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Friday, March 1, 2024

संत शिरोमणि रविदास के दोहे


ऐसा चाहूं राज मै,          

जहाँ मिले सबन को अन्न;

ऊंच नीच सब सम बसे,

रहे रैदास प्रसन्न

 

पराधीनता पाप है,

जान लहू रे मीत;

रैदास दास पराधीन सो,

कौन करे हैं प्रीत

 

रैदास जनम के कारने,

होत न कोई नीच;

नर कू नीच कर डारि हैं,

ओछे करम की कीच

 

देता रहे हजार बरस,

मुल्ला चाहे अजान;

रैदास खोजा न मिल सकाइ,

जौ लौं मन शैतान

 

रविदास हमारौ राम जी,

दशरथ के सुत नाहिं;

राम हमहूँ में रमि रहे,

विसब कुटुम्बह माहि

 

रविदास मदुरा का पीजिये,

जो चढ़ि चढ़ि  उतराय;

नाम महारस पीजिये,

जो चढ़ न उतराय

 

का मथुरा का द्वारका,

का काशी हरिद्वार;

रविदास खोजा दिल आपना,

तऊ मिला दिलदार

 

रविदास ब्राह्मण मत पूजिए,

जो होए गुणहीन;

पूजहिं चरण चांडाल के,

जो होवे गुण प्रवीन

 

धर्म हेत संग्राम मंह,

जो कोई कटाए सीस;

सो जीवन सफल भया,

रैदास मिले जगदीश

 

दिन दुखी के हेतु जउ,

वारे अपने प्रान;

रैदास उह नर सूर को,

सांचा क्षत्री जान

 

रैन गवाई सोई कर,

दिवस गवाई खाय रे;

हीरा यह तन पाई कर,

कौड़ी बदले जाय रे

 

जात जात के फेर में,

उरझि रहे सब लोग;

मनुष्यता कू खात है,

रविदास जात का रोग

 

रविदास जात मत पूछ,

का जात का पात;

ब्राह्मण खत्री वैश्य सूद,

सबन का इक जात

 

रविदास इक ही नूर से,

जिमि उपज्यों संसार;

ऊंच नीच किह विधि भये,

ब्राह्मण और चमार

 

पराधीन को दीन क्या,

पराधीन बेदीन;

रविदास सब पराधीन को,

सबही समझे हीन

 

जाति जाति में जाति है,

ज्यो केतन के पात;

रैदास मानुष न जुड़ सके,

जब तक जाति न जात

 

हिन्दू पुजाई देहरा,

मुसलमान मसीत;

रविदास पूजे उस राम को,

जिस निरंतर प्रीत

 

जो खुदा पश्चिम बसे,

तो पूरब बसत राम;

रैदास सेवो जिह ठाकुर को,

जिसका ठांव न नाम

 

मस्जिद से कछु घिन नही,

मंदिर से नही प्यार;

दोउ मह अल्लाह राम नही,

कह रविदास चमार

 

रविदास एक ही बूँद से,

सब भयो विस्थार;

मूरख है जो करत हैं,

वरन अवरण विचार

 

जो बस राखे इन्द्रियां,

सुख दुःख समझ समान;

सो असरित पद पाईगो,

कहि रविदास बलवान

 

अंतर गति रूचौ नही,

बाहरि कथे उजास;

ते नर नर कहि जायेगे,

सत भासे रविदास

 

धन संचे दुःख देत है,

धनमति त्यागे सुख होई;

रविदास सीख गुरुदेव की,

धनमति जोरे कोई

 

रविदास कंगन और कनक में,

जिमि अंतर कछु नाहि;

तो सो रही अंतर नहीं,

हिंदुअन तुरकन माहि

 

हरि सा हीरा छांड के,

करे और की आस;

जे नर जोजक जाहिंगे,

सत बाके रविदास

 

कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव,

जब लग एक न पेखा;

वेद कतेब कुरान पुरानन,

सहज एक नहिं देखा

 

मन ही पूजा मन ही धूप,

मन ही सेऊँ सहज स्वरुप

 

करम बंधन में बन्ध रहियो,

फल की ना तज्जियो आस;

करम मानुष का धर्म है,

सत भाखै रविदास

 

रैदास प्रेम नहिं छिप सकई,

लाख छिपाए कोय;

प्रेम न मुख खोलै कभऊँ,

नैन देत हैं रोय॥

 

ऊँचे कुल के कारणै,

ब्राह्मन कोय न होय;

जउ जानहि ब्रह्म आत्मा,

रैदास कहि ब्राह्मन सोय॥

 

