जहवाँ से आयो अमर
वह देसवा।
पानी न पान धरती अकसवा,
चाँद न सूर न रेन दिवसवा।
ब्राह्मण छत्री न सूद्र बैसवा,
मुगल पठान न सैयद सेखवा।
आदि जोत नहिं गोर गनेसवा,
ब्रह्मा बिसनू महेस न सेसवा।
जोगी न जंगम मुनि दुरबेसवा,
आदि न अंत न काल कलेसवा।
दास कबीर के आये संदेसवा,
सार सबद गहि चलौ वही देसवा।
जहवाँ से आयो अमर
वह देसवा।
पानी न पान धरती
अकसवा, चाँद न सूर न रेन दिवसवा।
ब्राह्मण छत्री न
सूद्र बैसवा, मुगल पठान न सैयद सेखवा।
आदि जोत नहिं गोर
गनेसवा, ब्रह्मा बिसनू महेस न सेसवा।
जोगी न जंगम मुनि
दुरबेसवा, आदि न अंत न काल कलेसवा।
दास कबीर के आये
संदेसवा सार सबद गहि चलौ वही देसवा।
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