बारिश, तेरी हर बूंद अमृत।
टप टप गिरती,
कंकड़ पर, कभी पत्थर पर;
रिमझिम झिमझिम स्वर स्पंदन,
सरवर तरुवर और अंबर पर।
धरणि गगन हर अवयव में,
संपूरित करती जीवनवृत।
बारिश, तेरी हर बूंद अमृत।
कर्णप्रिय रूहानी सिरहन,
चित्त चक्षु और तनमन पर,
मरु मृगतृष्णा मरीचिका,
तृप्तित जलचर, थलचर, नभचर।
अभिसिंचन आच्छादन से,
कायाकल्प, हो सकल संतृप्त।
बारिश, तेरी हर बूंद अमृत।
तुम मनभावन सावन हो,
संजीवनी हो, लोकलुभावन हो;
जड़जीव चर अचर हेतु,
व्योम व्याप्त, चितपावन हो।
चिरकाल से जननी को करती,
सुख सुधा से आवृत।
ख्यालो की नज़ाकत शब्द की बंदिश कमाल की
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