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Friday, November 29, 2019

मेरे मुल्क मुझे माफी देना



मेरे मुल्क मुझे माफी देना
झूठा जयकारा कर न सका,
गलाफाड़ मै नारा कह न सका,
चाहे तो वतन परस्ती कहना।

लोगों ने वतन को लूटा है,
देशभक्ति का ढोंग दिखा करके;
धन संपदा का सत्यानाश किया,
बहुभांति स्वांग रचा करके;
मैंने विमुक्त विद्रोह किया,
चाहे तो वतन खिलाफी कहना।

जज्बाती जोशीले नारे,
खुली सड़कों (जुबां) पर केवल दिखते हैं;
झूठ फरेब धोखा मक्कारी,
इन सबके मन (घर) में मिलते है;
इन गद्दारों का पर्दाफाश किया,
चाहे तो गद्दारी कहना।

जो जितना बांग लगाता है,
वह उतना ही पाप छिपाता है;
कमियों असफलता को छुपाने को,
हर बार (सौ बार) बाते बदलता (बनाता) है;
इन पापियों की पहचान किया,
चाहे तो मुझे पापी कहना।

झूठा मेरा व्यवहार नही,
देशभक्ति मेरा प्रचार नही;
जोर जोर चिल्लाने गुर्राने का,
मेरा कोई विचार नही;
दिल से देशभक्ति की है,
चाहे तो नाकाफी कहना।

देशप्रेम का दम्भ दिखाने वाले,
दुश्मन से भी हाथ मिलाया है;
सौहार्द दुशाला भेट किया,
छककर बिरियानी खाया है;
यह चरित्र उजागर किया हमने,
चाहे तो मुझे दुश्चरित्र कहना।

देशभक्ति का डींग हांकने वाले,
बलात्कार जिश्म फरोसी में पकड़े जाते हैं;
मातृभूमि की सुरक्षा की सौगंध लेने वाले,
तस्करी और जासूसी में पकड़े जाते हैं;
देश के ऐसे गद्दारों को,
मेरा प्रयास है जगजाहिर करना।

चोर लुटेरों के चंगुल से,
यह देश बचाना चाहता हूँ;
हर नागरिक को सुरक्षा सम्मान मिले,
यह हकीकत बनाना चाहता हूँ;
हरामखोरों से देश को बचाना है,
चाहे तो मेरी हरामखोरी कहना।

सच्ची देशभक्ति के लिए,
अच्छी नियत जरूरी है;
हर व्यक्ति और हर चीज की,
अहमियत के बिना अधूरी है;
हर तबके को खुश रखने की नियति रखता हूँ,
चाहे तो मेरी बद नियति कहना।

हो सकता है भयानक भीड़ में,
तुम शामिल मुझको न पाओ;
हाहाकार हडकंप मचाने के,
तुम काबिल मुझको न पाओ;
तूफानी रातों में दीपक सा जलता हूँ,
चाहे तो नाकाफी कहना।

मुझे खौफ नही मर जाने का,
भयंकर झंझावातों से;
गम भी नही सितारों के,
गर्दिश में गुजर जाने का;
शैतानों से सदा लड़ता रहूँगा,
चाहे तो तुम मेरी शैतानी कहना।

देशभक्ति के नाम पर,
नफरत का जहर फैलाया;
हर आवाज उठाने वालों पर,
कमीनों ने कहर है ढाया;
इन कमीनों को बेनकाब करता हूँ,
चाहे तो कमीनापन कहना।

हो सकता है मै बेकार लगूं,
बदसूरत और बीमार लगूं;
यह देश चलने वालों को,
मै सबसे बड़ा गद्दार लगूं;
कहते क्या लोग फर्क नही पड़ता,
चाहे तुम भी मुझे गद्दार कहना।

सच्चाई से मुंह मोड़ लूं,
मेरा दिल गवारा करता नही;
चुपचाप जुल्म देखता रहूँ,
मेरे जेहन को जचता नही;
सच को बस सच जैसा कहता हूँ,
चाहे तुम मुझे झूठा कहना।

जब ग़दर भीड़ की हट जायेगी,
मजबूत खड़ा मुझे पाओगे;
जब छलावे की घटा छट जायेगी,
सच के साथ अकेला पाओगे;
मन से मै मातृभूमि पर मरता हूँ,
चाहे तुम जो भी समझना।

पा जाऊं जग में पद प्रतिष्ठित,
ऐसी कोई चाहत नही;
बन जाऊँ जनता का सिरमोर,
ऐसी मेरी कोई हसरत नही;
बुराई की खिलाफत करना मेरी आदत है,
चाहे तो इसे बुरी आदत कहना।

हो सकता है मै मगरूर लगूं,
बगावत के नशे में चूर लगूं;
शासन के विरोधी खेमे में,
मै सबसे ज्यादा मशहूर मिलूँ;
बदमाशों से बगावत करता हूँ,
चाहे तुम मुझे बागी समझना।
14.09.2019

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