मुझे तुम पर विश्वास नही,
तू गुलाम हो, तुम दलाल हो,
तेरा कोई जमीर नही,
हम आयेंगे नही, तेरी बातों में,
मानेंगे नही,
तेरे अल्फाजों को;
हम अपराधी हैं,
हम दहशतगर्द हैं;
ऐसा इल्जाम लगाता है;
निर्दोष हमारे बच्चों को,
सालों अदालत काराबास,
के फेरे लगवाता है;
बस हो गई तेरी दादागीरी,
हो गई तेरी जुल्म ज्यादती;
मुवक्किल वकील,
जज मुजरिम यहीं पर,
फैसला सुनवाई करेगी।
इंसाफ की आस में हमने भी,
अदालतों के चक्कर लगाये हैं;
झूठे फर्जी आरोपों से,
दर्द बे इम्तहाँ पाए हैं;
धन गया,
मान गया,
समय और सम्मान गया;
जवानी से बुढ़ापे तक हमने,
कड़वे कष्ट अपमान सहा,
मिला नही इंसाफ,
वरन अपराधी का तमगा मिला;
सब छिन्न भिन्न हो गया जीवन में,
सब कुछ उजड़ा उजड़ा मिला;
जनता से बना है तू,
जनता हम भी हैं,
अब जनता ही फैसला करेगी,
जनता ही सुनवाई करेगी।
सरकारें मनमानी जब हो जाती हैं,
प्रशासन भी भड़वा हो जाती है;
स्वायत्त संस्थाएं जब देश की,
सरकारों के दल्ले हो जाती हैं;
अविश्वास अव्यवस्था के मन्जर में,
जनता खुद सरकार बन जाती है;
किसी सरकार प्रशासन की जरूरत नही,
खुद ही सरकार चलाती है;
वही एहसास दिलाना चाहता हूँ,
जनता की ताकत दिखाना चाहता हूँ;
बन्द दरबों से निकल,
खुली सड़कों पर सुनवाई होगी।
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