै कभऊँ,
नैन देत हैं रोय॥
ऊँचे कुल के कारणै,
ब्राह्मन कोय न होय;
जउ जानहि ब्रह्म आत्मा,
रैदास कहि ब्राह्मन सोय॥
माथे तिलक हाथ जपमाला,
जग ठगने कूं स्वांग बनाया;
मारग छाड़ि कुमारग उहकै,
सांची प्रीत बिनु राम न पाया॥
जनम जात मत पूछिए,
का जात अरू पात;
रैदास पूत सब प्रभु के,
कोए नहिं जात कुजात॥
मुसलमान सों दोस्ती,
हिंदुअन सों कर प्रीत;
रैदास जोति सभ राम की,
सभ हैं अपने मीत॥
प्रेम पंथ की पालकी,
रैदास बैठियो आय;
सांचे सामी मिलन कूं,
आनंद कह्यो न जाय॥
रैदास जीव कूं मारकर
कैसों मिलहिं खुदाय;
पीर पैगंबर औलिया,
कोए न कहइ समुझाय॥
मंदिर मसजिद दोउ एक हैं
इन मंह अंतर नाहि;
रैदास राम रहमान का,
झगड़उ कोउ नाहि॥
सौ बरस लौं जगत मंहि,
जीवत रहि करू काम;
रैदास करम ही धरम हैं,
करम करहु निहकाम॥
रैदास न पूजइ देहरा,
अरु न मसजिद जाय;
जह−तंह ईस का बास है,
तंह−तंह सीस नवाय॥
अंतर गति राँचै नहीं,
बाहरि कथै उजास;
ते नर नरक हि जाहिगं,
सति भाषै रैदास॥
नीचं नीच कह मारहिं,
जानत नाहिं नादान;
सभ का सिरजन हार है,
रैदास एकै भगवान॥
जिह्वा भजै हरि नाम नित,
हत्थ करहिं नित काम;
रैदास भए निहचिंत हम,
मम चिंत करेंगे राम॥
रैदास जन्मे कउ हरस का,
मरने कउ का सोक;
बाजीगर के खेल कूं,
समझत नाहीं लोक॥
बेद पढ़ई पंडित बन्यो,
गांठ पन्ही तउ चमार;
रैदास मानुष इक हइ,
नाम धरै हइ चार॥
जब सभ करि दोए हाथ पग,
दोए नैन दोए कान;
रैदास प्रथक कैसे भये,
हिन्दू मुसलमान॥
जिह्वा सों ओंकार जप,
हत्थन सों कर कार;
राम मिलिहि घर आइ कर,
कहि रैदास विचार॥
मुकुर मांह परछांइ ज्यौं,
पुहुप मधे ज्यों बास;
तैसउ श्री हरि बसै,
हिरदै मधे रैदास॥
राधो क्रिस्न करीम हरि,
राम रहीम खुदाय;
रैदास मोरे मन बसहिं,
कहु खोजहुं बन जाय॥
गुरु ग्यांन दीपक दिया,
बाती दइ जलाय;
रैदास हरि भगति कारनै,
जनम मरन विलमाय॥
सब घट मेरा साइयाँ,
जलवा रह्यौ दिखाइ;
रैदास नगर मांहि, रमि रह्यौ,
नेकहु न इत्त उत्त जाइ॥
रैदास स्रम करि खाइहिं, जौं
लौं पार बसाय;
नेक कमाई जउ करइ,
कबहुं न निहफल जाय॥
रैदास हमारो साइयां,
राघव राम रहीम;
सभ ही राम को रूप है,
केसो क्रिस्न करीम॥
रैदास प्रेम नहि छिप सकइ,
लाख छिपाए कोय;
प्रेम न मुख खोलें कबहुं,
नैन देत हैं रोय ॥
माथे तिलक हाथ जपमाला,
जग ठगने कूं स्वांग बनाया;
मारग छाडिकुमारग उह्कै,
साँची प्रीत बिनु राम न पाया॥
प्रेम पंथ की पालकी,
रैदास बैठियो आय;
सांचे सामी मिलन कूँ,
आनंद कह्यो न जाय ॥
रैदास जीव कूँ मारकर,
कैसों मिलहिं खुदाय;
पीर पैगम्बर औलिया,
कोए न कहइ समझाय ॥
नीच नीच कह मारहिं,
जानत नाहिं नादान;
सभ का सिरजनहार है,
रैदास एकै भगवान ॥
गुरु ग्यान दीपक दिया,
बाती दइ जलाय;
रैदास हरि भगति कारनै
जनम मरन विलमाय ॥
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