चलते चलते लोग,
जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं,
बशर्ते चलते रहना जरूरी है।
ताउम्र बैठकर,
बस यूं सोचता रहा,
कि मंजिल इतनी दूर क्यों है?
रास्ते तंग,
हालत ए मजबूर क्यों हैं;
समुचित समय के आस में,
सब समय निकल जाते हैं,
चलते चलते लोग,
जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं।
बशर्ते चलते रहना जरूरी है।
एक एक कदम,
हजारों मील का सफर तय करते हैं;
सिद्दत से किया अदना सा प्रयास,
तकदीर लिखा करते हैं,
कोशिश करने वाले लोग,
समय स्थिति से भी पार निकल जाते हैं।
चलते चलते लोग,
जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं।
बशर्ते चलते रहना जरूरी है।
सुदूर मंजिल खुद व खुद,
सिमट जाते हैं,
गगनस्थ पर्वत, अगम्य दरिया,
स्वयमेव नतमस्तक हो जाते हैं।
जाबांज कदमो तले,
कायनात भी झुक जाते हैं।
चलते चलते लोग,
जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं।
बशर्ते चलते रहना जरूरी है।
किस्मत को कोसने से क्या होगा?
हालात और लोगों को,
दोषी ठहराने से क्या होगा?
जो भी होगा,
स्वंय के प्रयास और अभ्यास से ही होगा।
लगातार ईमानदार कोशिशों से,
बद से बदतर स्थिति में भी,
चमत्कारिक बदलाव हो जाते हैं।
चलते चलते लोग,
जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाते हैं।
बशर्ते चलते रहना जरूरी है।
दर्द भरी राहें जब भी सफर में आयेंगी
ReplyDeleteदेखना मंजिलों तक के इस सफर को
ये और ज्यादा बढ़ायेंगी।
Irshad
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