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Saturday, January 13, 2024

जीवन आशा

कौन भला इस जगत में,
जो चाहे दुख कलेश;
जलचर थलचर और नभचर,
सब चाहे सुखद परिवेश।

अतिशय घिरे हुए व्याधि में,
जीवन आस धरे रहता;
विप्लव विपत्ति की विकट आंधी में,
उम्मीद की डार पकड़े रहता।

हजार संकट तन मन जीवन में,
लालसा सुख की कहां जाती?
मुंह बल गिरे लड़खड़ाता रण में,
सुख मंजिल मोह कहां जाती?

नित नए थपेड़ आवृत्तियों में,
स्पर्श पुष्प की आशा करता;
विकट विकराल विपत्तियों में,
दुखहर दिनकर की दिलासा करता।

जीवन संघर्ष के भीषण रण में,
जड़ जीव निरत लतपथ है;
बंध उम्मीद की धूमिल किरण में,
चलायमान जीवन पथ है।

सच हैं कि संकट ढेरों हैं,
प्रारंभ, मध्य और अंत में;
जगमग जुगनू भी हजारों हैं,
इस क्षपा घनेरी अनंत में।

जब तक है आशा की डोर,
उम्मीद किरण जब तक मन में;
कितना भी हों कठिन दौर;
जीवन होगा इस जीवन में।

मन में रखना है सदा धैर्य,
भावना को भड़कने मत देना;
चित्त शांत और आत्म शौर्य,
उम्मीद उखड़ने मत देना।

बाधा कितनी भी हो कठिन,
भरोसा खुद से न डिगने देना;
आफत विभीषिका देख निकट,
हौसलों को न हिलने देना।

विध्वंसक विकट बलाओँ में,
हमको न कभी घबराना है;
आशा उम्मीद की छाओं में,
बस जीवन जीते जाना है।

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