हर शख्स यहाँ,
एक ख्वाब लिए जीता है।
अगले पल,
मेरी तकदीर बदलने वाली है;
जहालतों भरी,
मेरी तस्वीर, बदलने वाली है;
उम्मीदों का,
स्वप्निल संसार लिए जीता है।
बस थोड़ी सी दूरी,
अभी बाकी है;
थोड़ी सी मेहनत और कुद्दत,
अभी बाकी है;
ओझल मंजिल की,
आस लिए जीता है।
वक़्त गुजरता रहता है,
उम्र ढलती रहती है;
ठोकरों और झंझावातों से,
सांसे उखड़ती रहती हैं;
मरुस्थल में बारिश का,
आभास लिए जीता है।
बुरा भी तो नही,
कोई उम्मीद पालना,
उम्मीद के लिए,
संघर्ष के सांचे में ढालना;
बिना उम्मीद के यहां,
कोई इन्सान कहाँ जीता है।
हर शख्स यहाँ,
एक ख्वाब लिए जीता है।
No comments:
Post a Comment