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Thursday, February 29, 2024

संत शिरोमणि रविदास के दोहे

 



ऐसा चाहूं राज मै,          

जहाँ मिले सबन को अन्न;

ऊंच नीच सब सम बसे,

रहे रैदास प्रसन्न ।

 

पराधीनता पाप है,

जान लहू रे मीत;

रैदास दास पराधीन सो,

कौन करे हैं प्रीत ।

 

रैदास जनम के कारने,

होत न कोई नीच;

नर कू नीच कर डारि हैं,

ओछे करम की कीच ।

 

देता रहे हजार बरस,

मुल्ला चाहे अजान;

रैदास खोजा न मिल सकाइ,

जौ लौं मन शैतान ।

 

रविदास हमारौ राम जी,

दशरथ के सुत नाहिं;

राम हमहूँ में रमि रहे,

विसब कुटुम्बह माहि ।

 

रविदास मदुरा का पीजिये,

जो चढ़ि चढ़ि  उतराय;

नाम महारस पीजिये,

जो चढ़ न उतराय।

 

का मथुरा का द्वारका,

का काशी हरिद्वार;

रविदास खोजा दिल आपना,

तऊ मिला दिलदार।

 

रविदास ब्राह्मण मत पूजिए,

जो होए गुणहीन;

पूजहिं चरण चांडाल के,

जो होवे गुण प्रवीन।

 

धर्म हेत संग्राम मंह,

जो कोई कटाए सीस;

सो जीवन सफल भया,

रैदास मिले जगदीश ।

 

दिन दुखी के हेतु जउ,

वारे अपने प्रान;

रैदास उह नर सूर को,

सांचा क्षत्री जान ।

 

रैन गवाई सोई कर,

दिवस गवाई खाय रे;

हीरा यह तन पाई कर,

कौड़ी बदले जाय रे।

 

जात जात के फेर में,

उरझि रहे सब लोग;

मनुष्यता कू खात है,

रविदास जात का रोग ।

 

रविदास जात मत पूछ,

का जात का पात;

ब्राह्मण खत्री वैश्य सूद,

सबन का इक जात ।

 

रविदास इक ही नूर से,

जिमि उपज्यों संसार;

ऊंच नीच किह विधि भये,

ब्राह्मण और चमार ।

 

पराधीन को दीन क्या,

पराधीन बेदीन;

रविदास सब पराधीन को,

सबही समझे हीन।

 

जाति जाति में जाति है,

ज्यो केतन के पात;

रैदास मानुष न जुड़ सके,

जब तक जाति न जात ।

 

हिन्दू पुजाई देहरा,

मुसलमान मसीत;

रविदास पूजे उस राम को,

जिस निरंतर प्रीत।

 

जो खुदा पश्चिम बसे,

तो पूरब बसत राम;

रैदास सेवो जिह ठाकुर को,

जिसका ठांव न नाम ।

 

मस्जिद से कछु घिन नही,

मंदिर से नही प्यार;

दोउ मह अल्लाह राम नही,

कह रविदास चमार ।

 

रविदास एक ही बूँद से,

सब भयो विस्थार;

मूरख है जो करत हैं,

वरन अवरण विचार।

 

जो बस राखे इन्द्रियां,

सुख दुःख समझ समान;

सो असरित पद पाईगो,

कहि रविदास बलवान ।

 

अंतर गति रूचौ नही,

बाहरि कथे उजास;

ते नर नर कहि जायेगे,

सत भासे रविदास ।

 

धन संचे दुःख देत है,

धनमति त्यागे सुख होई;

रविदास सीख गुरुदेव की,

धनमति जोरे कोई ।

 

रविदास कंगन और कनक में,

जिमि अंतर कछु नाहि;

तो सो रही अंतर नहीं,

हिंदुअन तुरकन माहि ।

 

हरि सा हीरा छांड के,

करे और की आस;

जे नर जोजक जाहिंगे,

सत बाके रविदास ।

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