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Friday, February 14, 2020

अदालत यहीं लगेगी

मुझे तुम पर विश्वास नही,
तू गुलाम हो, तुम दलाल हो,
तेरा कोई जमीर नही,
हम आयेंगे नही, तेरी बातों में,
मानेंगे नही,
तेरे अल्फाजों को;
हम अपराधी हैं,
हम दहशतगर्द हैं;
ऐसा इल्जाम लगाता है;
निर्दोष हमारे बच्चों को,
सालों अदालत काराबास,
के फेरे लगवाता है;
बस हो गई तेरी दादागीरी,
हो गई तेरी जुल्म ज्यादती;
मुवक्किल वकील,
जज मुजरिम यहीं पर,
फैसला सुनवाई करेगी

इंसाफ की आस में हमने भी,
अदालतों के चक्कर लगाये हैं;
झूठे फर्जी आरोपों से,
दर्द बे इम्तहाँ पाए हैं;
धन गया,
मान गया,
समय और सम्मान गया;
जवानी से बुढ़ापे तक हमने,
कड़वे कष्ट अपमान सहा,
मिला नही इंसाफ,
वरन अपराधी का तमगा मिला;
सब छिन्न भिन्न हो गया जीवन में,
सब कुछ उजड़ा उजड़ा मिला;
जनता से बना है तू,
जनता हम भी हैं,
अब जनता ही फैसला करेगी,
जनता ही सुनवाई करेगी।

सरकारें मनमानी जब हो जाती हैं,
प्रशासन भी भड़वा हो जाती है;
स्वायत्त संस्थाएं जब देश की,
सरकारों के दल्ले हो जाती हैं;
अविश्वास अव्यवस्था के मन्जर में,
जनता खुद सरकार बन जाती है;
किसी सरकार प्रशासन की जरूरत नही,
खुद ही सरकार चलाती है;
वही एहसास दिलाना चाहता हूँ,
जनता की ताकत दिखाना चाहता हूँ;
बन्द दरबों से निकल,
खुली सड़कों पर सुनवाई होगी।

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