कि हम कुछ नही जानते।
हम जो जानते हैं,
वे लोग, जो नही जानते हैं,
हम उनसे जानते हैं।
जो लोग नही जानते हैं,
जब हम उन लोगों से जानते हैं
तो फिर हम क्या, कहां और कैसे जानते हैं।
जो लोग समझते हैं,
कि वे सब जानते हैं,
उनको खुद भी नही पता,
वे क्या और कैसे जानते हैं।
वे लोग, जो यह समझते हैं,
कि वे जानते हैं,
वे उन्हीं लोगों से जानते हैं,
जो खुद कुछ नही जानते हैं।
ऐसे ही हम खुद कुछ नही जानते,
न जानने वाले से ही जानते हैं,
और समझते हैं कि हम जानते हैं,
दरअसल हम कुछ नही जानते।
न जानने के तार बड़े लंबे हैं,
न जानने को जानने के,
विस्तार बड़े लंबे हैं,
न जानने पर,
संपूर्ण जानना टिका हुआ है,
क्योंकि जानने न जानने के,
पेंच बड़े लंबे हैं।
हकीकत को हम,
कभी जान नही सकते;
वास्तविकता को कभी संज्ञान नही सकते;
रत्ती भर की क्षमता है हमारी,
परम सत्य पहचान नही सकते।
अभिमान कैसा ज्ञानी होने का,
प्रमाद कैसा अभिमानी होने का,
अथक जप तप त्याग से भी,
कभी कोई कुछ भी नही जानते।
हम जानते हैं कि,
हम कुछ नही जानते।
सब कुछ ढोंग पाखंड है,
मनगढ़ंत मनोरथी प्रपंच हैं;
कथा, कहानी, कल्पना से भरे,
मूढ़ मूढताएं अनंत हैं।
जानते हैं कि नही जानते,
यह अज्ञानी भी नही मानते;
पर हमे पता है कि,
हम कुछ नही जानते।
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