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Monday, December 2, 2019

मेरा जूनून


मेरा जूनून मुझे जीने नही देता,
मेरा अश्क मुझे रोने नही देता;
मेरा गुरूर है आसमां के भी ऊपर,
ऐ मजबूर मुझे होने नही देता।

ख्वाइशों का समन्दर है,
बदलाव का बवन्डर है;
इंसाफ कायम करने का,
जज्बात मेरे अन्दर है;
मेरा गुमान भी बड़ा गजब है,
बेजुबान मुझे होने नही देता।

दर्द भरी चीख जब कभी,
मेरे कानों पर पड़ती है;
मजलूम मेहनतकशों की जब भी,
लाचारी मुझे दिखती है;
सिहर उठता है रोम रोम मेरा,
दर्दनाक वाकिए मुझे जीने नही देता

हर क्षण तत्पर रहता हूँ मै,
जुल्म की खिलाफत करने करने को;
निर्भीक निडर सा चलता हूँ,
मानवता की हिफाजत करने को;
मेरी रूह मेरी धड़कन मेरी सांस,
मुझे चैन से रहने नही देता

व्याकुल विह्वल हो जाता है मन,
जब भी सोने की कोशिश करता हूँ;
अंगारों से भर जाते हैं नयन,
जब रोने की कोशिश करता हूँ;
वह रही वयार बगावत की,
निश्चल स्थाई रुकने नही देता।

दीवानगी है पागलपन है,
उत्त्साह उमंग मेरे मन में;
अद्भुत अदम्य अवारापन है,
अथाह चाह मेरे जीवन में;
मेरे बेख़ौफ़ बेपरवाह आदतें,
मुझे मौत से भी डरने नही देता।

मेरा मिशन मेरे सर चढ़ बोलता है,
मेरे विचार मेरे लहू में दौड़ता है;
मजबूर हूँ अपने लक्ष्य के सामने,
लक्ष्य मेरे सीने में धडकता है;
मदहोश से हालत हो गये है मेरे,
मेरे ख्यालात मुझे होश में होने नही देता।

सपनो में भी मै बडबडाता हूँ,
कोई जुनूनी जोशीले गीता गाता हूँ;
खुलती अचानक जब नींद मेरी,
अचम्भा अवाक् सा रह जाता हूँ;
डूब गया हूँ नशे में इस कदर,
शान्ति और सकून कभी होने नही देता।

कैसे मै मुंह फेर लूँ,
दर्द हकीकत के हालातों से;
कड़वाहट कटुता कपट और,
कुटिलता से भरे आघातों से;
दर्द का आलम हर तरफ,
बेदर्द मुझे होने नही देता।

अगर मै रो दूंगा तो क्या होगा,
मेरे मासूम नौनिहालों का;
मै सो जाऊंगा तो क्या होगा,
सदियों से सोने वालों का;
दिल तो कहता है सो लूँ रो लूँ,
पर वक्त सोने रोने नही देता।

मेरा कुछ अपना शेष नही है,
ख्वाब कोई अवशेष नही है;
जो है सब अपनों का है,
व्यक्तिगत कुछ विशेष नही है;
हमदर्द हमसफर हूँ अपनों का,
अपनों से दूर होने नही देता।

कहीं जुल्म होते देखता रहूँ,
कतई मेरे जेहन में नही;
अत्याचार के तले जियूं,
यह सब सीख मेरे जीवन में नही;
अन्याय कितना भी खौफनाक और सबल हो,
पर मेरा जमीर मुझे झुकने नही देता।

जुनून को जिन्दा रखूँगा,
आक्रोश निरन्तर पालूंगा;
विकट बगावत की चिंगारी को,
समय के सांचे में ढालूँगा;
क्रोधाग्नि की विकराल ज्वाला को,
शान्त कभी होने नही देता।

पैरों में छाले पड़ जाते है,
अथक निरन्तर चलते चलते;
आंखे और जबां सूख जाते हैं,
बेसुधों में सुध भरते भरते;
मानवता की महा मशाल मै,
हर हाल कभी बुझने नही देता।
11.10.2019

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