विश्व को अब युद्ध नही, बुद्ध चाहिए।
अंधविश्वास के घोर अँधेरे से,
हर इन्सान को अब निकलना होगा,
ढोंग पाखण्ड दिखावे के,
चंगुल से सबको बचना होगा,
ज्ञान पुंज प्रकीर्णित कर,
सत्य का साथ पकड़ना होगा,
आडम्बर और अज्ञानता नही,
बस वैज्ञानिक विचार विशुद्ध चाहिए।
सार्वभौमिक सम्पूर्ण वसुंधरा पर,
शांति कायम करना होगा,
अहिंसा अस्तेय के दीपक को,
निडर चिरस्थाई जलना होगा,
विश्व बंधुत्व और मानवता के,
दामन को अब पकड़ना होगा।
स्नेहिल सुखमय संसार बनाने के लिए,
प्रेमदूत प्रबुद्ध चाहिए।
तेरी एक मासूम मुस्कान किसी का,
कठिनतम पीड़ा हर सकती है,
क्षमा याचना झुक जाने से,
भीषण अनहोनी भी टल सकती है;
सद्भाव सहयोग अमन शांति से,
एक बेहतरीन दुनिया बन सकती है।
प्रज्ञा शील करुणा समाधि,
मन वचन कर्म सभी शुद्ध चाहिए।
बदले का भाव, हिसात्मक प्रवृत्ति,
किसी मसले का हल नही है,
शक्ति सम्पत्ति संचय, क्षणिकमात्र दुर्बलता है,
कोई स्थाई बल नही है,
ईष्र्या बैर निंदा जानलेवी क्रूर कीड़े हैं,
सार्थक कोई प्रतिफल नही हैं।
नेह आलिंगन, भातृभाव से भरा,
गौरवशाली सम्यक संबुद्धि चाहिए।
सरहदी संघर्षो को त्यागना होगा,
जाति धर्म से ऊपर उठना होगा,
नस्लीय श्रेष्ठता के वीभत्स दौर से,
सुदूर बहुत दूर निकलना होगा,
साजिशें प्रभुत्व के हथकंडो से परे,
इन्सानी अहमियत को समझना होगा।
वैयक्तिक, साम्प्रदायिक एवं वैश्विक अंतर्द्वंद नही,
सिर्फ शांति सुख समृद्ध चाहिए।
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