माथे तिलक हाथ जपमाला,

जग ठगने कूं स्वांग बनाया;

मारग छाड़ि कुमारग उहकै,

सांची प्रीत बिनु राम न पाया॥

 

जनम जात मत पूछिए,

का जात अरू पात;

रैदास पूत सब प्रभु के,

कोए नहिं जात कुजात॥

 

मुसलमान सों दोस्ती,

हिंदुअन सों कर प्रीत;

रैदास जोति सभ राम की,

सभ हैं अपने मीत॥

 

प्रेम पंथ की पालकी,

रैदास बैठियो आय;

सांचे सामी मिलन कूं,

आनंद कह्यो न जाय॥

 

रैदास जीव कूं मारकर

कैसों मिलहिं खुदाय;

पीर पैगंबर औलिया,

कोए न कहइ समुझाय॥

 

मंदिर मसजिद दोउ एक हैं

इन मंह अंतर नाहि;

रैदास राम रहमान का,

झगड़उ कोउ नाहि॥

 

सौ बरस लौं जगत मंहि,

जीवत रहि करू काम;

रैदास करम ही धरम हैं,

करम करहु निहकाम॥

 

रैदास न पूजइ देहरा,

अरु न मसजिद जाय;

जह−तंह ईस का बास है,

तंह−तंह सीस नवाय॥

 

अंतर गति राँचै नहीं,

बाहरि कथै उजास;

ते नर नरक हि जाहिगं,

सति भाषै रैदास॥

 

नीचं नीच कह मारहिं,

जानत नाहिं नादान;

सभ का सिरजन हार है,

रैदास एकै भगवान॥

 

जिह्वा भजै हरि नाम नित,

हत्थ करहिं नित काम;

रैदास भए निहचिंत हम,

मम चिंत करेंगे राम॥

 

रैदास जन्मे कउ हरस का,

मरने कउ का सोक;

बाजीगर के खेल कूं,

समझत नाहीं लोक॥

 

बेद पढ़ई पंडित बन्यो,

गांठ पन्ही तउ चमार;

रैदास मानुष इक हइ,

नाम धरै हइ चार॥

 

जब सभ करि दोए हाथ पग,

दोए नैन दोए कान;

रैदास प्रथक कैसे भये,

हिन्दू मुसलमान॥

 

जिह्वा सों ओंकार जप,

हत्थन सों कर कार;

राम मिलिहि घर आइ कर,

कहि रैदास विचार॥

 

मुकुर मांह परछांइ ज्यौं,

पुहुप मधे ज्यों बास;

तैसउ श्री हरि बसै,

हिरदै मधे रैदास॥

 

राधो क्रिस्न करीम हरि,

राम रहीम खुदाय;

रैदास मोरे मन बसहिं,

कहु खोजहुं बन जाय॥

 

गुरु ग्यांन दीपक दिया,

बाती दइ जलाय;

रैदास हरि भगति कारनै,

जनम मरन विलमाय॥

 

सब घट मेरा साइयाँ,

जलवा रह्यौ दिखाइ;

रैदास नगर मांहि, रमि रह्यौ,

नेकहु न इत्त उत्त जाइ॥

 

रैदास स्रम करि खाइहिं, जौं

लौं पार बसाय;

नेक कमाई जउ करइ,

कबहुं न निहफल जाय॥

 

रैदास हमारो साइयां,

राघव राम रहीम;

सभ ही राम को रूप है,

केसो क्रिस्न करीम॥

 

रैदास प्रेम नहि छिप सकइ,

लाख छिपाए कोय;

प्रेम न मुख खोलें कबहुं,

नैन देत हैं रोय ॥

 

माथे तिलक हाथ जपमाला,

जग ठगने कूं स्वांग बनाया;

मारग छाडिकुमारग उह्कै,

साँची प्रीत बिनु राम न पाया॥

 

प्रेम पंथ की पालकी,

रैदास बैठियो आय;

सांचे सामी मिलन कूँ,

आनंद कह्यो न जाय ॥

 

रैदास जीव कूँ मारकर,

कैसों मिलहिं खुदाय;

पीर पैगम्बर औलिया,

कोए न कहइ समझाय ॥

 

नीच नीच कह मारहिं,

जानत नाहिं नादान;

सभ का सिरजनहार है,

रैदास एकै भगवान ॥

 

गुरु ग्यान दीपक दिया,

बाती दइ जलाय;

रैदास हरि भगति कारनै

जनम मरन विलमाय

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