एक बार एक प्रयोग किया गया। कई अंधे व्यक्तियों के बीच एक हाथी लाया गया। सभी अंधे व्यक्तिओं से बोला गया कि आप हाथी को छोकर बताएं कि हाथी कैसा होता है।
गौरतलब है कि अंधे व्यक्ति जन्मांध थे। उन्होंने अपनी आँखों से कभी कुछ नही देखा। प्रयोग कर्ता यह देखना चाहते थे कि जिन लोगों ने हाथी कभी नही देखी अगर उनके सामने हाथी लायी जाये तो वे हाथी को क्या बोलेंगे।
सभी अंधे व्यक्तियों ने हाथी को छुआ। किसी के हाथ में हांथी का सूंड आया तो किसी के के हाथ में हाथी का पैर। किसी के हाँथ में हाथी की पूछ आई तो किसी के हाथ में हाथी का विशाल पेट।
अब उनसे पूछा गया कि बताइए हाथी कैसा होता है।
जिसके हाथ में हांथी का सूंड आया उसने बोला हाथी सांप जैसा होता है।
जिसके हाथ में हांथी का पैर आया उसने बोला हाथी खम्भे जैसा होता है।
जिसके हाथ में हाथी का पेट आया उसने बोला कि हाथी नगाड़ा जैसा होता है।
जिसके हाथ में हाथी का पूछ आया उसने बोला कि हाथ झाड़ू जैसा होता है।
उपरोक्त परिस्थिति और प्रयोग सबके सामने था। सभी विचार मग्न और आश्चर्यचकित थे।
उपरोक्त प्रयोग के परिणाम के रूप में हम कह सकते हैं कि ......
1- कोई भी बात, सिद्धांत, अनुभव, दर्शन अंतिम नही हो सकता।
2- एक व्यक्ति के विचार अंतिम सत्य नही हो सकता।
3- व्यक्ति, स्थान, वास्तु, परित्थिति और काल के अनुसार सत्यता के अलग अलग आयाम हो सकते हैं.।
इस प्रकार किसी भी बात या विचार, व्यवस्था, परंपरा, सिद्धांत, आदर्श को बिलकुल सही और बिलकुल गलत नही माना जा सकता है।
सलाह यह है कि आप जिस परिवेश में रहते हैं, जो भी आपके व्पक्तिगत विकल्प और पसंद हैं उसके अनुसार चीजों और परिश्थितियों को समझें और निर्णय लें।
पर एक बात ध्यान दें कि अनावश्यक रूप से आपके कार्य , विचार और व्यवहार किसी के लिए संकट और समस्या का कारण न बने।
आप खुश रहें और दुसरे को खुश रहने में बाधा न बनें।
क्योंकि न कुछ गलत है और न ही कुछ सही है।
सब सही और सब अच्छा है।
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