पर खुद को पहचान न सके
सम्मान भी मिला और दिया भी
पर खुद को सम्मान न दे सके
दुनिया बनाई,
लोगो को मनाया, समझाया, रिझाया
पर खुद को रिझा न सके
बगीचे में
मोहब्बत के अनगिनत फूल हमने लगाए
पर अफसोस
हम खुद को ही मोहब्बत से दूरी बनाए
बाहें फैलाए
मैंने सबको अपनाए
गले भी लगाए
पर अफसोस
खुद को ही गले न लगा सके
खुद को ही न अपना सके।
प्यार बांटता फिरा
इश्क के बाजार में
पर अफसोस
खुद से प्यार न कर सका
झोली का सारा सकून, सारा चैन
उड़ा दिया जमाने पर
पर अफसोस
खुद को चैन सकून न दे सके।
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